अब खेतों में फसलें खड़ी होने के बाद भी हो सकेगा सीमांकन

फसलें
  • रोवर सिस्टम पर 56 हजार गांवों का नक्शा समेत अन्य जानकारी अपलोड …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में सीमांकन-बंटवारे में आने वाली परेशानी अब कम हो जाएगी। खेतों में फसलें खड़ी होने के बाद भी सीमांकन हो सकेगा। एक्यूरेसी अच्छी होने वाले जमीन विवादों में कमी आएगी। ये सब होगा भू अभिलेख विभाग की नई व्यवस्था से। विभाग ने अब रोवर मशीन से सीमांकन-बंटवारे की व्यवस्था कर दी है. इससे प्रदेश के 52 जिलों के 4 करोड़ 29 लाख 41 हजार 210 खसरों के जमीनी विवाद जल्द खत्म हो जाएंगे।
रोवर सिस्टम पर 56 हजार गांवों का नक्शा समेत अन्य जानकारी अपलोड कर दी है। अभी हर जिले को एक रोवर सिस्टम मशीन दी गई है। नई तकनीक में ज्यादा एक्यूरेसी होने से इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन मशीन यानि ई.टीएसएम से होने वाले सीमांकन के काम को धीरे-धीरे बंद किया जाएगा। पहले जहां फिक्स प्वॉइंट पर बड़ी मशीन होती थी। अब नई व्यवस्था में रोवर मशीन बाइक पर भी ले जा सकेगी। इसकी एक्युरेसी अच्छी है। रोवर के साथ एक टैबलेट है। इसमें नक्शा अपलोड होता है। हर जिले में लगे टावर के जरिए ये सैटेलाइट से जुड़ी रहती है। सिस्टम को समझने के लिए हर जिले के एक-एक आरआई को प्रशिक्षण दिया गया है। भू अभिलेख अधीक्षक शिवानी पांडेय ने बताया कि रोवर सिस्टम से सीमांकन का परीक्षण हाईवे किनारे किया गया है।
जमीन विवादों में कमी आएगी
खेतों में फसलें खड़ी होने के बाद भी सीमांकन हो सकेगा। एक्यूरेसी अच्छी होने वाले जमीन विवादों में कमी आएगी। ये सब होगा भू अभिलेख विभाग की नई व्यवस्था से। विभाग ने अब रोवर सिस्टम पर 56 हजार गांवों का नक्शा समेत अन्य जानकारी अपलोड कर दी है। अभी हर जिले को एक रोवर सिस्टम मशीन दी गई है। सिस्टम में सभी नक्शे अपलोड किए गए हैं। ईटीएसएम बड़ी मशीन थी, रोबर मशीन बाइक से एक बैग में रखकर कहीं भी ले जाई जा सकती है। इसकी एक्युरेसी बेहतर है।  ऐसे में फिक्स प्वॉइंट ढूंढने में समय बर्बाद नहीं  होगा।  सिस्टम से जुड़े रहने वाले टैबलेट में नक्शे अपलोड हैं। हर जिले में रोवर टावर लगे हैं। ये सैटेलाइट से जुड़े रहते हैं। सीमांकन प्रक्रिया शुरू करते ही यह मशीन जुड़ जाती है।
जियो रेफरेंसिंग पर करता है काम
भू-अभिलेख के अपर आयुक्त आशीष भार्गव ने बताया, रोवर सिस्टम से किसी भी मौसम में फसल जब खड़ी हो, तब भी सीमांकन हो सकेगा। यह आॅटोमेटिक प्रक्रिया है। इसमें जियो रेफरेंसिंग का उपयोग होता है। इसकी एक्यूरेसी ईटीएसएम से बेहतर है। इस तकनीक से आम लोगों को कम समय में सटीक सीमांकन रिपोर्ट मिलेगी। रोवर खुद ही नक्शे डिटेक्ट करता है। यह सिस्टम अभी ट्रायल में है। इसमें और सुधार होने पर और एक्यूरेसी होगी। अभी हर जिले को 1-1 मशीन सैंपल के तौर पर दी गई है। इसे चलाने का प्रशिक्षण भी दिया है। इससे भूमि विवादों में कमी आएगी।
यह है फायदा
रबी या खरीफ की फसल खड़ी होने पर भी सीमांकन आसानी से होगा। अक्षांश-देशांतर मिलान के लिए अलग से काम नहीं करना होगा। सर्वे नंबर डालते ही सिस्टम पूरी जानकारी बता देगा।  एक्यूरेसी बेहतर होने से भूमि विवादों में कमी आएगी।  जियो रेफरेंसिंग का काम पूरा होने पर भूखंड के मैप की जानकारी रजिस्ट्री के साथ ही मिलेगी।
हर प्लॉट के लिए यूएलआईएन
देश के प्रत्येक रहवासी के आधार कार्ड की तरह प्रत्येक भूखंड के लिए भी यूनिक लैंड आइडेंटिफिकेशन नंबर जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह काम भूमि संसाधन विभाग के डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्डस मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम के अंतर्गत हो रहा है। यूनिक आईडी के चौदह अंकों का यह नंबर भूखंड के अक्षांश और देशांतर का उपयोग कर आधुनिक तकनीक से होता है। मध्यप्रदेश के आबादी क्षेत्र के लिए यूएलपीआईएन जारी किया जा चुका है। इससे कृषि और खाद्य सहित अन्य विभागों की सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों को लाभ मिलने में आसानी होगी। जियो रेफरेंसिंग का काम पूरा होने के बाद प्लॉट का मैप सहित अन्य जानकारी रजिस्ट्री के साथ ही मिल सकेगी। रजिस्ट्री को और सरल बनाने के लिए नेशनल जेनेरिक डॉक्यूमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम का क्रियान्वयन भी भूमि संसाधन विभाग कर रहा है।

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