अफसर सरकारी आयोजनों में व्यस्त, जनता पस्त

सरकारी आयोजनों
  • पूरे साल बनी रहेगी यही स्थिति…

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भले ही अभी चुनावी बिगुल नहीं बजा है, लेकिन माहौल पूरी तरह चुनावी हो गया है। इस कारण राजधानी राजनीति का केंद्र बन गया है। जहां एक तरफ धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं सरकारी आयोजनों की भरमार होने लगी है। उस पर वीआईपी मूवमेंट बढ़ गया है। ऐसे में अफसरों की मैदानी ड्यूटी लगाई जा रही है। जिसके कारण जनता के काम नहीं हो रहे हैं। इससे लोग परेशान हो रहे हैं। गौरतलब है की हर सप्ताह प्रोटोकॉल ड्यूटी के तहत प्रत्येक अधिकारी को वीआईपी ड्यूटी में तैनात किया जाता है। जैसे सीएम, मंत्री, केंद्रीय मंत्री, राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता, केन्द्र शासन के अधिकारी आदि के आगमन पर एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन पर जाकर उन्हें रिसीव करना और उनके रहने, खाने, सुरक्षा से लेकर रवानगी तक की व्यवस्था देखनी पड़ती है। इस कारण राजधानी में जिला प्रशासन अपने मूल कार्य को अंजाम नहीं दे पा रहा है। चुनावी साल होने के कारण प्रशासनिक अफसर सरकारी कार्यक्रमों, धरना-प्रदर्शन और वीआईपी ड्यूटी तक सिमट कर रह गये हैं। यही कारण है कि जिले में सरकारी कामकाज पूरी तरह से पटरी से उतर गया है। न तो राजस्व वसूली हो पा रही है और न आम जनता के काम, हालांकि यह कार्य जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही से नहीं बिगड़ रहे हैं, बल्कि शहर में लगातार होने वाले छोटे-बड़े आयोजनों और वीआईपी मूवमेंट ने इनकी लय को बिगाड़ दिया है। ऐसे में इन कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिये अफसर जनता से दूर होते जा रहे हैं।
चुनावी साल, बढ़ेगी दिक्कत..
कुछ महीनों बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कार्यक्रमों और वीआईपी के आने का सिलसिला बढ़ जाएगा। सरकारी कार्य के साथ ही आम जनता के काम खासे प्रभावित होंगे। यह सिलसिला चुनाव तक जारी रहेगा। इस दौरान राजस्व अफसर पूरी तरह से सरकारी कार्यक्रमों, धरना-प्रदर्शन और वीआईपी ड्यूटी तक सीमित हो कर रह जाएंगे। गौरतलब है की हाल ही में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, संघ प्रमुख मोहन भागवत, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण सहित कई वीआईपी राजधानी आए। इसके अलावा कई प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम भी राजधानी में आयोजित हुए। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की विकास यात्रा भी 21 दिन चली थी। इस दौरान पूरा अमला इसमें झोंक दिया गया था। इस दौरान दफ्तरों में न तो अफसर मिलते थे और न ही कर्मचारी। ऐसे में बड़ी संख्या में राजस्व के मामले लंबित हो गये थे, जिनका निराकरण आज भी नहीं हो सका है।
लोग दफ्तरों के लगा रहे चक्कर
गौरतलब है कि विशेष आयोजन के अलावा जिला प्रशासन के अफसर रोजाना धरना प्रदर्शन, रैली, ज्ञापन, जलसा, जुलूस, वीआईपी मूवमेंट आदि की जिम्मेदारी भी निभाते हैं। इसके लिये कभी- कभी अल सुबह से देर रात तक अधिकारियों को पसीना बहाना पड़ जाता है। वहीं अधिकारियों के पास काम से आने वाली जनता को निराशा मिलती है। उन्हें कई दिन चक्कर काटने पड़ते हैं। खासतौर से ग्रामीण जनता को, जिसे लंबी दूरी तय करके आना पड़ता है। राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र सहित विभिन्न तरह के प्रमाण पत्र समय पर जारी नहीं हो पाते। बंटवारा नामांतरण, भरण-पोषण सहित अन्य प्रकरणों की पेशियां लगातार आगे बढ़ती रहती है। सीमांकन, अतिक्रमण को चिन्हित करना और उनको हटाने जैसी कार्रवाई भी टालनी पड़ती है। टेबिल पर फाइलों का बोझ बढ़ता जाता है और लंबित प्रकरणों की संख्या में इजाफा होता है। सर्वे व मुआवजा वितरण के काम अटकते हैं। राजस्व वसूली का टारगेट भी प्रभावित होता है।

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