- 83 दिन की आचार संहिता हटते ही सरकार एक्शन में
लोकसभा चुनाव की 83 दिन की आचार संहिता हटते ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उनकी सरकार एक्शन में आ गई है। सीएम ने अफसरों के सामने अपना रोडमैप रख दिया है कि प्रदेश में सुशासन और विकास उनकी पहली प्राथमिकता है। इसलिए अब सरकार का पूरा फोकस विकास पर रहेगा, ताकि प्रदेश में औद्योगिक विकास हो सके और हर युवा को रोजगार मिल।
विनोद कुमार उपाध्याय/ बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही मिशन मोड में काम कर रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आचार संहिता की पाबंदिया समाप्त होते ही एक बार फिर एक्शन में आ गए हैं। इसी के तहत 7 जून को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गेल (इंडिया) लिमिटेड द्वारा सीहोर जिले के आष्टा तहसील में लगाई जाने वाली देश की सबसे बड़ी एथेन क्रैकर प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा इस परियोजना के माध्यम से स्थानीय रोजगार का सृजन होगा और प्रदेश के औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलेगा। सीएम मोहन ने परियोजना के लिए जरूरी भूमि के अधिग्रहण को लेकर जल्द कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि सीहोर जिले के आष्टा तहसील में लगभग 60,000 करोड़ के निवेश से बनने वाली यह परियोजना देश की सबसे बड़ी एथेन क्रैकर परियोजना होगी। इस परियोजना में ग्रीन फील्ड पेट्रोकेमिकल परिसर भी प्रस्तावित है। इसके अंतर्गत एलएलडीपीई, एचडीपीई, एमईगी और प्रोपीलीन जैसे पेट्रोकेमिकल्स का उत्पादन होगा। इस परियोजना के माध्यम से निर्माण अवधि के दौरान 15,000 व्यक्तियों तथा संचालन अवधि के दौरान लगभग 5,600 व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा।परियोजना में 70 हेक्टेयर का टाउनशिप भी प्रस्तावित है। परियोजना का भूमिपूजन आगामी फरवरी तक तथा वाणिज्यिक उत्पादन वित्त वर्ष 2030-31 में प्रारंभ होने की संभावना है। इस परियोजना में ग्रीन फील्ड पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स भी प्रस्तावित है। इसके अंतर्गत एलएलडीपीई, एचडीपीई, एमईगी और प्रोपीलीन जैसे पेट्रोकेमिकल्स का उत्पादन होगा। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से निर्माण अवधि के दौरान 15,000 व्यक्तियों और संचालन अवधि के दौरान लगभग 5,600 व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा। प्रोजेक्ट में 70 हेक्टेयर का टाउनशिप भी प्रस्तावित है। परियोजना का भूमिपूजन आगामी फरवरी तक और वाणिज्यिक उत्पादन वित्त वर्ष 2030-31 में शुरू होने की संभावना है।
गौरतलब है कि प्रदेश में औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए नई इंडस्ट्री लगाने वालों के लिए कई तरह की सहूलियतें दी जा रही हैं। प्रदेश सरकार ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। इसके अलावा माइनिंग, सीमेंट और वस्त्र उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है। मप्र में भाजपा सरकार ने कृषि विकास दर 25 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। अब दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अमूल के साथ मिलकर काम करने की योजना है। औद्योगिक विकास हो सके और हर युवा को रोजगार मिल। इसके तहत प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए चार नए आइटी पार्क शुरू किए जा रहे हैं। उज्जैन, रीवा में आइटी पार्क बनाया जाएगा। भोपाल में दूसरा आइटी पार्क बनाया जाएगा। अब यह स्मार्ट सिटी परिसर में बनाया जाएगा। इंदौर में चौथे आइटी पार्क का काम शुरू हो गया है। यह कंपनियों की जरूरतों के अनुसार बनाए जा रहे हैं, ताकि बड़ी कंपनियां आ सकें। इससे युवाओं को आइटी सेक्टर में नौकरी करने के लिए अन्य राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। चुनाव के बाद अब विकास कार्य शुरू हो रहे हैं। आइटी पार्क सरकार की प्राथमिकता में हैं। क्योंकि इंदौर को छोड़ दें तो अन्य शहर इस क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। इसलिए उद्योग विभाग ने नए आइटी पार्क बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। अधिकारियों के अनुसार उज्जैन में आइटी पार्क इंजीनियरिंग कॉलेज के पास बनाया जाएगा। 