मोहन सरकार में खुलेआम ‘अनुशासनहीनता’

  • कभी पार्टी, कभी सरकार पर आरोप तो कभी आपसी विवाद बना चर्चा में
  • गौरव चौहान
मोहन सरकार

मप्र में कुलीनों कुनबे में ऊपरी तौर पर भले ही सबकुछ सामान्य नजर आ रहा है, लेकिन पार्टी में आंतरिक घमासान मचा हुआ है। कई भाजपा विधायकों ने खुलेआम अपनी नाराजगी जताई है। विधानसभा में सवालों, बयानों और सोशल मीडिया पर दिखाई गई नाराजगी की वजह से सत्तारूढ़ दल के भीतर बढ़ता तनाव बाहर आ गया है। यह स्थिति तब है, जब सत्ता और संगठन का पूरा फोकस अनुशासन पर है।
गौरतलब है कि मप्र की मोहन सरकार ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष हाल ही में पूरा किया और सरकार इसका जश्न जनकल्याण पर्व के रूप में जोर-शोर के साथ मना रही है, वहीं दूसरी तरफ सवालों के उठते स्वर संगठन की नींद उड़ाए हुए हैं। इन विवादों की जड़ में जाएं तो स्थानीय स्तर पर वर्चस्व से लेकर सत्ता में भागीदारी न होने की वजह भी सामने आ रही है। अपनी ही सरकार के विरुद्ध बयानों ने भाजपा संगठन के अनुशासन के दावों पर भी सवाल खड़ा कर दिया है।
मंत्री-पूर्व मंत्री के बीच शीतयुद्ध
सागर जिले के दो कद्दावर नेताओं के बीच पिछले कुछ महीने से लगातार शीतयुद्ध चल रहा है। पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह और मोहन सरकार के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बीच विवाद सतह पर आ गया है। दोनों नेता पार्टी फोरम से बाहर जाकर खुलकर एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। इससे पहले भूपेंद्र सिंह कांग्रेस से भाजपा में शामिल नेताओं पर भी निशाना साध चुके है। उन्होंने कार्यकर्ताओं के उत्पीडऩ का सवाल उठाते हुए पार्टी को याद दिलाया कि जब कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सागर में कार्यकर्ताओं का दमन हो रहा था, तब उन्होंने कैसे कार्यकर्ताओं के साथ डटकर कांग्रेस का मुकाबला किया था। उनका तर्क है कि ऐसे नेताओं के भाजपा में आने से कार्यकर्ता नाराज हुए हैं। वह कार्यकर्ताओं के साथ खड़े हैं। भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत के बीच विवाद या नाराजगी की मुख्य वजह कैबिनेट में जगह न पाना है। लंबे समय तक मंत्री रहे सागर जिले के भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को मोहन कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। वहीं, कांग्रेस से आए गोविंद सिंह राजपूत इन दिनों बुंदेलखंड में भाजपा के सबसे बड़े नेता बने हुए हैं। इस कारण सत्ता का शक्ति केंद्र उन तक सिमट गया है, जो विवाद का बड़ा कारण है। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव भी इन मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई हस्तक्षेप करने से कतरा रहे है। माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व की मंशा के अनुसार वह केवल सरकार चलाने पर फोकस कर रहे हैं। मोहन यादव संगठन में दखल देना भी आवश्यक नहीं समझ रहे हैं। हालात ये हैं कि दोनों नेता पार्टी फोरम से बाहर निकलकर अब सार्वजनिक मंचों से एक-दूसरे पर बयानबाजी कर रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव भी दोनों के बीच कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। भूपेंद्र का कहना है कि कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को तवज्जो मिलने से पार्टी कार्यकर्ता ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और वह इस मौके पर कार्यकर्ताओं के साथ खड़े हैं। वहीं गोविंद राजपूत ने पलटवार करते हुए कहा कि क्या भूपेंद्र सिंह संगठन से बड़े हो गए हैं।
सीधे मोर्चा ना खोलें
गौरतलब है कि सत्ता और संगठन दोनों ने अपने विधायकों और नेताओं को ताकीद किया है कि जो भी कहना है पार्टी फोरम पर कहें। लेकिन इसका असर किसी पर पड़ता नहीं दिख रहा है। अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर हो रहे विधायकों को विगत माह भाजपा ने भोपाल तलब किया था। इसके बाद तीन भाजपा विधायकों को पार्टी ने नसीहत दी है। विधायक प्रदीप लारिया, प्रदीप पटेल और बृज बिहारी पटेरिया ने हाल ही में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी, जिसके बाद भाजपा ने ये कदम उठाया है। सूत्रों के मुताबिक विधायकों से कहा गया है कि वो सरकार के खिलाफ खुलेआम बयानबाजी न करें। पार्टी में बढ़ रही इस फूट का हल न तो प्रदेश संगठन के पास है और न ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के पास। यही वजह है कि अब वर्चस्व की लड़ाई में दुर्गति पार्टी की हो रही है। इस लड़ाई ने संगठन के अनुशासन के दावों पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।
सार्वजनिक बयानबाजी थम ही नहीं रही
मप्र में भाजपा के भीतरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मोहन यादव सरकार भले ही अपना एक साल पूरा होने का जश्न मनाने में जुटी हो, लेकिन पार्टी के विधायक उसी सरकार को आंखें दिखा रहे हैं। मप्र में बीते कई महीनों से भाजपा के विधायकों की सार्वजनिक बयानबाजी थम नहीं रही है। विधायक अपनी ही सरकार और संगठन के अलावा प्रशासन की कार्यप्रणाली को भी घेर रहे हैं। उनका व्यवहार विपक्ष की भूमिका जैसा दिखाई पडऩा संगठन के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा हैं। किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई न होने से भी ऐसे मामलों में कमी होती नहीं दिख रही है। विधायकों के पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयानबाजी करने से अनुशासन को गहरा धक्का लगा है। विंध्य क्षेत्र में विधायक प्रदीप पटेल ने संगठन को चुनौती दी हुई है। संगठन के बुलाने पर भी वह पार्टी कार्यालय नहीं आए और न ही उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियां कम हुई। पटेल आरोप लगा चुके हैं कि पुलिस नशीली दवाओं और गांजे का व्यापार कर रही है। वह रीवा के आईजी आफिस और मऊगंज के एडिशनल एसपी आफिस में साष्टांग दंडवत लेटकर तत्काल कार्रवाई की मांग कर भी चर्चा में आ चुके हैं। अब बुंदेलखंड में भी भाजपा विधायकों के आपसी वर्चस्व की लड़ाई ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

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