अब पूरी तरह से निजी हाथों में होंगी सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं

सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं
  • चिकित्सकों से लेकर कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं अस्पताल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश ऐसा राज्य हैं जहां पर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद खराब है। अधिकांश अस्पताल चिकित्सकों के साथ ही अन्य तरह के कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से प्रदेशवासियों को बीमार पडऩे पर निजी अस्पातलों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस स्थिति से निपटने में सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है। अब इसका तोड़ निकालने के लिए  अभी के सभी सिविल अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को आउटसोर्स पर देने की तैयारी है। इसमें डॉक्टर से लेकर सभी कर्मचारी आउटसोर्स कंपनी और अन्य संसाधन सरकार के होंगे। अस्पताल का प्रबंधन कंपनी करेगी। हालांकि, उसके ऊपर नियंत्रण प्रशासन विकास खंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) का रहेगा। शुल्क और सुविधाओं का निर्धारण सरकार के अधीन ही रहेगा। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में कुल 161 सिविल अस्पताल और 348 सीएचसी हैं। सरकार खुद विधानसभा में स्वीकार कर चुकी है कि प्रदेश में विशेषज्ञों की अत्यधिक कमी के कारण पदपूर्ति में कठिनाई हो रही है, 3615 पदों के विरूद्ध मात्र 674 विशेषज्ञ उपलब्ध है तथा विशेषज्ञों के शत प्रतिशत पद पदोन्नति से भरे जाने का प्रावधान है, मई 2016 से पदोन्नति के संदर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय में प्रचलित प्रकरण के कारण पदोन्नति प्रक्रिया विलंबित है। अत: विशेषज्ञों के पद भरे जाने में कठिनाई है। विभाग रिक्त पदों की पूर्ति हेतु निरंतर प्रयास कर रहा है, उपलब्धता अनुसार चिकित्सक एवं सहायक स्टाफ के पदपूर्ति की कार्यवाही की जा रही है, लेकिन पदपूर्ति कग तक कर ली जाएगी यह बताना संभाव नही है। इससे ही प्रदेश के अस्पतालों की दशा समझी जा सकी है।
54 चिकित्सकीय संस्थानों में पदों पर भर्ती
उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने बीते रोज 54 चिकित्सकीय संस्थानों में पदों पर भर्ती के साथ ही अन्य बड़े विषयों को लेकर मुख्य सचिव अनुराग जैन से चर्चा की है। इस दौरान अंतर्विभागीय समन्वय नहीं होने से उलझे मामलों को लेकर चर्चा की गई। इसमें ऐसे मामले भी बातचीत हुई जो बजट के अभाव में अटके हैं। शुक्ल ने 454 चिकित्सकीय संस्थानों में पदों की स्वीकृति के साथ ही, मेडिकल कॉलेजों में वेतन संरक्षण (पे-प्रोटेक्शन) के प्रस्ताव को प्राथमिकता देने के लिए कहा है। उन्होंने मेडिकल कालेजों में सहायक प्राध्यापक के पदों पर भर्ती की अधिकतम आयु सीमा 40 की जगह 50 वर्ष करने के संबंध में भी चर्चा की। एक अन्य बैठक में उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में रेडियोलाजिस्ट की सेवाएं उपलब्ध कराने और सीएचसी को सुदृढ़ करने के संबंध विभाग के अधिकारियों से बातचीत की।
पैरामेडिकल काउंसिल में अटके पंजीयन
इस दौरान पैरामेडिकल काउंसिल के पुराने अधिनियम को फिर से पूर्ववत करने को लेकर भी चर्चा की है। दरअसल, इस संबंध में भारत सरकार भी काउंसिल का गठन कर रही है। इस कारण राज्य सरकार ने इसी वर्ष अप्रैल में अपनी काउंसिल भंग कर दी थी। केंद्र की कांउसिल अभी तक नहीं बनी है। इस कारण न तो नए कालेज खुल पा रहे हैं और न ही पुराने कालेजों का पंजीयन हो पा रहा है। सत्र 2023-24 में ऐसी स्थिति रही। अब फिर से काउंसिल नहीं बनी तो सत्र 2024-25 की मान्यता भी उलझेगी। रीवा मेडिकल कालेज, सतना मेडिकल कालेज अस्पताल और इंदौर के एमवाय अस्पताल के उन्नयन और निर्माण हेतु परियोजना परीक्षण समिति से जल्द अनुमोदन। वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट प्रविधान में अस्पतालों के उन्नयन, स्वास्थ्य अधोसंरचनाओं के विकास के लिए बजट की स्वीकृति।

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