खत्म नहीं हो रही दागियों की ओएसडी की दौड़

  • सहायकों की नियुक्ति के मामले में जीएडी बरत रहा सतर्कता
  • गौरव चौहान
ओएसडी की दौड़

मप्र में नई सरकार में मंत्रियों के स्टाफ के लिए जो व्यवस्था लागू की गई है, वह कई मंत्रियों के साथ ही अफसरों को भी नहीं भा रही है। आलम यह है कि सरकार की सख्ती और सामान्य प्रशासन विभाग की सतर्कता के बाद भी कई अफसर मंत्रियों का ओएसडी बनने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। गौरतलब है कि जीएडी ने कई मंत्रियों के यहां से स्टाफ की नियुक्ति की अनुशंसा के लिए आई फाइलों को लौटा दिया है। सूत्रों की माने तो कुछ मंत्रियों के यहां ऐसे स्टाफ की फिर से पदस्थापना हो गई है, जो पूर्व मंत्रियों के यहां पदस्थ रहे है। इन अधिकारी-कर्मचारियों की भी सूची बनाई जा रही है। इन्हे भी जल्द बदला जाएगा और इनके स्थान पर दूसरे लोगो को पदस्थ किया जाएगा।
गौरतलब है कि सरकार ने इस बार मंत्रियों के स्टाफ को लेकर सख्ती दिखाई है। सरकार का फोकस है कि मंत्रियों के स्टाफ में दागदार अफसरों और कर्मचारियों की नियुक्ति न हो। मप्र में मंत्रियों के ओएसडी बनने वालों की लंबी फेहरिस्त सामने आई है।
सबसे ज्यादा रूचि वित्त, वाणिज्यिक कर, आबकारी, नगरीय प्रशासन जैसे विभागों के लिए हैं, जहां मंत्री के ओएसडी बनने की कोशिशें शुरू हुई है। ऐसे ही उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के ओएसडी बनाए जाने के लिए दो अफसरों के नाम भेजे गए। हालांकि दोनों अफसरों के खिलाफ आरोप के चलते जीएडी एसीएस ने फाइल लौटा दी है। खास बात है कि ग्रामीण विकास मंत्री के ओएसडी बनने आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसे अफसर की पोस्टिंग के नाम की चर्चा है। जीएडी की ओर से फाइल लौटाने के बाद अब वित्त विभाग ने दूसरे अफसरों के नाम भेजे हैं। क्योंकि डिप्टी कमिश्नर अजय शर्मा और उपायुक्त संदीप तिवारी के खिलाफ पुराने गंभीर आरोप है।
सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों के ओएसडी की नियुक्ति के मामले में जीएडी सतर्कता बरत रहा है। दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी चाहते हैं कि मंत्रियों के स्टाफ में दागी कर्मचारी नहीं आए। सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने साफ कह दिया है कि किसी भी कीमत पर ऐसे दागी अफसरों की तैनाती मंत्रियों के स्टाफ में नहीं होगी, जो पूर्व में विवादित रह चुके है या फिर उनके खिलाफ रिपोर्ट अच्छी नहीं है। हालांकि कुछ मंत्रियों के ओएसडी और स्टाफ की नियुक्ति भी हो चुकी है। मुख्यमंत्री की हिदायत के बाद ही वित्त और आबकारी मंत्री के ओएसडी की नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो रही है। बताते है कि दोनों अफसरों के नाम पद से हटने के पहले भेजे गए थे। शर्मा और सक्सेना दोनों ही उनके करीबी रहे है।
कई दागदार अफसर निशाने पर
आबकारी विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अजय शर्मा पर हर बोतल पर 5 रुपए एक्सट्रा चार्ज वसूलने का आरोप उस वक्त लगा था। इसके तत्काल बाद तत्कालीन मंत्री जयंत मलैया ने उन्हें फौरन हटा दिया था। कई सालों तक शर्मा को लूप लाइन में रहना पड़ा था। उन्हें फिर डिप्टी कमिश्नर उडऩदस्ता की जिम्मेदारी मिल गई। इसके पीछे भी रसूखदारों ने शर्मा की मदद की थी। फिर आबकारी नीति बनाने की कमान मिली, लेकिन रिव्यू के दौरान विभाग ने पाया कि सरकार के राजस्व को नुकसान होगा। इसलिए शर्मा की सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया। साल 2023 में आबकारी मंत्री रहते