मोहन की सियासी बांसुरी पर ओबीसी मंत्रमुग्ध

  • भाजपा की यादव मतदाताओं में सेंधमारी की रणनीति में सफल हुए मुख्यमंत्री

गौरव चौहान
नाम मोहन और सरनेम यादव। कान्हा के नाम वाले मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राजनीतिक बांसुरी से ऐसी तान छेड़ी है कि अकेले मप्र ही नहीं पूरे देश के समीकरणों में थिरकन आ गई। आलम यह है कि देश की करीब 52 फीसदी आबादी यानी ओबीसी मतदाता भाजपा की ओर खड़े नजर आ रहे हैं। राजनीति का यह संगीत अब जहां भगवाधारियों को झंकृत कर रहा है, वहीं विरोधियों को इसकी गूंज कम करने को पसीना बहाना होगा।
दरअसल, मप्र के अलावा यूपी और बिहार में ओबीसी मतदाताओं खासकर यादव वोट बैंक में सेंधमारी के लिए भाजपा आलाकमान ने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर मैदान में उतारा है। भाजपा का यह प्रयोग विपक्षी पार्टियों पर भारी पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि डॉ. मोहन जिम्मेदारी मिलने के साथ ही मिशन में जुट गए हैं। पिछले 15 महीनों से वे यादव वोट बैंक के साथ ही पूरे ओबीसी समुदाय का साधने में जुट हुए हैं, इसके लिए वे यूपी, बिहार और राजस्थान में निरंतर दौरे कर रहे हैं। गौरतलब है कि मप्र में कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए हैं। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह उनके पॉलिटिकल, एडमिनिस्ट्रेटिव और डेवलपमेंटल एप्रोच के कायल दिखते हैं। यही वजह के मध्य प्रदेश में मोहन सरकार औद्योगिक निवेश और आधारभूत संरचना विकास के संदर्भ में बेहद कार्य कुशलता के साथ तेजी से कम कर रही है। मुख्यमंत्री ने संगठन के साथ तालमेल कर प्रदेश के सभी बड़े भाजपा नेताओं के साथ बेहतर समन्वय स्थापित किया है। यही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मध्य क्षेत्र इकाई भी उनके काम से संतुष्ट है।
विकास का पोस्टर  बने यादव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की एक पहचान विकास पुरुष के रूप में भी है। उन्होंने अल्प समय में मप्र में विकास को जो गति दी है, उससे वे पूरे देश में विकास का पोस्टर बन गए हैं। डॉ. मोहन यादव के लगभग 15 महीने के कार्यकाल से जाहिर हुआ कि वो तेजी से निर्णय लेने के साथ ही पूरी तरह अपने काम पर फोकस कर रहे हैं। उनका ध्यान अधूरे पड़े कामों और अपने विकास के एजेंडे पर रहता है। उन्होंने जिस तेजी से और जिस संकल्प शक्ति के साथ फैसलों की झड़ी लगा दी है, उससे राज्य में साफ संदेश गया है कि वो अपनी लकीर बड़ी करने में भरोसा रखते हैं। भाजपा के नेता भी मानते हैं कि उनमें अपनी सोच, संघ से तालमेल, भाजपा के एजेंडे को क्रियान्वित करने का संकल्प, नौकरशाही में धमक कायम करने का जज्बा और प्रशासनिक तंत्र को नए नई और सही दिशा में हांकने की क्षमता भरपूर मात्रा में है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार महिला, युवा, किसान और गरीब सभी का ध्यान रख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समाज को इन्हीं चार जातियों में बांटा है। डॉ. मोहन यादव की सरकार विकास और वोट बैंक दोनों को मजबूत करने की कवायद कर रही है।  दरअसल,  मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने औद्योगिक निवेश, शहरी तथा ग्रामीण विकास के संदर्भ में लगातार नवाचार  किया है। प्रदेश की आर्थिक रफ्तार न केवल संतोषजनक है, बल्कि सही दिशा में भी प्रतीत हो रही है।
यादव मतदाताओं में सेंधमारी
भाजपा की कोशिश मोहन यादव के सहारे यादव मतदाताओं में सेंधमारी की है। इसके लिए मोहन यादव के यादव बहुल इलाकों में दौरे और सभाओं भी कर रहे हैं। ऐसे में अब सपा-राजद और उसके गठबंधन के साथियों के सामने यादव मतों के बंटवारे की आशंका खत्म करने और सनातन के मुद्दे की काट करने की चुनौती खड़ी हो गई है। गौरतलब है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व बिहार चुनाव को बेहद गंभीरता से ले रहा है क्योंकि बिहार हिंदी बेल्ट का न केवल दूसरा बड़ा राज्य है बल्कि मंडलवादी राजनीति की प्रयोगशाला भी है। उत्तर प्रदेश और बिहार राष्ट्रीय राजनीति में सबसे निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में भाजपा के समक्ष बिहार के तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए हैं। लालू और मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ते हुए तेजस्वी और अखिलेश यादव ने अहीर राजनीति में जो दबदबा कायम किया था, उसे अब मप्र से चुनौती मिल रही है। देश की ओबीसी पॉलिटिक्स में की बड़ी भूमिका है। ऐसे में हिंदी बेल्ट और पश्चिमी भारत में भाजपा के लिए एसेट मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव साबित हुए हैं। डॉ. मोहन ने पूरे देश में राष्ट्रवादी ओबीसी नेता के रूप में पहचान बनाई है। हरियाणा के अहीर लैंड के बाद अब बिहार में यादव वोट को साधने की जिम्मेदारी सीएम मोहन पर है।
अखिलेश-तेजस्वी की चमक हुई फीकी
देश की ओबीसी पॉलिटिक्स में पिछले एक दशक में बड़ा बदलाव देखा गया। इस बदलाव में मप्र की बड़ी भूमिका है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश के सबसे बड़े ओबीसी नेताओं में स्थापित हो गए हैं। खासतौर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भाजपा के लिए बड़ी असेट साबित हो रहे हैं। हिंदी बेल्ट के राज्यों में यादवों के अनेक बड़े पैकेट हैं। इनमें से हरियाणा का अहीर लैंड चर्चित है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने डॉक्टर मोहन यादव को आगे करके चुनाव अभियान चलाया था, यह प्रयोग सफल रहा है। सूत्रों के अनुसार बिहार में भी डॉ. मोहन यादव वहां की यादव पॉलिटिक्स में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। भाजपा उनका उपयोग उत्तर प्रदेश में भी करेगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राष्ट्रवादी, विकासोन्मुख और नवाचार करने वाले ओबीसी नेता के रूप में पूरे देश में पहचान स्थापित की है। जाहिर है मोहन यादव के रूप में भाजपा को एक ऊर्जावान नेतृत्व मिला है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अखिलेश और तेजस्वी यादव की चमक को फीका कर दिया है।

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