अफसरान नहीं छोड़ रहे… सरकार की किरकिरी का कोई मौका

अफसरान

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश के आला अफसरान , सरकार के सालाहकार व रणनीतिकारों की वजह से लगातार ऐसे मौके आ रहे हैं, जिसकी वजह से न केवल सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि कई बार उसकी किरकिरी भी खूब होती हैं। अभी सरकार पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के मामले से सुलझ भी नहीं पायी है कि अब एक नया मामला सामने आ गया है। यह मामला है हाईकोर्ट के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान का। इस मामले में अगर कोर्ट में पेश किया गया पालन प्रतिवेदन महाधिवक्ता प्रशांत सिंह द्वारा वापस नहीं लिया जाता तो सरकार की पूरी कैबिनेट ही अवमानना के दायरे में आ जाती। इससे सरकार के सामने बड़ी असहज स्थिति पैदा हो जाती। दरअसल इस मामले में सरकार की ओर से जो पालन प्रतिवेदन हाईकोर्ट में पेश किया गया था उस पर सुनवाई के दौरान उस समय नया मोड़ आ गया जब मुख्य न्यायधीश ने राज्य सरकार के पालन प्रतिवेदन को देखकर टिप्पणी की कि ऐसे तो पूरी कैबिनेट ही अवमानना की श्रेणी में आ जाएगी। इस टिप्पणी को गंभीरता से लेते हुए महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने हाईकोर्ट में प्रस्तुत पालन प्रतिवेदन वापस लेने की अनुमति मांगी। जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर कर लिया। अब इस मामले में सरकार पुनर्विचार करेगी। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व जस्टिस अंजुली पालो की युगल पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 24 जनवरी को तय की है। उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश ने पूर्व में हाईकोर्ट कर्मियों के लिए उच्च वेतनमान की सिफारिश की थी। मामले पर सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने सरकार की ओर से पालन प्रतिवेदन पेश कर अवगत कराया कि यदि उक्त अनुशंसा को मान लिया गया तो सचिवालय व अन्य विभागों में कार्यरत कर्मियों से भेदभाव होगा और वे भी उच्च वेतनमान की मांग करने लगेंगे। इसकी वजह से कैबिनेट ने कोर्ट द्वारा की गई अनुशंसा को अस्वीकार कर दिया है। मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि राज्य सरकार ने पहले भी यही ग्राउंड लिया था, जिसे अस्वीकार किया जा चुका है।
तत्कालीन न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी ने इसी मामले में पांच सितंबर, 2019 को राज्य सरकार की इस दलील को नकारते हुए मुख्य न्यायाधीश की अनुशंसा पर विचार करने के आदेश दिए थे। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर निरस्त तक करने पड़े हैं।
अब यह चुनाव सरकार के लिए गले की फांस बने हुए हैं। इसके पहले भी कई इसी तरह के मामले सामने आ चुके हैं जिसमें असहज स्थिति बनते देख सरकार को कदम वापस खीचने पड़े हैं।

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