अब भोपाल में मिलेगा आदिवासियों के पारंपरिक भोजन का स्वाद

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भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। अपने गांवों से दूर अगर आप भोपाल शहर में रहते हैं और आपको पारंपरिक आदिवासी भोजन का स्वाद पसंद है तो अब चिंता करने की जरुरत नही है। इसकी वजह है वह पारंपरिक भोजन आपको हर समय उपलब्ध रहेगा , वह भी ठीक उसी पारंपरिक परिवेश में। यह सुविधा जनजातिय संग्रहालय में उपलब्ध कराई जा रही है। इसके लिए जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की 7 जनजातियों के पारंपरिक आवासों का निर्माण कराया जा रहा है। इनमें गोंड, भील, बैगा, कोल, कोरकू, सहरिया और भारिया जनजाति शामिल है। इनके आवासों में इन जनजातियों का पारंपरिक भोजन परोसा जाएगा। खास बात यह है कि यह आवास ठीक उसी तरह के बनाए जा रहे हैं , जिनमें पारंपरिक रुप से आदिवासी समुदाय रहता आया है। गौरतलब है कि इन आवासों के बनाने का काम बीते आठ माह से किया जा रहा है। विभागीय अफसरों के मुताबिक यहां पर आने पर लोगों को उनके रहन-सहन के अलावा, इनके घरों की संरचना की भी जानकारी मिल सकेगी। इसके अलावा साथ ही, इनके खान पान को जानने का भी मौका मिलेगा। अब तक यहां पर बनाए जा रहे मकानों का काम करीब 70 प्रतिशत पूरा हो चुका है। इसमें मुख्य रूप से भील, गोंड, सहरिया के घर बनकर तैयार हैं। इसके अलावा भारिया, कोरकू कोल और बैगा जनजाति के घरों का काम इन दिनों तेजी से जनजातिय संग्रहालय में चल रहा है। यह घर संग्रहालय के पीछे स्थित खाली जगह में बनाए जा रहे हैं। ट्राइबल म्यूजियम के क्यूरेटर अशोक मिश्रा के मुताबिक इस योजना के अंतर्गत प्रदेश की सात जनजातियों के आवास निर्मित किए जा रहे हैं। जहां उनके ट्रेडिशनल फूड को परोसा जाएगा। वहीं, स्वाद बरकरार रखने के लिए खान पान की मूलभूत चीजों को भी आदिवासी खुद अपने इलाकों से ही लाएंगे। इसे बनाने का उद्देश्य यह भी है कि शहर के लोग यह जान सकें कि स्वाद कृत्रिम चीजों में नहीं है वास्तविक स्वाद ग्रामीण परिवेश में भी होता है। इन आवासों को कलाकार ही निर्मित कर रहे हैं, जिन समुदाय के लोगों को काम दिया गया है, वह अपनी सुविधा के अनुसार कार्य कर रहे हैं। हम कह सकते हैं कि इस वित्त वर्ष सभी आवासों का कार्य पूरा हो जाएगा।
पहले से करानी होगी बुकिंग
संग्रहालय के अधिकारियों ने बताया यह रेस्टोरेंट नहीं है। यहां ट्राइब्लस को बुलाएंगे। वह खुद अपने पारंपरिक खान पान की सामग्री और मसाले वहीं से लेकर आएंगे। वह खुद तय करेंगे कि वह कितने लोगों को एक साथ खाना खिला सकते हैं। आम तौर पर यह आंकड़ा प्रतिदिन 8 से15 व्यक्ति प्रतिदिन  जनजाति के अनुसार रहने की संभावना है। इसके लिए पहले से बुकिंग करनी होगी, जिससे समय पर सभी सुविधाओं के साथ भोजन की भी सही से व्यवस्था की जर सके।  यहां पर गोंड का कोदो, कुटकी तुअर दाल। भील का पानीया, चटनी, बैगा का कोदो, कुटकी और कोरकू के महुआ का लड्डू इसमें प्रमुख रुप से शामिल है।

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