अब गर्माया भोजशाला का विवाद हाईकोर्ट में याचिका स्वीकार

 भोजशाला
  • नमाज रोकने और पूजा का मांगा गया है अधिकार

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे में धार स्थित भोजशाला को लेकर चल रहा विवाद एक बार फिर गर्मा गया है। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की उस जनहित याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें मांग की गई है कि भोजशाला में नमाज पर रोक लगाकर हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिलाया जाए। कोर्ट ने पुरातत्व विभाग, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, मौलाना कमालुद्दीन ट्रस्ट सहित अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किए हैं। दरअसल इस भोजशाला की स्थापना राजा भोज द्वारा की गई थी। जिसमें मां वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित करने की मांग को लेकर इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। जिसे  कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया। इसकी सुनवाई जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस अनिल वर्मा की युगलपीठ द्वारा की जा रही है। यह याचिका संस्था की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन द्वारा पेश की गई है।
पहले से ही इंदौर हाई कोर्ट में 3 याचिकाएं धार भोजशाला को लेकर पेंडिंग हैं।  अब एक नई याचिका लगाई गई है, इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है। इस याचिका में कहा गया है कि मां सरस्वती की प्रतिमा फिर से स्थापित की जाए और स्थान की पूरी वीडियोग्राफी और कलर फोटोग्राफी कराई जाए।  वहीं हिंदू फ्रंट आॅफ जस्टिस के प्रदेश संयोजक याचिकाकर्ता आशिष जनक ने बताया कि सालों से चले आ रहे भोजशाला विवाद में हिंदू पक्ष ने वकील हरिशंकर जैन के जरिए याचिका दायर कर पूरा परिसर हिंदुओं को देने की मांग की और नमाज पढ़ने से रोकने की अपील की है।
हाई कोर्ट से नोटिस जारी
हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने याचिका को स्वीकार करते हुए सभी प्रतिवादियों भारत सरकार, पुरातत्व विभाग और भोजशाला समिति, कमाल मौला सोसायटी को नोटिस जारी किया है। याचिका में भोजशाला की 33 फोटो दाखिल की गई हैं। इसमें देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत के श्लोक लिखे हुए हैं। याचिका में मां वाग्देवी की प्रतिमा लंदन स्थित संग्रहालय से वापस लाने की मांग भी की गई है। यह याचिका हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजना अग्निहोत्री व कुलदीप तिवारी और धार में रहने वाले प्रदेश अध्यक्ष आशीष जनक, आशीष गोयल, मोहित गर्ग, सुनील सारस्वत, रोहित खंडेलवाल ने दाखिल की है।
पिछले 18 सालों में कब क्या हुआ
धार स्थित भोजशाला पर 1995 में मामूली विवाद हुआ। मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज की अनुमति दी गई। 12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। मंगलवार की पूजा रोक दी गई। हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा। 6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। बगैर फूल-माला के पूजा करने के लिए कहा गया। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोला गया। 18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैली। पूरे शहर में दंगा हुआ। राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा सरकार थी। केंद्र सरकार ने तीन सांसदों की कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी में तत्कालीन सांसद शिवराज सिंह, एसएस अहलूवालिया और बलबीर पुंज शामिल थे।
2006 कुछ यूं हुआ था विवाद
3 फरवरी 2006 को शुक्रवार और वसंत पंचमी दोनों ही थे। हिंदुओं ने इस दिन सरस्वती पूजन की तैयारी की थी। उस दिन हजारों लोग धार पहुंचे थे। तब भाजपा नेता भी चाहते थे कि सिर्फ सरस्वती पूजन ही किया जाए। राम जन्म भूमि आंदोलन के अगुवा संत रामविलास वेदांती की अगुवाई में आयोजन शुरू हुआ। दोपहर 12 बजे तक सब ठीक चल रहा था। लेकिन अचानक भोजशाला खाली करने की मुनादी करा दी गई। उनके इस प्रस्ताव पर वहां मौजूद कई नेता भी आसानी से राजी हो गए और ताबड़तोड़ भोजशाला खाली करवाई जाने लगी। पुलिसवालों ने पूजन के लिए बने हवन कुंड में पानी डाला और आग बुझा दी। इधर, विरोध कर रहे हिंदुओं पर इसके बाद  पुलिस की लाठियां बरसाना शुरू हो चुकी थीं। आंसू गैस के गोले छोड़े गए और पथराव भी किया गया। इसमें करीब 1400 लोग घायल हुए, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा की हालत गंभीर थी। पूरे मामले में आज तक कोई भी जांच नहीं करवाई गई। पूरा मामला ही दब गया।
यह है भोजशाला का इतिहास
धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईवी तक 44 वर्ष शासन किया। उन्होंने 1034 में धार नगर में सरस्वती सदन की स्थापना की। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। राजा भोज के शासन में ही यहां मां सरस्वती या वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। 1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी तथा दिलावर खां गौरी की सेनाओं से माहलकदेव और गोगादेव ने युद्ध लड़ा। 1401 से 1531 में मालवा में स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया। मां वाग्देवी की प्रतिमा भोजशाला के समीप खुदाई के दौरान मिली थी। इतिहासकारों के अनुसार यह प्रतिमा 1875 में हुई खुदाई में निकली थी। 1880 में भोपावर का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे अपने साथ लंदन ले गया। 1909 में धार रियासत द्वारा 1904 के ऐन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट जिल्द में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया। धार स्टेट ने ही 1935 में परिसर में नमाज की अनुमति दी थी। स्टेट दरबार के दीवान नाडकर ने तब भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए को शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति वाला आदेश जारी किया था।

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