पन्ना के हीरों को करना पड़ रहा है अब खरीददारों का इंतजार

पन्ना
  • इजराइल-हमास और रुस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का असर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश का पन्ना जिला भले ही हीरों के लिए प्रसिद्ध है और यहां की धरती लगातार अपने आंचल से हीरे जैसे बेशकीमती रत्न उगलती रहती है, लेकिन अब इन हीरों की चमक फीकी पड़ती जा रही है। यही वजह है कि हर साल पन्ना के हीरों को खरीददारों का इंतजार करना पड़ता है। इस तरह की स्थिति बीते कई सालों से बन रही है। बीते दो सालों में यह स्थिति और बिगड़ी है। इसकी वजह है रूस-यूक्रेन तथा इजरायल और फिलिस्तीन के बीच जारी युद्ध। इन युद्धों की वजह से हीरों की मांग लगभग समाप्ति के कगार पर पहुंच गई है। दरअसल पन्ना की उथली खदानों से निकलने वाले हीरों की सर्वाधिक मांग इन्हीं देशों में रहती थी। सरकारी आंकड़ों को देखें तो बीते एक दशक में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है कि हीरा कार्यालयपन्ना में साल के अंत में विक्रय के लिए स्टॉक न बचा हो। इस तरह की स्थिति तब बनी हुई है, जबकि बाजार में हीरों के मूल्यों में तेजी से गिरावट आई है। इसके बाद भी पन्ना में पूरी तरह से मौजूद स्टॉक नहीं बिक पा रहा है। इसकी वजह से पत्रा के हीरा कार्यालय में साल दर साल विक्रय के लिए रखे गए हीरों का भंडार बना रहता है।

अगर बीते साल पर नजर डालें तो वर्ष 2023-24 में 111.45 कैरेट वजन के 64 नग हीरे बिकने के इंतजार में रखे रह गए थे। इसी तरह से वर्ष 2022-23 में, 255.47 कैरेट वजन के 139 नग हीरों को ग्राहकों का इंतजार बना रहा था। जबकि इसके पूर्व के वर्ष 2021-22 में 73.15 कैरेट वजन के 68 नग हीरे बिना बिके रह गये। अगर पन्ना के हीरों की बात की जाए तो वहां पर इन्हें हीरा कार्यालय द्वारा आयोजित नीलामी में या खुले बाजार में बेचा जाता है। तीय व्यापारी हीरे की नीलामी में भाग लेते हैं और खरीदने के बाद उन्हें तराशकर खुले बाजार में बेच देते हैं। पन्ना हीरा कार्यालय के एक अधिकारी के मुताबिक हीरे की मांग में कमी आ रही है, जिसकी वजह से उनकी खरीदारी में भी अब व्यापारी पहले जैसी रुचि नहीं ले रहे है। पन्ना के एक स्थानीय हीरा है। कारोबारी के मुताबिक इन दिनों हीरा बाजार सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। हीरों के स्टॉक को बेचना एक कठिन काम होता जा रहा है। कुछ देशों के बीच चल रहे युद्धों ने हीरों की अंतरराष्ट्रीय मांग पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। पन्ना के एक प्रमुख हीरा व्यापारी नरेश जैन ने बताया कि पन्ना कि उथली खदानों से निकले हीरे की अमेरिका, इजराइल, रूस आदि देशों में भारी मांग इन देशों में तराशा हुआ हीरा गुजरात के सूरत के हीरा बाजार से होकर जाता था। हालांकि, रूस-यूक्रेन, इजराइल फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्ध और कुछ अन्य देशों के बीच शीत युद्ध ने भी हीरा बाजार पर बुरा प्रभाव डाला है। शायद यही वजह है कि पन्ना की उथली खदानों से निकलने वाले हीरों की बिक्री मुश्किल होती जा रही है। यही वजह है कि अब गुजरात और अन्य बड़े शहरों के हीरा व्यापारी पन्ना से दूरी बनाने लगे हैं।

एक वजह यह भी
हीरा के कारोबार से जुड़े एक स्थानीय व्यापारी के मुताबिक अब प्राकृतिक हीरे की जगह कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में बनाए जाने वाले हीरों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है । ये काफी सस्ते होते हैं। इसकी वजह से प्राकृतिक हीरों के बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ा है। असली हीरे की कीमत लगभग 2.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये प्रति कैरेट होती है, जबकि प्रयोगशाला में बनाए जाने वाले हीरे की कीमत 15000 रुपये से 20,000 रुपये प्रति कैरेट के बीच होती है। इसीलिए इन हीरों का उपयोग अभूषणों में बहुतायत से किया जा रहा है।

Related Articles