2.5 हेक्टेयर जमीन चिह्नित कर ली गई है। एक साल में तैयार होने की संभावना है। रीवा में 50 हजार वर्गफीट में शहर में ही पार्क बनाया जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि भोपाल में नया आइटी पार्क शहर के बीच में स्मार्ट सिटी परिसर में बनायो जाएगा। इसके लिए स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन से बात की गई है। कॉर्पोरेशन जितनी जमीन उपलब्ध कराएगा उस हिसाब से उद्योग विभाग भुगतान कर देगा। इसके पहले आजीपीवी के पास बड़बई में आइटी पार्क बनाया गया है, लेकिन वह क्षेत्र शहर से दूर होने के कारण कोई बड़ी कंपनी नहीं आई है। अधिकारियों का कहना है कि आइटी कंपनी में काम करने वाले युवा हायर क्लास के होते हैं। उन्हें अच्छा एबिएंस और नाइट कल्चर भी रास आता है। इसलिए बड़ी कंपनियां ऐसी जगह ऑफिस खोलना ज्यादा पसंद करती हैं जो आधुनिक सुख सुविधाओं वाला और विकसित हो। इंदौर में जल्द ही चौथा आइटी पार्क शुरू हो जाएगा। यह परदेशीपुरा में बने इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्पलेक्स में 50 हजार वर्गफीट में बनाया जा रहा है। यहां कंपनियां सीधे आकर काम शुरू कर सकेंगी। सुविधाएं सरकार दे रही है।
अब हर क्षेत्र में औद्योगिक विकास
प्रदेश में अभी स्थिति यह है कि औद्योगिक विकास कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। लेकिन अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जो रणनीति बनाई है, उसके तहत अब हर क्षेत्र में औद्योगिक विकास किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने जिला स्तर पर इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन भी शुरू कर दिया है। उद्योग को प्रोत्साहित करना मप्र सरकार का घोषित उद्देश्य है और इसके कुछ आशाजनक परिणाम भी मिले हैं। मप्र उद्योग विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य से कुल निर्यात 2003-04 में लगभग 6,000 करोड़ रुपये से बढक़र 2022-23 में 65,000 करोड़ रुपये हो गया। पीथमपुर विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के अलावा, मप्र के इंदौर में 4 आईटी एसईजेड हैं- क्रिस्टल आईटी पार्क और तीन निजी संचालित, इन्फोसिस, टीसीएस और इम्पेटस। मप्र आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार 2021-22 और 2022-23 के बीच द्वितीयक क्षेत्र (विनिर्माण, निर्माण, उपयोगिताओं का निर्माण आदि) का आकार 5.42 प्रतिशत बढऩे की उम्मीद थी। सर्वेक्षण में कहा गया है, राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है, जिसे विकास के उच्च स्तर पर ले जाने के लिए औद्योगीकरण नितांत आवश्यक है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में सूक्ष्म और लघु एवं मध्यम उद्योगों की विशेष भूमिका है। फिर भी, राज्य की अर्थव्यवस्था में उद्योग का योगदान कम है और वास्तव में पिछले दशक में इसमें गिरावट आई है। 2011-12 में उद्योग ने राज्य की जीडीपी में 27 प्रतिशत का योगदान दिया, 2021-22 में यह आंकड़ा गिरकर 19 प्रतिशत हो गया। वहीं, 2021-22 में कृषि का योगदान करीब 48 फीसदी रहा। 