कर्मचारियों की समस्याएं सुलझाने में अफसर लापरवाह

अफसर
  • नहीं करते हैं परामर्शदात्री समिति की बैठकें

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की अफसरशाही से आमजन तो पहले से ही परेशान है, लेकिन अब तो सरकारी कर्मचारी भी इससे अछूते नही रहे हैं। वजह साफ है अफसरों को अपनी ङ्क्षचता रहती है , दूसरों का कुछ भी हो । यही हाल उन परामर्शदात्री समितियों का है, जो कर्मचारियों की समस्याएं सुलझाने के लिए गठित हैं, लेकिन समस्याएं सुलझाना तो दूर, अफसर विभागीय परामर्शदात्री समितियों की बैठक तक नहीं करते हैं। इसकी वजह से कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण ही नहीं हो पा रहा है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि इसका खुलासा सामान्य प्रशासन विभाग के पत्रों के द्वारा लिखे गए पत्रों से स्वत: ही हो जाता है। विभाग द्वारा समय पर बैठकें करने के लिए  वर्ष 2014 से 2022 तक चार पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन नियम अनुसार परामर्शदात्री समिति की बैठकें ही नहीं की जा रही हैं। नियमानुसार विभागों प्रमुख से लेकर कमिश्नर, कलेक्टर और अनुविभागीय अधिकारियों को तीन माह में एक बैठक करना चाहिए। राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर की परामर्शदात्री का यही नियम है। यह व्यवस्था नियमित नहीं चलने से कर्मचारियों ने सरकार पर दबाव बनाया है। इस संदर्भ में कोई आधा दर्जन कर्मचारी संघों ने जीएडी को पत्र लिखा है। इन पत्रों में कर्मचारियों ने परामर्शदात्रियों के प्रति उपेक्षा से होने वाले नुकसानों को गिनाया गया है। तर्क दिया है कि अनेक समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनका समाधान कलेक्टर कमिश्नर और विभाग प्रमुख सचिव अपने स्तर पर कर सकते हैं। जो इनके अधिकार क्षेत्र की नहीं हैं तो शासन स्तर पर प्रस्ताव भेज सकते हैं। यह तभी संभव है, जब परामर्शदात्री हो और कर्मचारी संघों से मांग पत्र लिया जाए।
13 सालों से कई विभागों में बैठकें ही नहीं हुईं
वर्ष 2010 यानि की करीब 13 सालों से कई विभागों में नियमित रूप से परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं हुई हैं। तब आंदोलनों में कर्मचारियों के संघों ने इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। इसके बाद ही सामान्य प्रशासन विभाग ने 2014 से पत्र लिखना शुरू किया था। विभाग प्रमुख सचिवों, कमिश्नरों और कलेक्टरों को पत्र लिखे गये हैं, लेकिन आरोप है कि कोई सकारात्मक हल नहीं निकल पाया है। कर्मचारी कहते हैं कि सुविधाओं के अभाव में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिससे आक्रोश बढ़ रहा है। विभागों से लेकर निगम मंडलों में यही स्थिति है।
कुछ विभागों में हुई पहल
कर्मचारी संघों का निरंतर विरोध बढऩे के बाद आयुष, कृषि जैसे विभागों ने परामर्शदात्रियां शुरू की हैं, लेकिन यह प्रमुख सचिवों तक ही सीमित रहीं है। कमिश्नर कलेक्टरों की अध्यक्षता में होने वाली परामर्शदात्री की अभी भी यहां प्रतीक्षा है। महिला बाल विकास, लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा, गृह, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, खनिज, ऊर्जा, लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण सहित अनेक विभागों में इंतजार है।
नाराजगी की यह है वजह
प्रदेश में कर्मचारियों का कहना है कि गृह भाड़ा, हाउस रेंट, अनाज अग्रिम, लंबित स्वत्वों जैसे भुगतान संबंधी ऐसे मुद्दे लंबित हैं। केन्द्रीय तिथियों में महंगाई भत्ते का समयावधि में लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिससे आर्थिक क्षति हो रही है। अनेक कर्मचारी ऐसे हैं, जो रिटायर्ड हो चुके हैं। इनके पेंशन प्रकरण फाइलों में ही दबं पड़े हैं। अन्य समस्याएं हैं, जो परामर्शदात्रियों के माध्यम से शासन के संज्ञान में लाई जाती है।
इनका कहना
मप्र स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के अध्यक्ष एसबी सिंह का कहना है कि परामर्शदात्री समितियोंं की बैठक नियम से हो। इसलिए निरंतर पत्र लिखे जा रहे है। पिछले सप्ताह फिर जीएडी को पत्र दिया है। नियमित रूप से परामर्शदात्री हो तो अनेक समस्याएं सुलझ सकती है। इसी तरह से सेमी गवर्नमेंट एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष अनिल वाजपेयी का कहना है कि सामान्य प्रशासन के पत्रों का ही विभागों में पालन नहीं किया जा रहा है। विभागों से लेकर निगम मंडलों में निरंतर समस्याएं बढ़ रही है। जीएडी को इस मामले में सख्त एक्शन लेना चाहिए।

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