अब विधायकों की दावेदारी बन रही कांग्रेस व भाजपा के लिए मुसीबत

कांग्रेस व भाजपा

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय चुनावों की घोषणा भले ही अभी नहीं हुई है , लेकिन भाजपा व कांग्रेस में इन चुनावों को लेकर बड़े स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। इस बार कांग्रेस व भाजपा पूरी तरह से प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों में अपनी अपनी जीत तय करने के लिए अभी से पूरी ताकत लगा रही हैं। इस बीच दोनों ही दलों के कई विधायक महापौर पद की दावेदारी कर रहे हैं, जिससे दोनों दलों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है। दरअसल कांग्रेस इंदौर में पहले ही अपने विधायक को महापौर पद का प्रत्याशी बना चुकी है, जबकि निकाय चुनाव के प्रभारी उमाशंकर गुप्ता ने बीते दिनों कहा था की भाजपा कुछ जगहों पर विधायकों को महापौर प्रत्याशी बना सकती है।
इसकी वजहों से ही दोनों दलों में महापौर पद के लिए विधायकों की दावेदारी एकदम से बढ़ गई है। इस तरह की दावेदारी की वजह से दोनों ही दलों के एक व्यक्ति एक पद के सिद्दांत के हवा-हवाई साबित होने का न केवल खतरा बन सकता है, बल्कि पार्टी में दावेदारों के बीच कलह की स्थिति भी बन सकती है। जिसका असर पार्टी के चुनावी परिणाम पर पड़ने का भी खतरा पैदा हो सकता है। इस तरह की सर्वाधिक स्थिति खासतौर पर चारों महानगरों में बनती दिख रही है। इसकी वजह से ही अब भाजपा व कांग्रेस में नए स्तर से मंथन को दौर शुरू हो गया है। उधर, भाजपा के सामने सबसे बड़ी परेशानी ग्वालियर -चंबल अंचल में श्रीमंत समर्थकों को लेकर भी बनी हुई है। इस अंचल में दो नगर निगम आते हैं। यह वो अंचल है, जहां से भाजपा के कई दिग्गज नेता आते हैं और वे सभी अपने-अपने समर्थकों को प्रत्याशी बनाए जाने के पक्ष में हैं। भाजपा में तीन महानगरों वाले शहरों में विधायकों की दावेदारी अधिक बनी हुई है। कांग्रेस को विधायकों को टिकट देने में कोई ऐतराज नहीं था , लेकिन जयपुर चिंतन के तहत एक पद-एक व्यक्ति के फॉर्मूले से पार्टी में उलझन की स्थिति बन गई है। जबलपुर में विधायक के तौर पर तरुण भनोत और विनय सक्सेना का नाम भी महापौर पद के दावेदारों में बताया जा रहा है।  दरअसल, विधायकी से ज्यादा महापौर पद को पसंद करने के पीछे महापौर पद का रुतबा है। नगर निगम के बजट पर महापौर का ही पूरा अधिकार रहता है। इसमें भी सियासी तौर पर भोपाल इंदौर जैसे बड़े शहरों का महापौर का विधायकों से अधिक जलबा रहता है। यही नहीं महापौर ही शहर का प्रथम नागरिक भी होता है। इसकी  वजह से ही विधायकों के साथ -साथ कुछ सांसदों का भी मोह इस पद को लेकर रहता है। बताया तो यह भी जा रहा है की कुछ भाजपाई सांसद भी गुपचुप तरीके से इस पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
जारी है मंथन का दौर
भाजपा संगठन 50 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं के अलावा  विधायकों व  सांसदों को महापौर का टिकट देने के पक्ष में नही है, लेकिन इस पर अभी अंतिम निर्णय लिया जाना है। इसके अलावा भाजपा इस चुनाव में नेताओं के परिजनों को दूर रखने के प्रयास कर रही है। भाजपा इस चुनाव में भी अपनी पीढ़ी परिवर्तन की कवायद जारी रखने के पक्ष में है। माना जा रहा है की अगले हफ्ते तक टिकट के मापदंड तय हो सकते हैं। उधर, कांग्रेस ने सर्वे के आधार पर जीत की संभावना वाले चेहरे को प्रत्याशी बनाने की योजना तैयार की है। पार्टी जयपुर चिंतन के बाद जरूर विधायक सांसदों को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। हालांकि अंतिम फैसला अभी नहीं किया गया है। उधर, भाजपा में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीधे तौर पर टिकट वितरण में असरदार हैं, लेकिन उनके समाने सबसे बड़ी चुनौति श्रीमंत और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर खेमे के बीच संतुलन बनाने की है। उधर, कांग्रेस में कमलनाथ व दिग्विजय सिंह का खेमा ही प्रभावी है। उनके सामने पार्टी के क्षत्रपों को साधने की चुनौती नहीं है, पर गोविंद सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह, जीतू पटवारी जैसे नेताओं की पसंद-नापसंद को भी उन्हें ध्यान में रखना होगा।
भोपाल में इन दो चेहरों पर नजर
भोपाल की राजनीति में सक्रिय ओबीसी वर्ग की महिला नेत्रियों की बात करें तो बीजेपी की तरफ से गोविंदपुरा सीट से मौजूदा विधायक कृष्णा गौर हैं ,जो इससे पहले मेयर भी रह चुकी हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस से ओबीसी महिला चेहरे की बात करें तो विभा पटेल का चेहरा सामने है। विभा पटेल भोपाल की पहली महिला महापौर रह चुकी हैं। दोनों ही राजनीति में सक्रिय हैं, हालांकि महापौर पद के लिए अपनी दावेदारी को लेकर खुलकर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन ,अंदर ही अंदर राजनीतिक बिसात बिछने लगी है। यह बात अलग है की दोनों ही दलों में कई महिलाएं इस पद की दावेदारी हैं।
यह हैं भाजपा में दावेदार
महापौर पद के लिए भाजपा में विधायकों की दावेदारी अधिक है। इसमें भी सर्वाधिक जोर भोपाल और इंदौर शहर में लगाया जा रहा है। भोपाल में बतौर विधायक कृष्णा गौर, इंदौर से सुदर्शन गुप्ता और रमेश मेंदोला की दावेदारी है। यह बात अलग है की कई अन्य नेता भी इसके लिए  दावेदारी कर रहे हैं। इनमें खासतौर पर वे नेता हैं जो पूर्व में विधायक पद के प्रत्याशी के दावेदारी रह चुके हैं , लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल सका था। खास बात यह है की ग्वालियर में विधायकों से ज्यादा पूर्व मंत्रियों द्वारा दावेदारी की जा रही है। इनमें माया सिंह का भी नाम शामिल है। लगभग यही स्थिति जबलपुर शहर में भी बनी हुई है। जबलपुर में माना जा रहा है की भाजपा की तरफ से राज्यसभा के लिए दावेदारी कर रहे एक नेता जी को अगर राज्यसभा नहीं भेजा जाता है तो उनका महापौर का टिकट तय है।

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