2011-12 और 2021-22 के बीच विनिर्माण में 6.22 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो इसके पड़ोसी राज्यों गुजरात (10.8 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (7.05 प्रतिशत), राजस्थान (6.97 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (6.37 प्रतिशत) से कम है। केवल महाराष्ट्र में कम वृद्धि (3.32 प्रतिशत) दर्ज की गई। जबकि सरकार अपनी उपलब्धियों में एमएसएमई विकास का हवाला देती है। राज्य सरकार के थिंक टैंक अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ गुड गवर्नेंस एंड पॉलिसी एनालिसिस (एआईजीजीपीए) द्वारा राज्य एमएसएमई विभाग के सहयोग से किए गए एक अध्ययन में इस साल कहा गया है कि राज्य के एमएसएमई को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें लिखा है, वित्त तक सीमित पहुंच एमएसएमई के विकास में एक महत्वपूर्ण बाधा है। उद्योग विशेषज्ञ इस क्षेत्र में हुए लाभ को स्वीकार करते हैं लेकिन कहते हैं कि सरकार ने राज्य की क्षमता को अनुकूलित करने के लिए पर्याप्त तत्परता के साथ काम नहीं किया है, साथ ही वे इन रुझानों को कृषि पर प्रशासन के निरंतर ध्यान के रूप में वर्णित करते हैं। उद्योगपतियों ने बताया कि सरकारी नीतियों से राज्य के उद्योग जगत में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। हालांकि, सरकार इससे इनकार करती है। राज्य उद्योग विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उसने व्यवसाय के हित में लाइसेंसिंग से लेकर भूमि अधिग्रहण तक नीतिगत ढांचे को आसान बनाने की कोशिश की है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, लाइसेंस प्रणाली से लेकर उद्योगपतियों के लिए जमीन की उपलब्धता तक, हमने पूरी प्रक्रिया को आसान बनाया है। सरकार समझती है कि कृषि राज्य सकल घरेलू उत्पाद में एक बड़ा हिस्सा प्रदान करती है लेकिन उद्योग रोजगार की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, व्यापार उद्यमों को परेशानी मुक्त बनाने वाली उद्योग-अनुकूल नीति पहल के बाद पिछले दो दशकों में राज्य में औद्योगिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है।
गुजरात जैसा मप्र बनाने का लक्ष्य
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मप्र में गुजरात जैसा विकास करना चाहते हैं। उनका कहना है कि रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों की बात हो, उद्योग-धंधों की बात हो या फिर पर्यटन, हर स्थिति में गुजरात मॉडल ही सामने होता है। मेरा लक्ष्य है कि देश में गुजरात की तरह मप्र भी जाना जाए। उनकी प्राथमिकता है की मप्र की साढ़े आठ करोड़ जनता ही मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है। जन-कल्याण, सुशासन और विकास मेरी प्राथमिकता है। मोदी जी की गारंटी पूरी करना और संकल्प-पत्र में जनता से किए गए वादों को धरातल पर उतारना मेरी प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री द्वारा निश्चित की गईं चार जातियां गरीब, किसान, युवा और महिला का कल्याण मेरी प्राथमिकता है। मप्र आत्मनिर्भर और विकसित भारत का आधार-स्तंभ बने, यह मेरी प्राथमिकता है। बिना थके, बिना रुके मप्र के कल्याण के लिए अनवरत कार्य करना ही मेरी प्राथमिकता है। किसान मप्र की रीढ़ और मुकुट हैं। पिछले 20 वर्षों में भाजपा सरकार ने प्रदेश को बीमारू से बेमिसाल राज्य बना दिया है। इसमें सबसे बड़ा योगदान किसानों का ही है। प्रदेश को सात बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिलना इसका प्रमाण है। बात परंपरागत खेती की हो, प्राकृतिक खेती की हो या फिर श्रीअन्न उत्पादन की, हमारे किसान हर मोर्चे पर अग्रणी हैं। हमारे शरबती गेहूं, चिन्नौर चावल और सुंदरजा आम के स्वाद का लोहा दुनियां मान रही है। ऐसे पराक्रमी किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए डबल इंजन सरकार लगातार प्रयास कर रही है। उधर, उद्योग विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि औद्योगिक विकास दर 24 प्रतिशत