- ई-नाके और चौकियोंं से रखी जाएगी रेत के अवैध परिवहन पर नजर
- गौरव चौहान
प्रदेश की इस साल नई रेत नीति लाई जा रही है। इसके प्रारूप पर मंथन शुरू हो गया है। सरकार तीन के बजाय पांच वर्ष के लिए ठेका दे सकती है। जानकारों का मानना है कि इससे ठेकेदारों को दो साल ज्यादा काम करने का मौका मिलेगा, तो रेत के दाम नियंत्रित रहेंगे। वहीं जिला स्तर पर छोटे समूह बनाकर खदानें नीलाम करने की तैयारी है। रेत सहित अन्य खनिजों के उत्खनन के लिए नदी के आकार, हर साल जमा होने वाली रेत की मात्रा, रेत निकालने से पर्यावरण पर पडऩे वाले प्रभाव, क्षेत्र की जनसंख्या सहित 32 बिंदुओं पर सर्वे रिपोर्ट तैयार की जाएगी। जिसे सार्वजनिक कर दावे-आपत्ति मांगे जाएंगे। इस रिपोर्ट के आधार पर उत्खनन की कार्ययोजना तैयार की जाएगी, जिसका अनुमोदन राज्य पर्यावरण मूल्यांकन समिति करेगी।
जानकारी के अनुसार राज्य सरकार नई रेत नीति बनाने में जुट गई है। इस बार जिले में एकल ठेका देने के स्थान पर तहसील एवं पंचायत स्तर पर छोटे-छोटे ठेके देने की तैयारी है। इससे रेत की उपलब्धता आसान होगी और सरकार के राजस्व में भी वृद्धि संभावित है। खनिज साधन विभाग इस नीति का प्रारूप तैयार कर रहा है। इसमें जिला, तहसील और पंचायत स्तर पर ठेका देने के विकल्प लाभ, हानि और चुनौती के साथ सुझाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि कमल नाथ सरकार ने वर्ष 2019 में रेत नीति बनाई थी, जिसमें जिला स्तर पर खदानों का समूह बनाकर नीलामी की गई थी। कम समय के लिए खदान मिलने के कारण ठेकेदारों ने रेत के दाम बढ़ाकर रखे। ताकि रायल्टी की राशि निकालने के साथ अच्छी बचत भी हो सके।
तय मात्रा से अधिक रेत नहीं निकाल पाएंगे ठेकेदार
खदानों से तय मात्रा में ही रेत निकाली जाए, यह जिम्मा कलेक्टरों का रहेगा। इसलिए जिला खनिज अधिकारी हर माह खदानों का निरीक्षण करेंगे। वहीं रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन पर नजर रखी जाएगी। कलेक्टर इसकी भी रिपोर्ट लेंगे। नई रेत नीति के लिए विभाग ने जो विकल्प सुझाए हैं उनमें जिला स्तर पर राजस्व प्राप्ति की बेहतर संभावना है, लेकिन जिलेवार निविदा करने से छोटे उद्यमियों की सहभागिता नहीं होगी। ठेका असफल होने पर पूरे जिले की रेत आपूर्ति एवं शासन का राजस्व प्रभावित होगा। तहसील स्तर पर निविदा करने पर छोटे उद्यमियों की सहभागिता होगी। ठेका असफल होने पर पूरे जिले की रेत आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी। प्रतिस्पर्धा होने से बाजार दर पर नियंत्रण रहेगा। वहीं जिला समूह से कम राजस्व अपेक्षित, लेकिन ठेकों की निरंतरता होने से पंचायत स्तर से अधिक राजस्व होना संभावित है। हालांकि, इससे जिले में एक से अधिक ठेके होने पर बाजार नाकों पर नियंत्रण संबंधी विवाद और बाजार मूल्य पर नियंत्रण नहीं होगा।
खनिज नाके लगाए जाएंगे
जानकार बताते हैं कि इस बार की रेत नीति में भी खनिज नाकों का प्रविधान करने पर विचार किया जा रहा है। नाके लगाने के साथ उन पर सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था भी की जाएगी। इससे नाकों से गुजरने वाली रेत की गाडिय़ों की निगरानी तो होगी ही, अवैध परिवहन और झगड़ों की स्थिति पर जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने में भी आसानी होगी। पंचायत द्वारा खदानों की ई-नीलामी एवं ठेकेदारों के माध्यम से खदान का संचालन करने पर पंचायतों की खदान संचालन में सहभागिता होगी और स्थानीय रोजगार सृजित होगा। इससे राजस्व में कमी होगी। ठेकेदारों की संख्या अत्यधिक होने के कारण पर्यावरण स्वीकृति एवं अन्य पर्यावरणीय प्रविधानों के पालन कराने में कठिनाई होगी। पंचायतों को अनुभव न होने के कारण ठेकेदारों पर नियंत्रण करना कठिन एवं प्रविधानों के पालन में कठिनाई होगी। निकट की पंचायतों एवं ठेकेदारों से विवाद, कानून एवं व्यवस्था संबंधी समस्याएं भी सामने आएंगी।
यूपी की रेत नीति का अध्ययन
प्रदेश की नई रेत नीति में उत्तर प्रदेश की रेत नीति के प्रविधानों को भी इसमें शामिल करना प्रस्तावित है। विभाग ने अधिकारियों का दल वहां की नीति को समझने के लिए भेजा था। हाल ही में प्रमुख सचिव निकुंज श्रीवास्तव भी उत्तर प्रदेश की रेत नीति देखने गए थे और वे उत्तर प्रदेश की रेत नीति से खासे प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश में ई-नाके और चौकियों से रेत के अवैध परिवहन एवं भंडारण पर नजर रखी जाती है। इससे रेत के अवैध-कारोबार पर लगाम लगी है। अब यह व्यवस्था मध्य प्रदेश में लागू करने की तैयारी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना में बनने वाले मकानों के लिए मुफ्त में रेत उपलब्ध कराने पर भी विचार किया जा रहा है। बता दें कि वर्तमान में 12 ठेकों की अवधि 30 जून एवं 12 अन्य ठेकों की अवधि 30 अगस्त 2023 तक है।