अब भाजपा की नजर… प्रदेश बसपा के कैडर मतों पर

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  • कांग्रेस के साथ…. आप की घेराबंदी की भी तैयारी

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भाजपा द्वारा अपने मतों में दस फीसदी की वृद्वि कर उसे 51 फीसदी तक ले जाने की कवायद की जा रही है। इसी कवायद के तहत भाजपा द्वारा लगातार अनुसूचित जाति व जनजाति पर फोकस किया जा रहा है। अब इसी तरह की कवायद भाजपा द्वारा बसपा बोट बैंक में सेंध लगाने के लिए शुरू कर दी गई है।  इसके लिए प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सामूहिक रुप से प्रयास शुरु कर दिए गए हैं। दरअसल हाल ही में पड़ौसी राज्य उप्र के चुनाव परिणामों में बसपा को मिली करारी हार के बाद अब भाजपा के अलावा कांग्रेस की नजर भी इस दल के मतदाताओं पर लग गई है। उधर, भाजपा द्वारा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव फतह करने के लिए कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी से संभावित चुनौति को लेकर भी अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई है। प्रदेश में बसपा का बोट बैंक औसतन छह फीसदी माना जाता है। प्रदेश में अब तक बसपा को एक बार दस फीसदी तक मत मिल चुके हैं। उप्र में बसपा के प्रदर्शन का असर मप्र में सीमावर्ती सीटों पर पड़ता है और अभी भी प्रदेश में बसपा के दो विधायक हैं। यही वजह है कि अब प्रदेश में भी बसपा के कोर बोट बैंक को अपने पाले में लाने की बिसात बिछाई जाने लगी है। अब भाजपा ने उन सीटों पर खासतौर पर फोकस करना शुरू कर दिया है, जिन पर बसपा का प्रभाव माना जाता है। इसमें प्रदेश के ग्वालियर चंबल, विंध्य अंचल के अलावा बुदेंलखंड अंचल की कुछ सीटें शामिल हैं। यही वजह है कि रणनीति के तहत भाजपा संगठन और सरकार पहले संत रविदास जयंती को धूमधाम से मना चुकी है और अब डा. भीमराव आंबेडकर की जयंती मनाने के साथ ही उनके जन्मदिवस पर भी 10 दिनों तक सेवा कार्य के आयोजन की रणनीति तैयार कर ली गई है। दरअसल बसपा का सबसे बड़ा बोट बैंक डा. आंबेडकर के अनुयायी ही हैं। प्रदेश में उप्र से सटे करीब 69 विस क्षेत्र हैं, जहां बसपा समर्थकों की खासी संख्या है। आंकड़ों में देखें तो मप्र में 2018 के विस चुनाव में भाजपा को 41.6 प्रतिशत और बसपा को 5.1 प्रतिशत वोट मिले थे। 2020 में 28 विस सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 सीटें जीतीं और 49.46 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बसपा का खाता नहीं खुला, लेकिन 5.75 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2003, 2008 और 2013 के विस चुनावों में औसतन 69 सीट पर पार्टी का वोट शेयर छह प्रतिशत के आसपास रहा है। दरअसल, विस चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर के आंकड़ों में ज्यादा अंतर नहीं रहा है। 2008 के ही परिणाम देखें तो भाजपा ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब भाजपा का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने नौ प्रतिशत वोट हासिल किए थे। यही नहीं प्रदेश में भले ही अभी तीसरी राजनैतिक ताकत नहीं हो , लेकिन जिस तरह से बसपा का अब तक प्रदर्शन रहा है उससे वह तीसरी ताकत बनने की क्षमता रखती है। अगर बसपा प्रदेश में अभी से सक्रिय होती है तो कोई बड़ी बात नहीं की बसपा तीसरी ताकत बनकर उभर जाए। दरअसल अगर बीते कई चुनावों पर नजर डालें तो वर्ष 92 में बसपा ने 9 फिर 98 में सर्वाधिक 11, 2003 में 2 और उसके बाद 2008 में 7 और वर्ष 13 में 4 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है। यही नहीं दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने से उत्साहित आप भी इस बार प्रदेश में जोर लगाने की तैयारी कर रही है। भाजपा जानती है कि अगर प्रदेश में कांग्रेस व बसपा में समझौता होता है तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। अब बसपा उत्तर प्रदेश में ही काफी कमजोर हो चुकी है, तो इसके समर्थकों के बीच विकल्प तलाशने की स्थिति बन सकती है। यही वजह है कि भाजपा ने इस मामले में अपने कदम बढ़ा दिए हैं। भाजपा भोपाल के जूम्बूरी मैदान में आंबेडकर के जन्मदिवस पर अनुसूचित जाति के लाखों लोगों को एकत्र कर भव्य कार्यक्रम मनाने जा रही है जिससे की उन्हें अपने से जोड़ा जा सके।  
आप को माना जा रहा है चुनौती
मप्र के सियासी परिदृश्य के हिसाब से अभी यहां किसी तीसरे दल की उल्लेखनीय उपस्थिति नहीं है, फिर भी उसकी संभावना के चलते भाजपा किसी भी तरह की रिस्क नहीं उठाना चाहती। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर जो धमाल मचाया उसका दूसरे दल कोई काट ढूंढ पाते तब तक तो खेला ही हो गया। पंजाब के बाद अब आप का फोकस गुजरात और हिमाचल पर हैं। यह बात अलग है कि मप्र में विधानसभा चुनाव के दौरान आप ने प्रदेश की सभी 230 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। तब उसे महज डेढ़ फीसदी वोट ही मिल पाए थे। इस चुनाव में उसका मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी ही भोपाल में बमुश्किल डेढ़ हजार वोट पा सका था। इस चुनाव में महज सिंगरौली की प्रत्याशी रानी अग्रवाल की ही जमानत बच सकी थी। अधिकतर स्थानों पर निर्दलीय प्रत्याशी ज्यादा वोट ले गए थे ,लेकिन राजनीतिक दल के रूप में आम आदमी पार्टी अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराने में नाकाम रही थी।
लगातार संभावित चुनौतियों पर बना हुआ है मुरली का फोकस
प्रदेश में डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में संभावित चुनौतियों को लेकर प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव का लागतार फोकस बना हुआ है। वे संगठन के अलावा खुद व्यक्तिगत रुप से संभावित चुनौतियों को लेकर अपनी पूर्व तैयारी में जुट गए  हैं। पार्टी की मीडिया और आईटी प्रकोष्ठ पदाधिकारियों की बैठक में भी राव ने इस मामले में  अपनी आशंका भी जता दी। उन्होंने कहा कि हमें नई तकनीक अपनाते हुए अपनी सोशल मीडिया की टीम को ज्यादा सशक्त बनाना है, ताकि आने वाले  समय में हर चुनौती का सामना कर सकें।

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