है, जो 2001-02 में 0.61 प्रतिशत थी। विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य भारत में मप्र का स्थान इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने की काफी संभावनाएं प्रदान करता है। वे कहते हैं कि एक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि अधिकांश उद्योग कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है जबकि राज्य का अधिकांश हिस्सा इसके लाभ से अछूता है। राजस्थान के बाद, मप्र भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और काफी विविधता लिए हुए है। फिर भी, मप्र के उद्योग विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भोपाल और इंदौर के आसपास के औद्योगिक क्षेत्र राज्य में 80 प्रतिशत औद्योगिक विकास को संचालित करते हैं। ग्वालियर, जबलपुर और रीवा अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में से हैं। इंदौर स्थित अटल बिहारी वाजपेयी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की प्रोफेसर और औद्योगिक अर्थशास्त्र की विशेषज्ञ अलका अरोड़ा ने कहा, राज्य में धीमे औद्योगीकरण का कारण क्षेत्रीय असमानताएं हैं। उन्होंने कहा, मप्र प्रारंभ से ही कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहा है। कुछ क्षेत्रों में सीमित कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के कारण, उद्योग भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। गोविंदपुरा और देवास राज्य के सबसे पुराने औद्योगिक केंद्रों में से हैं लेकिन कहा जाता है कि उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इंदौर से 40 किलोमीटर दूर स्थित देवास राज्य के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है। भोपाल शहर के मध्य में स्थित गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र पुराना है, लेकिन छोटा है। देवास को छह औद्योगिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, यहां लगभग 1,200 छोटे और बड़े उद्योग काम करते हैं।
एक उद्योग हॉटस्पॉट के रूप में देवास का उभार 1969 के करीब हुआ, जब केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यहां बैंक नोट प्रेस शुरू की थी। कई उद्योगों ने इसका अनुसरण किया लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विकास धीमा हो गया है। केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय द्वारा तैयार देवास की एक प्रोफाइल के अनुसार, 70 के दशक के अंत और 80 के दशक की शुरुआत में तेजी से औद्योगीकरण हुआ लेकिन अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के कारण, 80 के दशक के अंत से गति धीमी हो गई है। इसमें आगे कहा गया है, अभी भी बड़ी कंपनियां पर्याप्त मुनाफा दे रही हैं। देवास इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक खंडेलिया ने कहा कि यहां औद्योगिक विकास 1975 के आसपास शुरू हुआ, जिसके बाद टाटा, कमिंस, सन फार्मा, जॉन बीयर, गजरा गियर, गेब्रियल जैसी कंपनियों ने यहां अपनी स्थापना की। उन्होंने आगे कहा, धीरे-धीरे निजी जमीन महंगी हो गई और सरकार ने देवास में उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में, देवास के सामने सबसे बड़ी चुनौती उद्योगों के लिए भूमि की अनुपलब्धता है। अब यहां कोई जमीन नहीं बची है, इसलिए उद्योग विकसित और विस्तारित नहीं हो पा रहे हैं। पीथमपुर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने कहा, इंदौर-भोपाल जैसे अन्य स्थान निवेशकों को आकर्षित नहीं करते हैं। और अन्य जगहें इतनी अच्छी तरह से जुड़ी हुई नहीं हैं और बुनियादी ढांचा भी उतना अच्छा नहीं है।