- गौरव चौहान
भाजपा द्वारा 39 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद अब उन सीटों पर फोकस करना शुरु कर दिया गया है, जहां पर बीता चुनाव पार्टी प्रत्याशी अधिक अंतर से हारे थे। हार का यह अंतर पार्टी के लिए तभी से ङ्क्षचता का विषय बना हुआ जब चुनावी परिणाम आए थे। इसकी वजह है, मप्र को भाजपा का न केवल गढ़ माना जाता है, बल्कि संगठन भी मजबूत माना जाता है। बड़े अंतर की हार की ङ्क्षचता की दूसरी सबसे बड़ी वजह है प्रदेश में अठारह सालों से भाजपा की सरकार होना। पार्टी को बीते चुनाव में जहां सर्वाधिक अंतर से हार मिली थी, ऐसी सीटों की संख्या करीब तीन दर्जन है। इनमें कुछ ऐसी भी सीटें हैं , जहां पर पार्टी तमाम प्रयासों के बाद भी लगातार हार रही है। अब इस तरह की सीटों पर ही पार्टी संगठन द्वारा सबसे पहले फोकस किया जा रहा है। इनमें से कुछ सीटों पर जल्दी प्रत्याशी तय करना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा संगठन ने ऐसी विधानसभा सीटों को इस बार आंकाक्षी सीटों का नाम दिया है। इसमें बेहद अहम बात यह है कि इस तरह की सीटों की सर्वाधिक संख्या ग्वालियर -चंबल अंचल की हैं। यह वो इलाका हैं जहां से श्रीमंत जैसे नेता आते हैं।
यही नहीं, यह वो अंचल है, जहां पर पार्टी के पुराने दिग्गज नेताओं का भी नाता है। इनमें केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से लेकर अन्य तमाम बड़े चेहरे शामिल हैं। दरअसल इसके बाद भी प्रदेश में ऐसी कई सीटें हैं, जहां पर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। इन सीटों को फतह करने के लिए ही अब पार्टी के रणनीतिकारों को अपनी रणनीति तक नए सिरे से बनानी पड़ी है। इस बार ग्वालियर -चंबल अंचल में भाजपा के पास बड़ा चेहरा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी है, जिससे माना जा रहा है कि भाजपा को इसका फायदा मिलेगा, फिर भी इस बार भाजपा ऐसी सीटों पर जीत के लिए मैदानी स्तर पर हर बूथ पर माइक्रो स्तर पर काम कर रही है। पार्टी स्तर पर तकरीबन यह भी तय कर लिया गया है। कि जिन सीटों पर पार्टी को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा है, वहां पर इस बार नए और मजबूत चेहरों पर ही दांव लगाया जाएगा। इन सीटों पर इस बार पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व खुद पैनी नजर रख रहा है। इन सीटों की पूरी मैदानी रिपोर्ट भी दिल्ली तलब की जा चुकी है। हाईकमान ने इस बार विधानसभा चुनाव के लिए हर सीट की मैदानी रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार की रणनीति पर काम शुरू किया है। इसके तहत हर सीट पर तीन से चार नामों का पैनल तैयार कराया गया है। पैनल में शामिल नामों के जातिगत समीकरण, क्षेत्र में उनकी पकड़ और विपक्षी उम्मीदवार को लेकर आंकलन का काम किया जा रहा है।
इसमें जो भी नाम सबसे मजबूत होगा, उसे चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। इसके लिए कई तरह के सर्वे का सहारा भी लिया जा रहा है। इसी को आधार मानकर पार्टी ने हाल में 39 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया है। इनमें ज्यादातर वे सीटें भी हैं, जहां पर पार्टी लगातार हार रही है। जीत के लक्ष्य के साथ भाजपा ने इन सीटों पर पार्टी के अपने बड़े और प्रभावशाली नेताओं को भी मैदान में उतार दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद ऐसी सीटों पर जा रहे हैं। उनके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा लगातार प्रवास कर रहे हैं, क्योंकि भाजपा का मानना है कि एक-दो बार हारने वाली सीटों पर ताकत से चुनाव लडक़र जीता जा सकता है।
भाजपा को इन सीटों पर जीत की तलाश
भाजपा को इस बार के विधानसभा चुनाव में जिन हारी हुई सीटों पर जीत की तलाश है, उनमें ग्वालियर-चंबल अंचल की सुमावली, मुरैना, दिमनी, लहार, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भितरवार, डबरा, करैरा, पिछोर, राघौगढ़ और चंदेरी प्रमुख हैं। उनके अलावा अन्य अंचलों की राजनगर, देवरी, दमोह, चित्रकूट, सिहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, जबलपुर पश्चिम, डिंडौरी, बैहर, लांजी, लखनादौन, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, पांदुर्णा, भोपाल उत्तर, ब्यावरा, भीकनगांव, कसरावद, में भगवानपुरा, राजपुर थांदला, गंधवानी, कुक्षी और राऊ शामिल हैं। इनमें से एक दर्जन से अधिक सीटों पर भाजपा को पिछले चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। लिहाजा सभी सीटों को भाजपा ने आकांक्षी श्रेणी में रखा है।
इन सीटों पर बड़ी हार
भाजपा की सबसे बड़ी हार वाली प्रमुख सीटों में राघौगढ़, शाजापुर, श्योपुर, शहपुरा, मनावर, कुक्षी, सरदारपुर, महेश्वर, जबलपुर पूर्व, सेंवढ़ा, सिंहावल, राजगढ़ और भैंसदेही शामिल है। यह वे सीटें हैं जहां पर बीते चुनाव में भाजपा को तीस हजार से अधिक मतों से हार मिली थी।