हुए देवड़ा ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर वीरेंद्र सक्सेना के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिए थे। इसके पीछे की वजह यह थी कि वीरेंद्र सक्सेना साल 2011 में डिप्टी कमिश्नर के तौर पर रायसेन जिले में पदस्थ थे। सोम डिस्टलरी में अवैध शराब के लिए टैंक बने। मामला साल 2018 में सामने आया और सक्सेना को हटा दिया गया था। विधानसभा की कार्यवाही के दौरान ही सक्सेना के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तत्कालीन प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी को निर्देश भी दिए गए थे।
कुछ मंत्रियों ने मांगा पुराना स्टाफ
मंत्रियों की अपने चहेते स्टाफ की नोटशीट लौटाने का मामला आज कैबिनेट में भी उठा। कुछ मंत्रियों ने मुख्यमंत्री डाक्टर मोहन यादव से आग्रह किया कि उनके यहां जो स्टाफ पूर्व से कार्यरत है, उसे यथावत रहने दिया जाए पर मुख्यमंत्री ने यह कहकर इंकार कर दिया कि यह फैसला मेरा नहीं, ऊपर से लिया गया है। इसमें कोई फेरबदल नहीं हो सकता। यह बात भी सामने आई कि जिन मंत्रियों के यहां ऐसा स्टाफ पदस्थ हो गया है जो पूर्व में मंत्रियों के यहां था, उसे भी बदला जाएगा। सूत्रों की माने तो बुधवार को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक के दौरान खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह और ऊजा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि उनके यहां जो स्टाफ पूर्व से पदस्थ था, उसे रहने दिया जाए। मंत्रियों का तर्क था कि यह स्टाफ उनके साथ लंबे समय से काम कर रहा है और काम को समझता है। इससे उन्हें काम करने में आसानी होती है। कुछ और मंत्री उनकी इस राय से सहमत नजर आए पर उन्होंने खुलकर कुछ नहीं कहा। इस पर मुख्यमंत्री डाक्टर मोहन यादव ने इसे ऊपर से लिया गया फैसला बताकर मामले का पटाक्षेप कर दिया। वहीं पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने इसे बेहतर फैसला बताते हुए कहा कि इससे पारदर्शिता आएगी।
छवि साफ सुथरी वाले ही मंत्री स्टाफ में
गौरतलब है कि करीब डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्रियों ने मुख्यमंत्री को सामान्य प्रशासन विभाग के जरिए नोटशीट भेजकर उन, अधिकारी-कर्मचारियों के नाम भेजे थे जिनकी पदस्थापना वे अपने स्टाफ में चाहते थे, पर सीएम ने सभी मंत्रियों की नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग को लौटा दी थी। मंत्रियों से कहा गया है कि वे अपने यहां ऐसे स्टाफ को पदस्थ करें जिनकी छवि साफ सुथरी हो और जो पहले मंत्री स्थापना में पदस्थ न रहे हों। इसके बाद कुछ मंत्रियों के यहां नए स्टाफ की पदस्थापना भी शुरू हो चुकी है। बताया जाता है कि यह फैसला सिर्फ मध्यप्रदेश के लिए नहीं बल्कि सभी भाजपा 7 शासित राज्यों के लिए केन्द्र ने लिया है। ऐसा संघ और भाजपा में समन्वय का काम देखने वाले एक नेता की सलाह पर लिया गया है। संघ ने भाजपा को सलाह दी थी कि मंत्रियों के यहां सालो से पदस्थ स्टाफ को बदला जाए। इसके बाद यह निर्णय लिया गया है। इस बात पर भी नजर रखी जा रही है कि मंत्रियो के यहां कौन से कर्मचारी बिना पदस्थापना के काम कर रहे है। दरअसल आदेश नहीं होने के बाद भी 7 मंत्रियों के यहां वही कर्मचारी काम कर रहे है जो उनके यहां पूर्व में थे, वही नए मंत्रियों के यहां भी अधिकांश स्टाफ वह है जो पूर्व में मंत्रियो के यहां रह चुका है, इनके नाम मंत्रियों ने पदस्थापना के लिए भेजे थे पर इन नामो को मंजूरी नही मिली है।

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