पीथमपुर मप्र का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है, जहां वर्तमान में 1,250 से अधिक उद्योग संचालित हैं। मंडीदीप की तरह, पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के कर्मचारी रोजाना 30 किमी दूर स्थित इंदौर से आते-जाते हैं। डाबर के साथ काम करने वाले एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, मैंने पिछले एक दशक से यहां काम किया है और इस क्षेत्र को मप्र के औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित होते देखा है। उन्होंने कहा, यहां चाय की दुकानें और रेस्तरां जैसे छोटे व्यवसाय खुल गए हैं, जो सैकड़ों लोगों को रोजगार देते हैं। और इंदौर से निकटता लोगों को यहां काम करने के लिए आकर्षित करती है। इंदौर भारत का एकमात्र शहर है जहां आईआईटी और आईआईएम दोनों हैं और दर्जनों इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। यह लगातार कई वर्षों से भारत के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में भी शीर्ष पर है। खंडेलिया ने कहा, इन बड़े संस्थानों और दिल्ली और मुंबई के साथ आसान कनेक्टिविटी के कारण, इंदौर मप्र का उद्योग केंद्र बन गया, लेकिन इसे बदलने की जरूरत है, क्योंकि राज्य के समग्र औद्योगिक विकास के लिए उद्योगों का विकेंद्रीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि औद्योगीकरण से शहर का विकास भी होता है। उन्होंने कहा, देवास में जो विकास हुआ है, उसके पीछे यहां के उद्योग प्रमुख कारण हैं। हालांकि, कोठारी ने कहा कि मौजूदा औद्योगिक क्षेत्र भी इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, वहां जाएं और देखें कि उनकी हालत क्या है। नक्शे पर औद्योगिक क्षेत्र बनाने से जमीनी हालात नहीं बदलते। गोविंदपुरा से भी शिकायतें सामने आई हैं, जो 1960 के आसपास भोपाल में बीएचईएल की स्थापना के बाद बड़ी संख्या में छोटी कंपनियों के आने के बाद सामने आई। गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के सचिव एनएल गुप्ता ने कहा, उस समय सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए काम नहीं किया और इसके आसपास शहर बसाने की इजाजत दे दी, जिसके कारण अब यहां कोई जमीन नहीं बची है और यहां उद्योग सीमित संसाधनों के साथ चल रहे हैं। उन्होंने कहा, मप्र बहुत ही अभागा राज्य है। बड़ी कंपनियां यहां नहीं आना चाहतीं और बड़ी कंपनियों के बिना छोटी कंपनियों का विकास नहीं हो सकता। देवास इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अमरजीत सिंह खनूजा ने कहा कि एक और समस्या यह है कि कई स्तरों पर अलग-अलग नीतियां बनाई जाती हैं, जिससे भ्रम बढ़ता है। राज्य में उद्योगों की निगरानी कई स्तरों पर की जाती है, जैसे जिला औद्योगिक केंद्र (डीआईसी), मप्र औद्योगिक विकास निगम (मप्रआईडीसी), और एमएसएमई विभाग। उन्होंने उदाहरण के तौर पर देवास का हवाला देते हुए कहा, एक औद्योगिक क्षेत्र में छोटी और बड़ी दोनों कंपनियां काम करती हैं, लेकिन अलग-अलग विभाग उन कंपनियों के लिए नीतियां बनाने के लिए काम कर रहे हैं, जिससे समन्वय की कमी पैदा होती है। मंडीदीप में एनवीएन इंडस्ट्रीज के प्रमुख नरेंद्र कुमार ने कहा, राज्य की नीतियां उद्योगों के लिए अच्छी नहीं हैं। कुमार ने कहा, आसान कनेक्टिविटी और श्रम की पहुंच राज्य के उद्योगों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। उद्योगपतियों को वह मदद नहीं मिलती जो सस्ते कर्ज से लेकर बिजली सब्सिडी तक किसानों को दी जाती है। गुप्ता ने कहा, सरकार कहती है कि सिंगल विंडो प्रणाली है, लेकिन एक बार जब आप उस खिडक़ी में प्रवेश करते हैं, तो कई और खिड़कियां दिखाई देने लगती हैं। नीतिगत स्तर पर, छोटे उद्योगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके विकास को प्रभावित करती हैं।
उद्योगों के लिए बढ़ी जमीन की डिमांड
