अब भाजपा बोलेगी सबके संत रविदास

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। बीते विधानसभा चुनावों में बहुमत के आंकड़े से दूर रही भाजपा इस बार अभी से मिशन 2023 की तैयारी में जुटी हुई है। यही वजह है कि अब भाजपा संगठन सबक लेकर हर हाल में पार्टी से आदिवासी व दलित मतदाताओं को जोड़ने के लिए तमाम प्रयासों में लगी हुई है। इसी तैयारी के तहत सत्ता व संगठन  ने आदिवासी समाज पर फोकस करने के बाद अब दलितों को रिझाने की पूरी तैयारी कर ली है। भाजपा ने अब दलित समाज में पैठ बढ़ाने के लिए संत रविदास को सबका संत बनाने की तैयारी तेज कर दी है। यही वजह है कि इस बार अब प्रदेश में पहली बार सत्ता व संगठन मिलकर जिला और पंचायत स्तर तक संत रविदास जयंती पर कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। दरअसल प्रदेश में करीब एक करोड़ दलित मतदाता है। इस वर्ग के लिए प्रदेश की 35 विधानसभा सीटें और लोकसभा की चार सीटें आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों के अलावा यह वर्ग कई अन्य सीटों पर भी हार-जीत की भूमिका निभाता है। इस वर्ग पर भाजपा की नजर की बड़ी वजह है बीते आम विधानसभा चुनाव में पार्टी का रहा खराब प्रदर्शन। पिछले चुनाव में भाजपा को दलित सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था , जिसकी वजह से भाजपा सरकार बनाने से वंचित रह गई थी। इन सीटों पर कांग्रेस को बेहद अहम जीत मिली थी , जिसकी वजह से ही डेढ़ दशक बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकी थी। बीते चुनाव में भाजपा को 2013 की तुलना में अजा वर्ग की सीटों पर 10 सीटों का नुकसान हुआ था। इसकी वजह से उसकी 28 सीटों की संख्या कम होकर 18 ही रह गई थीं जबकि कांग्रेस की संख्या 4 से बढ़कर 17 सीटें हो गई थीं। यही वजह है कि भाजपा बहुमत से दस सीटें पीछे रह गई थी , जबकि कांग्रेस को बढ़त मिल गई थी। भाजपा को सबसे अधिक नुकसान ग्वालियर – चंबल के तहत आने वाली सीटों पर उठाना पड़ा था। बीते चुनाव में भाजपा के लिए सबसे बड़े नुकसान की वजह बना था एस्ट्रोसिटी एक्ट। इस एक्ट के समर्थन में उस समय माई का लाल वाला बयान दिया गया था, जिसकी वजह से ग्वालियर- चंबल अंचल में खूनी संघर्ष की स्थिति तक बन गई थी। इसकी वजह से इस अंचल में भाजपा को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा था। यही नहीं इस बयान के पीछे जिस नेता का हाथ था , वह भी चुनाव हार गया था। इससे सबक लेते हुए ही भाजपा संगठन व सरकार इस बार दलित वर्ग को साथ जोड़ने  की अभी से कवायद कर रहा है। इसके लिए संत रविदास का सहारा लेने की रणनीति तय की गई है।
कांग्रेस भी आयोजन की तैयारी में
बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय सागर में भी बड़े आयोजन की तैयारी चल रही है। दलित वर्ग को साधने की भाजपाई कोशिशों को देखते हुए प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी तू डाल-डाल मैं पात-पात वाले अंदाज में इस वर्ग के  प्रति अपना अनुराग जताने के जतन करना शुरु कर दिया है। कांग्रेस भी अजा बाहुल सभी क्षेत्रों में रविदास जयंती कार्यक्रम के आयोजनों की जोर-शोर से तैयारी में जुट गई है।
बसपा का रहता है प्रभाव
उप्र से सटे होने की वजह से मप्र में भी दलित मतदाताओं पर बसपा का प्रभाव रहता है। यही वजह है कि प्रदेश की कई सीटों पर बसपा प्रत्याशी अच्छे खासे मत पाने में सफल रहते हैं , जिसकी वजह से चुनाव परिणाम भी प्रभावित होते हैं। खासतौर पर उप्र की सीमा से सटे बुंदेलखंड, विंध्य और ग्वालियर-चंबल अंचल की कई सीटों पर बसपा का प्रभाव अधिक रहता है। यही वजह है कि बसपा के कई प्रत्याशी अब तक जीत हासिल कर चुके हैं। इस बार भी विधानसभा में इस दल के दो विधायक हैं।  अगर बीते पांच विधानसभा चुनावों का ट्रेंड देखे तो लगभग 5 फीसदी वोट बसपा का फिक्स रहा है। बसपा अनुसूचित जाति की 35 सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में है। 80 सीट ऐसी हैं, जिन पर दलित वोटर्स फैक्टर होते हैं। बसपा ग्वालियर, चंबल, रीवा, और सागर में ज्यादा मजबूत है।
देश भर में किए जाएंगे आयोजन: भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य का कहना है कि सबके संत रविदास थीम पर पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर दक्षिण में भी  20 फरवरी तक आयोजन कराए जा रहे हैं। इसके लिए  मंडल स्तर तक कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई गई है। इस दौरान संत रविदास के सामाजिक समरसता सहित विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हुए सोशल मीडिया पर भी अभियान शुरू किया  गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा रविदास, आंबेडकर और कबीर कुंभ के आयोजन कर चुकी है लेकिन कांग्रेस ने इस वर्ग के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया।
सरकारी फंड से होगा आयोजन
रविदास जयंती पर प्रदेश के अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में भाजपा सरकार ने संगठन की मदद से मेगा शो की करने की तैयारी की है। माना जा रहा है कि सरकार की ओर से इस वर्ग को साधने के लिए रविदास जयंती के अवसर पर कई तरह की सौगातों की घोषणा की जा सकती है। इस अवसर पर राज्य स्तरीय आयोजन भोपाल में 16 फरवरी को किया जाएगा। साथ ही पंचायत स्तर पर भी आयोजन किए जाएंगे। इसके लिए सरकार द्वारा फंड भी जारी किया जा चुका है।  
भाजपा को हुआ 26 सीटों का नुकसान
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा की सीटों में से 47 अनुसूचित जाति के लिए और 35 सीटें अजा वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अजा और अजजा दोनों ही वर्ग में भाजपा की तुलना में बहुत कम सीटें मिली थीं। लेकिन 2018  के चुनावी नतीजों में उसे दोनों ही वर्ग का अच्छा समर्थन मिला और कुल 82 सीटों में से वह 48 सीटें जीतने में सफल रही। इसकी वजह से भाजपा महज 34 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। अगर भाजपा का इन सीटों पर 2013 का प्रदर्शन देखा जाए तो तब उसे 60 सीटों पर सफलता मिली थी। इस तरह से 2018 के चुनाव में भाजपा को 26 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। यही वजह है भाजपा इस बार अजजा और अजा वर्ग को आने साथ जोडऩे के लिए तमाम तरह के प्रयासों में लगी हुई है।

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