- यूजीसी ने छात्रों की समस्याओं के निदान के लिए लिया बड़ा फैसला
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। अगर छात्रों ने अधिक फीस वसूली से लेकर दस्तावेजों को न लौटाने की शिकायत की और उस पर संबंधित उच्च शिक्षा संस्थान ने कोई कार्रवाई नहीं की तो संबधित विश्वविद्यालय को भारी पड़ेगा। इस तरह की शिकायतों पर यूजीसी संबंधित संस्थान को देनी वाली आर्थिक मदद को रोक सकती है। इसके लिए हाल ही में नए प्रावधान किए गए हैं। दरअसल हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अपने नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए छात्रों से जुड़ी शिकायतों पर कड़े कदम उठाने का फैसला लिया है। नए बदलावों की वजह से छात्रों से जुड़ी ऐसी शिकायतों के निराकरण के लिए प्रत्येक संस्थान को अब अपने एक सख्त तंत्र तैयार करना होगा। जिसमें उन्हें छात्र शिकायत निवारण समिति (एसजीआरसी) का गठन करना होगा। इसके अलावा लोकपाल की भी नियुक्ति करनी होगी, जो समिति के कामकाज पर पर नजर रखने का काम करेगा। दरअसल यह कदम छात्रों की ओर से विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को लेकर बढ़ रही शिकायतों के बाद यूजीसी ने यह फैसला किया है। इसके बाद अब छात्रों से जुड़ी शिकायतों का निराकरण न करने पर संस्थानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकेगी। इसमें उन्हें दी जाने वाली किसी भी तरह की वित्तीय मदद रोकने सहित ऑनलाइन या दूरस्थ कोर्सों के संचालन पर भी रोक लगाने जैसे कदम उठाए जा सकेंगे। महाविद्यालयों के मामले में उनकी विश्वविद्यालयों से सम्बद्धता को भी वापस लिया जा सकेगा। यदि राज्य विश्वविद्यालय है, तो जरूरत पड़ने पर राज्य सरकार को उस संबंध में जरूरी कार्रवाई करने की सिफारिश भी की जाएगी। फिलहाल यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षण संस्थानों को इस बदलाव के निर्देश दिए हैं। यूजीसी द्वारा इस मामले में नोटीफिकेशन भी जारी किया जा चुका है।
इस तरह की होगी समिति
यूजीसी के नए नियमों के तहत प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान को अपने यहां एक छात्र शिकायत निवारण समिति का गठन करना होगा। जिसमें अध्यक्ष सहित छह सदस्य होंगे। संस्थान का कोई वरिष्ठ प्रोफेसर ही अध्यक्ष होगा, जबकि चार अन्य प्रोफेसर या वरिष्ठ शिक्षक इसके सदस्य होंगे। छात्रों का भी एक प्रतिनिधि इस समिति में रहेगा। जिसका चयन शैक्षिक योग्यता, खेलकूद आदि गतिविधियों में बेहतर प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा। समिति के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल दो साल के लिए होगा, जबकि विशेष आमंत्रित सदस्य का कार्यकाल एक वर्ष के लिए होगा। किसी भी शिकायत को समिति को पंद्रह दिनों के अंदर निपटाना होगा। साथ ही यह अपने लिए गए निर्णय और सिफारिशों से सक्षम अधिकारियों को अवगत कराएगी। इसकी एक प्रति शिकायतकर्ता छात्र को भी देनी होगी। इस दौरान समिति के निर्णय से सहमत न होने पर छात्र लोकपाल के पास शिकायत कर सकेगा।
इस तरह के मामलों में होगी कार्रवाई
दरअसल यूजीसी ने यह कदम देश भर से उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा छात्रों से की जा रही वसूली, फर्जी कोर्सों का संचालन करने, प्रवेश में तय नियमों में की अनदेखी करने और जबरिया दाखिले का दबाव बनाने के लिए उनके प्रमाण पत्रों को जमा कराने, प्रवेश रद्द कराने के बाद फीस वापस न करने के तहत उठाया है। वहीं, नए रेगुलेशन के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों को किसी भी नए कोर्स को शुरू करने जानकारी वेबसाइट पर 60 दिन पहले से देनी होगी। इसके अलावा संबंधित कोर्स की फीस, पाठ्यक्रम की अवधि आदि का भी पूरा ब्यौरा भी देना होगा।
कौन बन सकता है लोकपाल
नए नियमों के मुताबिक प्रत्येक संस्थान को लोकपाल नियुक्ति करना होगा। जिसके पास समिति के निर्णयों को चुनौती दी जा सकेगी। इस पद पर सेवानिवृत्त पूर्व कुलपति, प्रोफेसर सहित सेवानिवृत्त जज आदि को भी नियुक्त किया जा सकेगा। इनका कार्यकाल वैसे तो तीन साल या फिर 70 साल की उम्र तक तक के लिए ही होगी। इस दौरान विशेष मामलों को छोडक़र मूल्यांकन से जुड़े मामलों से लोकपाल को अलग रखा गया है। लोकपाल को किसी भी शिकायत का 30 दिन के भीतर ही निपटारा करना होगा। झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता के खिलाफ भी लोकपाल कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है। वहीं संस्थान को लोकपाल की सिफारिशों को मानना होगा।