उद्योगों के लिए आवश्यक सडक़, बिजली, पानी, और अधोसंरचना सहित सुशासन के हर पैमाने में मप्र निवेशकों के लिए पहली पसंद बन रहा है। किसी समय बीमारू के नाम से बदनाम मप्र अब विकासशील राज्य की तरफ बढ़ गया है। यहां के उद्योग मित्र माहौल का ही परिणाम है कि पिछले 10 वर्षों में यहां तीन लाख करोड़ के उद्योग धंधे लगे और दो लाख युवाओं को रोजगार मिला। औद्योगिक घरानों का भरोसा जीतने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को लगातार सफलता मिल रही है। सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम, बिना अनुमति उद्योग की स्थापना सहित जो वादे उद्योग जगत से किए हैं, उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है। हालांकि, अब भी कुछ कमियां हैं, जैसे उद्योगों की स्थापना से जुड़े विभागों के अधिकारियों की कार्य संस्कृति में सुधार लाना पड़ेगा। ऐसा हुआ तो मप्र देश के उन अग्रणी राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां सर्वाधिक निवेश होता है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि मप्र में उद्योग को विकास की अपेक्षित गुंजाइश नहीं मिल पाने में कई कारक भूमिका निभाते हैं। भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) भोपाल में आर्थिक विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर बिस्वजीत पात्रा ने कहा, मप्र की अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है जहां बुनियादी ढांचे की स्थिति अच्छी नहीं है। उद्योग उन क्षेत्रों में नहीं जाना चाहते जहां कुछ भी नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा, मप्र सरकार ने निश्चित रूप से राज्य में उद्योगों के विस्तार की दिशा में कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा, मप्र देश के केंद्र में है जहां से कई राज्यों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है और इसी को ध्यान में रखते हुए उद्योगों पर ध्यान दिया जा रहा है। प्रोफेसर अरोड़ा ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने की कोशिश की है, लेकिन इन प्रयासों में देरी हुई है। उन्होंने कहा, मप्र के पड़ोसी राज्य इस मामले में बहुत आगे निकल गए हैं। ग्वालियर, जबलपुर और रीवा में औद्योगिक क्षेत्रों के राज्य की अर्थव्यवस्था में कम योगदान के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, ये खनिज आधारित जिले हैं जहां खनिज आधारित उद्योग स्थापित किया जाना चाहिए लेकिन वहां उद्योग की कमी है। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि मप्र का लैंड-लॉक्ड स्टेट होना एक बड़ी चुनौती लेकर आता है। उन्होंने कहा, यह एक सर्वविदित तथ्य है कि तटीय क्षेत्रों में उद्योगों के विकास की हमेशा अधिक संभावना होती है। लेकिन मप्र को देश के केंद्र में होने का एक बड़ा फायदा है और यह अपने स्थान के कारण बहुत महत्व रखता है और इस कारण से यह निवेश को आकर्षित कर सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य ने मप्र में निवेश के माहौल को आसान बनाने के लिए कदम उठाए हैं। मप्र के एमएसएमई विभाग के अफसरों का कहना है कि राज्य के उद्योग, प्रमुख रूप से एमएसएमई क्षेत्र, पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़े हैं। उन्होंने कहा, शुरुआती तीन वर्षों तक कोई टैक्स नहीं लेने की राज्य सरकार की नीति से उन्हें मदद मिली। राज्य सरकार का कहना है कि उसने राज्य को एक औद्योगिक केंद्र बनाने के लक्ष्य के साथ, पिछले पांच वर्षों में समर्थन बुनियादी ढांचे में लगभग 15।