प्रोवेशन पीरियड में फंसे… एक लाख कर्मचारी

  • घोषणा के बावजूद सेवकों को उठाना पड़ रहा आर्थिक नुकसान
  • गौरव चौहान
प्रोवेशन पीरियड

मप्र के करीब एक लाख अधिकारी कर्मचारी   प्रोबेशन पीरियड में इस कदर फंसे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के बाद भी वे अभी तक उससे बाहर नहीं आ पाए हैं। गौरतलब है कि करीब चार साल पहले तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने मप्र में होने वाली नई भर्ती पर प्रोबेशन पीरियड (परिवीक्षा अवधि) को एक साल बढ़ा दिया था। जिससे दो साल की जगह प्रोबेशन पीरियड तीन साल का हो गया। इस दौरान मिलने वाला स्टायपेंड भी एक-एक साल करके बढ़ाने का प्रावधान है।  गौरतलब है कि 2022 में सत्ता परिवर्तन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे खत्म करने की घोषणा की, लेकिन अफसरों ने उस पर आज तक अमल नहीं किया है। ऐसे में पिछली कांग्रेस सरकार में बनाया गया परिवीक्षा नियम एक लाख नवनियुक्त अधिकारी कर्मचारियों के लिए सिरदर्द बन गया है। इस नियम को हटाने की भी घोषणा हुई ,लेकिन अफसरशाही ने उसका पालन नहीं किया। अब हालात यह हैं कि इन सेवकों को तीन साल तक जहां आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। मप्र ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी समिति प्रदेश अध्यक्ष मनोहर गिरी का कहना है कि यह नियम समाप्त करवाने के लिए पूर्व मंत्री कमल पटेल के माध्यम से भी सामान प्रशासन विभाग को नोट सीट भिजवाई गई थी। इस नोटसीट में आग्रह किया गया था कि परिवीक्षा अवधि का नियम समाप्त किया जाए। लेकिन इस पर भी सामान्य प्रशासन विभाग में कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
एक लाख अधिकारी और कर्मचारी परेशान
जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने परिवीक्षा अवधि का नियम तय किया था। तब से अभी तक एक लाख अधिकारी कर्मचारियों की नई भर्तियां हुई है। मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल के माध्यम से विभागों में भर्ती करवाई गई है। सबसे अधिक स्कूल शिक्षा विभाग में 50 हजार शिक्षकों की भर्ती हुई है। इसके अलावा 10 हजार अधिकारी कर्मचारी कृषि विभाग में नियुक्त किए गए हैं। बकाया महिला बाल विकास, पुलिस, ऊर्जा, आर्थिक सांख्यिकी, आदिम जाति कल्याण विभाग कल्याण सहित अन्य विभागों में नवीन नियुक्तियां हुई हैं। इस संदर्भ में कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा का कहना है कि जब कमलनाथ सरकार यह काला कानून लेकर आई थी। तब विभागों में नव नियुक्त अधिकारी कर्मचारी मंत्रालय स्थित उनके कक्ष में आए थे। उन्होंने पूरी समस्या बताई थी। तब हमने उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से व्यक्तिगत मुलाकात की। इसके बाद नवनियुक्त कर्मचारी के प्रमाण पत्र वितरण समारोह में शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि कमलनाथ सरकार में बनाए गए परिवीक्षाक्षा अवधि के नियम को समाप्त किया जाएगा। शर्मा कहते हैं कि यह नियम समाप्त होना चाहिए, क्योंकि सरकारी सेवक इस नियम से निरंतर आर्थिक क्षति उठा रहे हैं।
प्रतिशत के हिसाब से हुआ था वेतन निर्धारण
प्रदेश में दिसंबर 2019 के पहले सभी अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए परिवीक्षा अवधि दो वर्ष निर्धारित थी। इसमें कर्मचारी को पूरा वेतन मिलता था, लेकिन तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियम 1961 में संशोधन करके परिवीक्षा अवधि तीन साल कर दी थी। वित्त विभाग ने भी मप्र मूलभूत नियम में संशोधन किया था। इसके बाद नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों के लिए परिवीक्षा अवधि के प्रथम वर्ष में वेतन का 70 प्रतिशत, द्वितीय वर्ष में 80 और तृतीय वर्ष में 90 प्रतिशत वेतन देने का प्रविधान लागू कर दिया गया। चौथे साल में कर्मचारियों-अधिकारियों को शत-प्रतिशत वेतन मिलेगा। परिवीक्षा का यह नियम तय किया गया था। कर्मचारी संगठनों ने पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग की थी, क्योंकि यह व्यवस्था केवल तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए लागू की गई थी। अब नव नियुक्त कर्मचारी इसलिए भी परेशान हैं कि एक तो उन्हें वेतन की क्षति उठानी पड़ रही है। दूसरी तरफ समयमान वेतनमान और प्रमोशन की जो समय सीमा में है। उसका भी उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा।
नए नियम लागू होते ही विरोध
गौरतलब है कि वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद जब राज्य में कमलनाथ मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने नव नियुक्त कर्मचारियों के लिए परिवीक्षा अवधि (प्रोवेशनर पीरियड) नियम लागू किया था।  नियम लागू होने के साथ ही नवनियुक्त लोक सेवकों ने इसका भारी विरोध किया था। जैसे ही कमलनाथ सरकार अल्पमत में आई तो चौथी बार शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त उन्होंने अपने आवास पर नवनियुक्त कर्मचारियों के प्रमाण पत्र वितरण कार्यक्रम में घोषणा करते हुए कहा था कि कमलनाथ सरकार में लाया गया यह कानून तत्काल समाप्त किया जाएगा। नव नियुक्त कर्मचारियों का कहना है कि तीन साल पूर्व घोषणा हुई, लेकिन आज तक यह नियम समाप्त नहीं किया गया है। सरकार ने घोषणा कर दी। सामान्य प्रशासन विभाग को इसका पालन करना था। लेकिन आज तक अफसरों ने उस पर अमल नहीं किया है।

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