अब नर्सिंग और पैरा मेडिकल कॉलेजों की संबद्धता देंगे रीजनल विवि

  • मेडिकल यूनिवर्सिटी से छिनी नर्सिंग-पैरा मेडिकल कॉलेजों की पढ़ाई
  • विनोद उपाध्याय
रीजनल विवि

नर्सिंग कॉलेजों को लेकर लगातार सामने आ रही अनियमितताएं एवं फर्जीवाड़े की घटनाओं के बाद मेडिकल यूनिवर्सिटी से नर्सिंग एवं पैरा मेडिकल कॉलेजों को संबद्धता देने की प्रक्रिया वापस ले ली गई है। अब नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों की संबद्धता रीजनल विवि देंगे। इन पाठ्यक्रमों की परीक्षाएं भी रीजनल विवि कराएंगे। संबंधित क्षेत्र के रीजनल विश्वविद्यालयों की निगरानी में इन कॉलेजों की परीक्षा होंगी और रिजल्ट आएंगे। गौरतलब है कि प्रदेश में पैरामेडिकल के 14 सरकारी और 58 प्राइवेट कॉलेज हैं। सरकारी कॉलेजों में 2256 और निजी पैरामेडिकल कॉलेजों में 14822 सीटें हैं। नर्सिंग के 600 से ज्यादा कॉलेज हैं। हालांकि सीबीआई जांच में उलझे इन कॉलेजों में पिछले तीन शिक्षण सत्रों से एडमिशन नहीं हुए हैं। सीबीआई की दोबारा जांच नहीं हो पाने की वजह से नर्सिंग कॉलेजों में मान्यता भी जारी नहीं हुई है।
गौरतलब है कि मप्र की एकलौती मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जिसकी स्थापना साल 2011 में हुई थी। अब इस पर संकट मंडराने लगा है। प्रदेश के सभी चिकित्सा कॉलेजों को एक यूनिवर्सिटी के दायरे में लाने के लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी। इसके अंतर्गत प्रदेश के मेडिकल कॉलेज नर्सिंग पैरामेडिकल, आयुर्वेद, होम्योपैथिक, यूनानी और योग कॉलेज आते हैं। इन सभी कॉलेजों को मेडिकल यूनिवर्सिटी द्वारा संबद्धता जारी की जाती है। एडमिशन भी इसी यूनिवर्सिटी के माध्यम से होती है। मेडिकल यूनिवर्सिटी ही इन कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के एग्जाम लेती है और उनके परीक्षा परिणाम जारी किए जाते हैं।
अब धीरे-धीरे मेडिकल यूनिवर्सिटी के अधिकारों में सरकार कटौती कर रही है। प्रदेश के नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों को पुरानी परंपरा के अनुसार ही चलाया जाएगा। पहले इन कॉलेजों को रीजनल विश्वविद्यालय संबद्धता जारी करते थे। मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर के रजिस्ट्रार पुष्पराज सिंह बघेल का कहना है कि प्रदेश के नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों को संबद्धता देने के अधिकार अब मेडिकल यूनिवर्सिटी के पास नहीं है। ये कॉलेज अब रीजनल यूनिवर्सिटी के दायरे में आएंगे।
11 साल पहले बदली थी व्यवस्था
जानकारी के अनुसार बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में 11 साल पहले बीडीएस का फर्जीवाड़ा सामने आया था। इस फर्जीवाड़े की जांच एसटीएफ को सौंपी गई थी। तब एसटीएम ने कई दलालों को भी गिरफ्तार किया था। तत्कालीन कुलपति प्रो. निशा दुबे के कार्यकाल में यह फर्जीवाड़ा सामने आया था। उस समय तत्कालीन रजिस्ट्रार संजय तिवारी को इस फर्जीवाड़े के चलते बीयू से हटाया गया था। फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी भी बनाई गई थी। जांच में पता चला था कि बीयू के अधिकारी और दलालों की मिलीभगत से बीडीएस की फर्जी डिग्रियां बांटी गई थी। यह फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद बावस्था में बदलाव हुआ। इसके बाद बीयू समेत प्रदेश के अन्य क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों से मेडिकल, नर्सिंग, पैरामेडिकल, आयुर्वेद होम्योपैथी, यूनानी और योग कॉलेजों को संबद्धता देने के अधिकार छीन लिए थे। इसके बाद ही प्रदेश में मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी और इन कॉलेजों की संबद्धता देने और परीक्षा के अधिकार मेडिकल यूनिवर्सिटी को दिए गए थे। अब एक बार फिर पुराने ढर्रे पर व्यवस्था को ले जाया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश के पैरामेडिकल कॉलेजों में 24 करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला पकड़ में आ चुका है। इस घोटाले को लेकर भी हाईकोर्ट में याचिका में सुनवाई वल रही है। इन कॉलेजों से घोटाले की यह राशि वसूलने के आदेश कोर्ट ने सरकार को दिए है। इधर, फर्जी नर्सिंग कॉलेजों के घोटाले की जांच तो पूरी ही नही हो पा रही है।

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