4 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। जैसा कि पहले कहा गया है, सरकार यह भी कहती है कि उसने नए उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग ढांचे को सरल बना दिया है और सिंगल-विंडो प्रणाली शुरू की है, हालांकि यह स्वीकार करती है कि कमियां बनी हुई हैं। देवास डीआईसी के एक अधिकारी ने कहा, देवास सबसे पुराने औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है और एक समय राज्य का औद्योगिक केंद्र था, लेकिन समय के साथ भूमि की उपलब्धता उद्योगों के लिए एक चुनौती बनी जिसने विकास की गति को धीमा कर दिया। उन्होंने कहा, लेकिन मालवा क्षेत्र उद्योग की दृष्टि से बहुत उत्पादक है। पीथमपुर पिछले एक दशक में निवेशकों का केंद्र बिंदु बन गया है और यह देवास से बहुत दूर नहीं है। मप्र औद्योगिक विकास निगम का कहना है कि कि राज्य में औद्योगिक संबंध सौहार्दपूर्ण हैं और सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखना पार्टी लाइनों से परे सरकार का काम रहा है। उन्होंने कहा, हमारे पास राज्य में पर्याप्त भूमि है जो मप्र के लिए सबसे बड़ा लाभ है क्योंकि कई राज्य भूमि अनुपलब्धता के मुद्दों का सामना कर रहे हैं। लेकिन पीथमपुर जैसे क्षेत्रों में, जो इंदौर के पास है, एक औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया गया है और मप्र आने वाले निवेशक वहां अपने उद्योग स्थापित करना चाहते हैं।नवनीत कोठारी ने कहा, कृषि विकास की एक सीमा है और मप्र तेजी से उस सीमा तक पहुंच रहा है। लेकिन उद्योगों की कोई सीमा नहीं है और उनके लिए बहुत सारी संभावनाएं हैं। हमारे पास टैलेंट पूल की भी कोई कमी नहीं है। जबकि मप्र ने उद्योगों को आकर्षित करने के लिए पिछले दशक में कई बार वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के लिए मप्र अजब है, गजब है, सजग है का नारा दिया था। पीथमपुर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के गौतम कोठारी ने कहा कि जब दिग्विजय सिंह (कांग्रेस) सीएम थे, तो उन्होंने खजुराहो में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया था लेकिन बहुत कम निवेश आया। उन्होंने कहा, ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में स्थानीय उद्योगों को महत्व नहीं दिया जाता। यह सिर्फ एक बड़ी झांकी है जहां केवल बड़े उद्योगपतियों का ध्यान रखा जाता है। गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में कैपरी पैंट्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक अंकुर गुप्ता ने कहा, ये घटनाएं जीवन से भी बड़ी तस्वीर दिखाती हैं (लार्जर दैन लाइफ इमेज)।
रोजगार का बड़ा माध्यम बन सकता है एमएसएमई
प्रदेश में कोविड के बाद से दो समिट हुई है, पहली 2023 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और हाल ही में उज्जैन में हुई रीजलन इन्वेस्टर्स समिट। दोनों में 16 लाख 40 हजार करोड़ का निवेश आया है। समिट में आए प्रस्तावों के बाद अब मप्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (मप्रआईडीसी) ने और अधिक जमीनें तलाशना शुरू कर दी हैं, ताकि समिट में आए निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा जगह उपलब्ध करवाई जा सके। मप्रआईडीसी के पास अभी इंदौर, उज्जैन संभाग में 6911 हेक्टेयर जमीन है, लेकिन अभी 9845.55 हेक्टेयर जमीन की और आवश्यकता है। यह जमीन अविकसित है और सरकार को ही इसे मप्रआईडीसी को हैंडओवर करना है। दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, महाकाल लोक की वजह से इंदौर संभाग से ज्यादा जमीन उज्जैन संभाग में चाहिए। इंदौर संभाग में धार और इंदौर में पहले से ही कई उद्योग हैं। ऐसे में अब नए निवेशकों की डिमांड उज्जैन, देवास, रतलाम, मंदसौर और शाजापुर में चाहिए। हालांकि इंदौर संभाग की बात करें तो धार-झाबुआ के बाद खरगोन और इंदौर में अभी भी डिमांड ज्यादा है। कॉरपोरेशन के पास इंदौर संभाग में अभी 3402 हेक्टेयर जमीन है और 3776.84 हेक्टेयर जमीन और चाहिए। दूसरी ओर उज्जैन संभाग में अभी कॉरपोरेशन के पास 3509 हेक्टेयर है और 6068.71 हेक्टेयर जमीन और चाहिए। मप्रआईडीसी के कार्यकारी संचालक राजेश राठौर