अब सरकार अपने हिसाब से खोलेगी प्रमोशन का रास्ता

गौरव चौहान
मप्र में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति पर लगी रोक अब हटने की संभावना है। यदि इस पर अमल किया जाता है, तो हजारों कर्मचारियों का इंतजार खत्म हो जाएगा। पदोन्नति के लिए सरकार ने तीन विकल्प बनाए हैं। पहला कर्मचारियों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन मिलेगा, लेकिन अभी यह साफ नहीं कि वरिष्ठता की गणना किस तारीख से होगी।  दूसरा 2002 से अब तक जिन 60,000 से अधिक एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन मिला है, उनका डिमोशन नहीं किया जाएगा। हालांकि, हाईकोर्ट ने 31 मार्च 2024 को दिए फैसले में कहा था कि 2002 के आधार पर हुए प्रमोशन रद्द किए जाएं, लेकिन सरकार इसका नया समाधान निकालेगी। तीसरा इस प्रमोशन प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामलों के अंतिम निर्णय के आधार पर आगे बढ़ाया जाएगा। यानी पूर्व में पदोन्नति का जो 36:64 फार्मूला बनाया गया था, वह फेल हो गया है।
बता दें कि साल 2002 में तत्कालीन सरकार ने प्रमोशन के नियम बनाते हुए पदोन्नति में आरक्षण लागू किया, ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पिछड़ गए।  जब इस मामले में विवाद बढ़ने लगा तो कर्मचारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कोर्ट से प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने का आग्रह किया, जिसके बाद 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने इस नियम को रद्द कर दिया। लेकिन, बात यहीं खत्म नहीं हुई और तत्कालीन शिवराज सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों के लिए टाइम बाउंड प्रमोशन का फार्मूला तैयार किया था, लेकिन इस पर अमल से पूर्व सरकार गिर गई। कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर 9 दिसंबर, 2020 को उच्च स्तरीय समिति गठित की गई। पदोन्नति का फार्मूला तय करने के लिए 13 सितंबर, 2021 को मंत्री समूह गठित किया गया। मंत्री समूह की सिफारिशें लागू नहीं की गई।  बता दें कि इस अवधि में 80 हजार से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
सपाक्स-अजाक्स में नहीं बन पाई सहमति
गौरतलब है कि मप्र में अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति पर पिछले करीब नौ साल से रोक लगी है। पदोन्नति का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कर्मचारियों की मांगों पर सरकारों ने पदोन्नति का रास्ता निकालने के प्रयास तो किए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। मोहन सरकार ने पदोन्नति पर लगी रोक हटाने को लेकर 36:64 प्रतिशत का फार्मूला प्रस्तावित किया था, जिसमें 36 प्रतिशत पद अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कर्मचारियों के लिए और शेष 64 प्रतिशत पद सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कर्मचारियों के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान था। सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) और मप्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति  अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण इस फार्मूला पर सरकार आगे नहीं बढ़ पाई। फिलहाल सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस फार्मूला में पदोन्नति वाले कुल पदों में से 36 प्रतिशत पर ही एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन दिए जाने की बात कही गई थी,  शेष बचे 64 प्रतिशत पदों पर उनकी पदोन्नति नहीं हो सकती थी। फार्मूला में यह भी प्रावधान किया गया था कि विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक से पहले सरकार यह भी देखेगी की यदि पदोन्नत होने वाले कुल पदों में से 36 प्रतिशत पदों पर एससी-एसटी के कर्मचारी पदस्थ हैं, तो उन्हें पदोन्नति में शामिल नहीं किया जाएगा। सरकार ने स्पष्ट किया था कि यदि दोनों संगठनों के बीच इस फार्मूले पर सहमति बनती है, तो आगे की कार्रवाई की जाएगी, अन्यथा मामला सुप्रीम कोर्ट में पूर्ववत चलता रहेगा। अपर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन संजय दुबे की इस संबंध में सपाक्स और अजाक्स के प्रतिनिधियों के साथ दो-तीन दौर की चर्चा हुई, लेकिन इस फार्मूला पर उनके बीच सामंजस्य नहीं बन पाया।
पदोन्नति की आस में 4 लाख से ज्यादा कर्मचारी
मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। कोर्ट ने 2002 के बाद पदोन्नति पाने वाले आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले के के खिलाफ 12 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पदोन्नति के इंतजार में नौ साल में 80 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जो नौकरी में हैं, वे हताश और निराश हैं। प्रदेश में पदोन्नति के लिए पात्र कर्मचारियों की संख्या 4 लाख से ज्यादा है। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर दिसंबर, 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। समिति की रिपोर्ट पर कई विभागों में कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार दिया गया।  सपाक्स के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर का कहना है कि हमने सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पहले हाई कोर्ट के आदेशानुसार पूर्व में पदोन्नत हुए एससी-एसटी के कर्मचारियों को रिवर्ट किया जाए। महत्वपूर्ण बात यह है कि ओबीसी के क्रीमीलेयर के कर्मचारियों को पदोन्नत नहीं किया जा सकता, यदि सरकार ऐसा करती है, तो यह कोर्ट की अवमानना होगी। साथ ही संख्या के अनुपात में पदोन्नति कैसे दी जा सकती है। अजाक्स के प्रदेश महासचिव एसएल सूर्यवंशी का कहना है कि संविधान के हिसाब से और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पदोन्नति के मामले में मप्र शासन जो भी निर्णय लेगा, हमारे संघ को वह मान्य होगा। सरकार के 36:64 का फार्मूला में अजाक्स को कोई आपत्ति नहीं है। सरकार को नियम बनाकर आगे बढऩा चाहिए। साथ ही रिटायर्ड कर्मचारियों के स्थान पर सरकार को सेवारत कर्मचारियों से बात करना चाहिए।

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