अब लोकसभा में क्लीन स्वीप करने की तैयारी

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  • मप्र में कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा आजमाएगी विधानसभा वाला फॉर्मूला

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। हमेशा मिशन मोड में रहने वाली भाजपा ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के ऐलान के बाद से ही लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। मप्र विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद अब भाजपा राज्य में लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप की तैयारी में जुट गई है। भाजपा का लक्ष्य है कि प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों को जीता जाए। इसके लिए पार्टी में रणनीति बनने लगी है। गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश की 28 लोकसभा सीटों पर भाजपा का और एक लोकसभा सीट छिंदवाड़ा पर कांग्रेस का कब्जा है।
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कब्जे वाली छिंदवाड़ा सीट समेत सभी 29 सीटों को जीतने के लिए भाजपा विधानसभा चुनाव की रणनीति पर ही काम करेंगी। जानकारों की मानें तो विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की घेराबंदी की जाएगी। ऐसे में पार्टी ने यहां पर अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अभी से ही मेहनत करना शुरू कर दिया है। तभी जाकर भाजपा के लिए लोकसभा की राह आसान हो पाएगी। 2003 के बाद भारतीय लोकतंत्र में यह देखा गया है कि विधानसभा और लोकसभा में एक जैसे पैटर्न पर चुनाव नहीं होते हैं। पिछले चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के अलावा कर्नाटक में भी अपनी सरकार बना ली थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। भाजपा पार्षद से लेकर लोकसभा चुनाव में पूरी मेहनत करती है। वह किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेती है। खास बात यह है कि छोटे चुनाव से लेकर बड़े चुनाव में पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा का साथ मिलता है। जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का भी हौसला बुलंद हो जाता है। पार्टी के आलाकमान की कोशिश है कि वे इस जीत को लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रखें। पीएम मोदी के नेतृत्व में पार्टी एक बार फिर चुनाव लड़ने जा रही है। नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही भाजपा मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का किला भेदने में सफल हो पाई है। भाजपा की कोशिश है कि लोकसभा चुनाव में भी वह इस तरह की जीत को बरकरार रखे।
मिशन 29 अपने हाथों में लिया संगठन ने
भाजपा लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा चुनाव की तरह अपना प्रदर्शन दोहराना चाहती है, इसलिए प्रदेश संगठन ने मिशन 29 अपने हाथों में लिया है। यानी कि सूबे की सभी 29 सीटों को जीतकर लोकसभा में मध्यप्रदेश से कांग्रेस मुक्त कराया जा सके। जानकारों की मानें तो भाजपा अगले लोकसभा चुनाव के लिए कई आरक्षित सीटों पर इस बार नये चेहरे उतार सकती है। इनमें भिंड, देवास और उज्जैन में भाजपा नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। इसी तरह छिंदवाड़ा, बालाघाट में भी किसी नए नेता को संसदीय चुनाव लड़वाया जा सकता है।
इसी तरह सीधी, सतना, जबलपुर, मुरैना, ग्वालियर, सागर में भी लोकसभा चुनाव के लिए किसी नए नेता को मैदान में उतारा जा सकता है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता चुनाव हारे थे। केवल कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में अपने पुत्र नकुल नाथ को जिताकर कांग्रेस की लुटिया पूरी तरह से डूबने से बचाई थी। इस बार भाजपा छिंदवाड़ा संसदीय सीट को भी कांग्रेस से छीनना चाहती है, साथ ही वह विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की हार को भी ध्यान में रखकर आदिवासी और अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के लिए रणनीति बनाएंगी। जानकारों का कहना है कि पार्टी इन सभी सीटों में बूथ स्तर पर अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने अपने बड़े नेताओं को मैदान में उतारेगी। कहा जाता है कि भाजपा ऐसी पार्टी है जिसकी हर चाल चुनावी होती है। पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों समेत लोकसभा के 21 सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा था, जिनमें से 9 सांसद हार गए हैं। अब चुनाव हारने वाले सांसद 2024 में टिकट की रेस से ऐसे ही बाहर माने जा रहे हैं, जो जीतकर आए हैं, उन्होंने भी संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है यानी भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने वाले सांसदों को दिल्ली से सूबे की सियासत में भेज दिया है। इसे एंटी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए भाजपा की टिकट काटने वाली रणनीति से जोडक़र भी देखा जा रहा है।
लोकसभा में भी अंचलवार रणनीति
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अंचलवार रणनीति बनाई थी। विशेषकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को घेरने के लिए पार्टी ने अपने ऐसे नेताओं को जिम्मेदारी दी थी, जो चुनावी प्रबंधन में माहिर थे। इसी तरह आरक्षित सीटों के लिए भी अलग से रणनीति बनाई गई थी। परिणाम यह रहा कि कांग्रेस बदलाव की बात करती रही और मतदाताओं ने भाजपा को दो तिहाई बहुमत देकर एक बार फिर से सूबे को सत्ता सौंप दी। प्रदेश को आरक्षित सीटों पर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डाली जाए तो एससी वर्ग की 38 सीटों में से भाजपा ने इस बार 30 पर जीत दर्ज की है। इसी तरह एसटी की 47 सीटों में से भाजपा को 24 और कांग्रेस ने 22 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 47 एसटी सीटों में से 37 पर विजय हासिल कर सरकार बनाने में सफलता पाई थी। तब भाजपा को मात्र 15 एसटी आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में ही सफलता मिल पाई थी। यानि दोनों आरक्षित वर्ग की 82 सीटों में से भाजपा के पाले में 50 सीटें गई, जो पिछले चुनाव की तुलना में 17 सीटें ज्यादा थीं।

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