के मुताबिक उज्जैन में हुई रीजनल समिट का अच्छा रिस्पांस मिला है। कई बड़े निवेशकों ने निवेश के लिए जमीन की डिमांड की है। उज्जैन संभाग में उज्जैन जिले में विक्रम उद्योगपुरी के साथ शाजापुर, रतलाम, मंदसौर और नीमच में सबसे ज्यादा डिमांड है। दरअसल, मालवा रीजन में एक प्रोजेक्ट केंद्र सरकार का है तो दूसरा राज्य सरकार का, जिसमें जमीन अधिग्रहण अब भी बड़ी चुनौती है। पीएम मित्रा पार्क के लिए बदनावर के पास बड़ी जमीन की आवश्यकता है। जमीन सरकारी है, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इस प्रोजेक्ट का अब तक भूमिपूजन नहीं हो पाया है। इसी तरह इंदौर में मप्र आईडीसी का प्रस्तावित इकॉनामिक कॉरिडोर और एनएचएआई-आईडीए के आउटर रिंग रोड का प्रस्ताव भी आ चुका है। किसानों का जमीन अधिग्रहण को लेकर विरोध जारी है। यही कारण है कि कॉरपोरेशन के अधिकारी चाहते हैं कि कम से कम निवेशकों को किसी तरह की परेशानी न आए, इसलिए समय रहते जमीनों की जरूरत पूरी कर ली जाए।
कम लागत और बड़ा काम। यही वो तरीका है जो अर्थव्यवस्था को गति देकर मप्र की तस्वीर बदल सकता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का विस्तार सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम बन सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार इसे प्राथमिकता में ले और वो सभी सुविधाएं उपलब्ध कराए जो छोटे उद्योगों के लिए वातावरण बनाने का काम करें। सरकार भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। 194 औद्योगिक क्षेत्र केवल एमएसएमई के लिए बनाए गए हैं और प्रदेश के एमएसएमई सेक्टर में क्लस्टर बनाए गए हैं। सरकार के अनुसार तीन लाख 54 हजार एमएसएमई इकाइयों को पंजीकृत किया है। इनमें 18।33 लाख नौकरियां उत्पन्न करने की क्षमता है। इसके साथ-साथ ग्रामीण कुटीर उद्योग पर भी फोकस करना होगा। स्थानीय स्तर पर इसको लेकर काफी संभावनाएं भी हैं। मप्र में 10 साल में 30 लाख 13 हजार 41.607 करोड़ रुपये के 13 हजार 388 निवेश प्रस्ताव आए। इनमें तीन लाख 47 हजार 891 करोड़ रुपये के 762 पूंजी निवेश हुए हैं। इन पूंजी निवेश से प्रदेश में दो लाख सात हजार 49 बेरोजगार को रोजगार मिला है। इसी तरह वर्ष 2007 से अक्टूबर 2016 तक आयोजित इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन पर 50।84 करोड़ रुपये व्यय किए गए और 366 औद्योगिक इकाइयों को 1224 करोड़ रुपये की अनुदान राशि दी गई। मप्र से अधिकांश उत्पादों को जीआई टैग दिलाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें आदिवासियों की पारंपरिक औषधियों, खाद्यान्न और उनकी कलात्मक वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाएगी। जीआई टैग सबसे अधिक दक्षिण भारत के हैं। मप्र सरकार का प्रयास है कि प्रदेश के छोटे से छोटे उत्पाद को जीआई टैग मिले। वर्तमान में मप्र में 21 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। मप्र के एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) की ब्रांडिंग की जा रही है। इसके लिए अलग से एक सेल गठित किया गया है। मप्र के रोजगार पोर्टल पर 38 लाख 93 हजार 149 बेरोजगार हैं। इनमें से 37 लाख 80 हजार 679 शिक्षित और एक लाख 12 हजार 470 अशिक्षित बेरोजगार आवेदक सरकार की सूची में पंजीकृत हैं। राज्य सरकार ने अप्रैल 2020 से अब तक तीन साल में केवल 21 बेरोजगारों को ही शासकीय, अर्द्धशासकीय कार्यालयों में रोजगार उपलब्ध कराया। यह बात राज्य विधानसभा में सरकार ने विधायकों के प्रश्न के लिखित उत्तर में दी। हालांकि, यह भी बताया गया है कि निजी क्षेत्र के नियोजकों द्वारा बेरोजगार मेले के माध्यम से दो लाख 51 हजार 577 आवेदकों को ऑफर लेटर प्रदान किए गए। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 16 करोड़ 74 लाख रुपये व्यय किए गए।