एक बार फिर चुंगी क्षतिपूर्ति से भरेगा बिजली का बिल

  • सरकार ने 60 करोड़ जारी करने का लिया निर्णय

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के नगरीय निकाय हर माह बिजली का बिल नहीं भरते हैं, जिसकी वजह से उन पर लगातार बिजली बिल का बकाया बना रहता है।  हालत यह है कि शायद ही ऐसा कोई निकाय हो जिसे बिजली बिल का बाकाया न चुकाना हो। इस स्थिति को देखते हुए मजबूरी में सरकार को चुंगी क्षतिपूर्ति  के हिस्से की दी जाने वाली राशि से बिजली का बिल भरना पड़ रहा है। इस माह भी सरकार ने तय किया है कि निकायों को दी जाने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि निकायों को न देकर उससे उनका बकाया बिजली का बिल चुकाया जाएगा। दरअसल अधिकांश निकायों के कर्मचारी करों की वसूली में रुचि नहीं लेते हैं और वित्तीय अनुशासन का पालन नहीं करते हैं, जिसकी वजह से निकायों पर आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में 302 नगरीय निकाय हैं, जिन पर बिजली के बिल बकाया चल रहा हैं।  मप्र नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने इस मद से 60 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है। इसमें से सबसे अधिक 31 करोड़ रुपये पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को दिए जाएंगे, जिससे इंदौर नगर निगम के 23 करोड़ रुपये का बकाया बिल समायोजित किया जाएगा। इसके अलावा भोपाल नगर निगम के 5 करोड़, जबलपुर के 5.5 करोड़ और ग्वालियर के 2.5 करोड़ रुपये का बिल भी चुकाया जाएगा।
समायोजन का विवरण…
मध्य प्रदेश सरकार ने नवंबर में तीन विद्युत वितरण कंपनियों को 60.17 करोड़ रुपये के बिल चुकाने के आदेश दिए हैं। जिन निकायों के बकाया बिल 1 करोड़ रुपये से अधिक हैं, उनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, कटनी, सागर, सतना, देवास, खंडवा और रतलाम है।
वित्तीय स्थिति की चुनौती
मध्य प्रदेश के नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति इस कदर बिगड़ चुकी है कि वे अपने बिजली के बिल समय पर चुकाने में असमर्थ हैं। इसके पीछे मुख्य कारण है कि इन निकायों की वसूली बेहद कम है। पेयजल, स्ट्रीट लाइट आदि के लिए विद्युत वितरण कंपनियों से बिजली की आपूर्ति की जाती है, लेकिन स्थानीय निकायों द्वारा रहवासियों से शुल्क की वसूली में लापरवाही बरती जाती है। इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि का उपयोग बिजली के बकाया बिलों का भुगतान करने का निर्णय लिया है। यह राशि अब मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के बजाय बिजली बिल चुकाने में खर्च की जाएगी। इससे विद्युत वितरण कंपनियों पर भी दबाव कम होगा और उनकी सेवा में भी कोई बाधा नहीं आएगी।

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