अब शहद बनेगा वनवासियों की कमाई का बड़ा जरिया

शहद

– प्रदेश में तेंदूपत्ता की तर्ज पर अब होगी शहद की खरीदी

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/ बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश सरकार लगातार वनवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए कई तरह के कदम भी उठाए जा रहे हैं। सरकार ने अब उन्हें और आर्थिक रुप से मदद पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर शहद खरीदने का फैसला किया है। इस शहद को वनवासियों द्वारा जंगलों से एकत्रित की जाती है। अभी तक स्थानीय व्यापारियों द्वारा इस शहद को औने पौने दामों में खरीदा जाता है और फिर वे उसे बड़ी कंपनियों को बेंचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं, जबकि वनवासियों को चंद कीमत ही मिल पाती है।  यही वजह है की अब सरकार ने तय किया है की वनवासियों से वन विभाग द्वारा तेंदूपत्ता की तर्ज पर शहद की खरीदी की जाएगी। इससे आमजन को जंगल का प्राकृतिक शहद आसानी से मिल सकेगा। इसमें खास बात यह है की शहद को प्रोसेसिंग कर बाजार में बेचने पर जो मुनाफा मिलेगा उसमें भी आदिवासी की हिस्सेदारी रहेगी।  अभी सीमित मात्रा में राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा शहद की खरीदी की जाती है, लेकिन इस जंगल की प्राकृतिक शहद की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है , जिसकी वजह से अब वनोपज संघ को पांच गुना तक शहद की खरीदी करनी पड़ रही है। इस शहद की मांग में वृद्धि इससे ही समझी  जा सकती है की पहले तीन से पांच क्विंटल शहद की खरीदी की जाती थी , लेकिन अब वनोपज संघ को इस साल अभियान चलाकर समितियों से 24 क्विंटल शहद की खरीदी करनी पड़ी है। इसमें से भी अब तक करीब 70 फीसदी शहद की बिक्री हो चुकी है। इसके बाद भी मांग कम न हीं हुई है। दरअसल जंगलों से जो शहद मिलती है उसमें प्राकृतिक रुप से औषधीय गुण अधिक होते हैं। शहद खरीदी के लिए वन विभाग द्वारा दर तय की जाएगी। इसके अलावा उन्हें होने वाले लाभ में से  बोनस बाद में मिलेगा।
वन समितियों का लिया सहयोग
वनोपज संघ ने इस बार ग्राम वन समितियों और वन-धन केंद्रों के कार्यकर्ताओं का सहयोग लिया। जंगल से शहद जुटाने वालों को समझाया कि अभी बाजार से अधिक दाम मिलेगा और बाद में बोनस भी। इसलिए 24 क्विंटल शहद इकठ्ठा हो गया। इससे पहले ग्रामीण संघ को देने की बजाय व्यापारियों को शहद बेच देते थे।
सुदर पैंकिग में उपलब्ध
वनोपज संघ ने इस वर्ष 270 रुपए प्रति किलो की दर से शहद खरीदा है। इसका भोपाल के बरखेड़ा पठानी स्थित औषधि प्रसंस्करण केंद्र में प्रसंस्करण किया गया। इस शहद को कांच के जार में पैक कर छह सौ रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। अफसरों का कहना है कि शहद को साफ करने सहित अन्य प्रक्रिया और जार की कीमत मिलाकर विक्रय मूल्य तय किया जाता है। उधर, श्योपुर अब जंगल भी शहद के लिए भी प्रदेशभर में मशहूर हो रहा है। यहां सामान्य वन मंडल के द्वारा बेचे गए शहद की खपत के बाद यहां से लगभग 10 क्विंटल से ज्यादा शहद की डिमांड की गई है। इसके बाद वन विभाग ने श्योपुर में शहद का लक्ष्य भी 18 क्विंटल से बढ़ाकर 20 क्विंटल कर दिया है। विभाग की यहां पर खुद की शहद प्रोसेसिंग यूनिट है। खास बात यह है की श्योपुर शहद के नाम से बिक रहे शहद की जांच भी कराई गई है। इसमें इसे शुद्ध व मानकों पर खरा मानते हुए लैब से मार्का जारी कर दिया गया है। यानी अब इसे बाजारों में बेचने में कोई परेशानी व अनुमति अलग से नहीं लेनी होगी।
बिना आग के सहारे तोड़ी जाती है शहद
सामान्य वन मंडल के जंगलों में आग से धुआं कर शहद तोड़ने  की इजाजत नहीं है। क्योंकि इससे जंगल में आगजनी का खतरा रहता है। ऐसे में समूहों की महिलाएं शहद को डंडों व पेड़ पर चढ़कर ही तोड़ पाती हैं। इसमें इनके पति व भाई भी इनका सहयोग करते हैं। इसमें उन्हें करीब दो घंटो का समय लगता है।

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