
- मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी का खेल
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। देश के सबसे अधिक बिजली उत्पादक राज्यों में शामिल मप्र लगभग हर साल अपने उपभोक्ताओं पर विद्युत दरों का भार डालता है। एक बार फिर से मप्र के उपभोक्ताओं के लिए बिजली को दरों में बढ़ोतरी कर दी गई है। प्रदेश में बिजली 18 पैसे महंगी की गई है, लेकिन विडंबना यह है कि दूसरे राज्यों को 27 पैसे सस्ते में बिजली दी जा रही है। मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी का खेल किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार गैरों पे करम अपनों पे सितम क्यों किया जा रहा है। गौरतलब है कि मप्र की तीनों बिजली कंपनियां हर साल घाटा दिखाकर बिजली की दरें बढ़ाने की मांग करती है। एक बार फिर बिजली प्रदेश के लोगों को झटका मारेगी, लेकिन प्रदेश के बाहर राहत देगी। यह कमाल नए टैरिफ में हुआ है। इसके अनुसार राज्य के घरेलू उपभोक्ताओं को 3.46 फीसदी महंगी बिजली मिलेगी। लेकिन मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने ऐसा खेल किया कि प्रदेश के बाहर वह सस्ती बिजली बेचेगी। नए टैरिफ में कंपनी सरप्लस बिजली पिछले साल की बजाय और सस्ते दाम में बेचेगी। नियामक आयोग ने इसकी अनुमति दे दी है। इससे प्रदेश के बाहर बिजली बेचने के लिए कंपनी को 27 पैसे प्रति यूनिट कम करने की अनुमति मिल गई है।
एमपीआईडीसी को भी कम दर पर बिजली
मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी प्रदेश के ईमानदार उपभोक्ताओं पर ही भार डालती है। मैनेजमेंट कंपनी पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और पीथमपुर में एमपीआईडीसी को भी कम दर पर बिजली देती है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के पीजी नाजपांडे समेत अन्य ने बिजली के अलग-अलग रेट को लेकर पूर्व कैबिनेट मंत्री लखन घनघोरिया ने भी ज्ञापन सौंपा और घरेलू उपभोक्ताओं को दी जाने वाली दर को कम कराने की मांग की। नए टैरिफ में 151 से 300 यूनिट तक खपत करने वाले उपभोक्ताओं से प्रति यूनिट 6.61 रुपए लिए जाते थे। अब इसे 18 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाया गया है। नए टैरिफ में घरेलू उपभोक्ताओं से प्रति यूनिट 6.79 रुपए की वसूली की जाएगी। वहीं, प्रदेश के बाहर सरप्लस बिजली बेचने के दामों में 27 पैसे की गिरावट की है। पहले जहां 4.58 रुपए प्रति यूनिट की दर से सरप्लस बिजली दूसरे प्रदेशों को बेची जाती थी, वहीं नए टैरिफ में अब सरप्लस बिजली 4.31 रुपए प्रति यूनिट की दर से बेची जाएगी। कंपनी ने विद्युत नियामक आयोग को अजीबो-गरीब दलील दी। कंपनी ने कहा बाजार में प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में अधिक से अधिक सरप्लस बिजली दूसरे राज्यों को बेचने के लिए बाजार में मौजूद अन्य कंपनियों के मुकाबले दरें कम रखनी पड़ती है। इस दलील के बाद आयोग ने दो साल के औसत के आधार पर कंपनी को पिछले साल के मुकाबले 27 पैसे दाम कम करने की मंजूरी दी।
सरप्लस बिजली बेचने के रेट कम
रिटायर्ड चीफ इंजीनियर राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी से उपभोक्ताओं को दी जाने वाली बिजली महंगी है। सरप्लस बिजली बेचने के रेट कम रखे गए हैं। यदि उपभोक्ताओं को ही कम दरों में बिजली दी जाती तो उन्हें फायदा होता और कंपनी को भी नुकसान नहीं होता। प्रदेश में हर साल बिजली की खरीदी बढ़ रही है। इस वित्तीय वर्ष में करीब 40 हजार करोड़ रुपए की बिजली खरीदी जाएगी। सरप्लस राज्य का तमगा हासिल करने के कारण अधिकतर खरीदी निजी सेक्टर की है। हद यह है कि दीर्घकालीन एमओयू के तहत बिजली के बड़े ठेकेदारों को करोड़ों रुपए हर साल बिना जरूरत दिए जा रहे हैं। इतनी भारी-भरकम खरीदी के लिए हर साल कर्ज लेना पड़ रहा है। इसके बाद उसके ब्याज पर हर साल करोड़ों खर्च किए जाते हैं। बिजली कंपनियां सालाना 4 हजार करोड़ का औसत घाटा बताती हैं। ऐसे में खरीदी के लिए हर साल औसतन 6 हजार करोड़ कर्ज लेना पड़ रहा है। 10 से 25 साल की अवधि के लिए कर्ज लिया जाता है। इससे हर साल ब्याज का बोझ भी बढ़ रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में करीब 870 करोड़ कंपनियों ने ब्याज व अन्य पर खर्च किए। लेकिन, इस बार यह राशि 1349 करोड़ होने की संभावना है। प्रदेश में इस वित्तीय वर्ष में बिजली खरीदी व पारितोषण लागत के तहत 40 हजार 140 करोड़ बिजली कंपनियों ने बताए हैं। यह बीते साल से 1500 करोड़ ज्यादा है। सूबे में 22,500 मेगावाट बिजली उपलब्ध है। करीब 10 हजार मेगावॉट बिजली ही राज्य की है। बाकी निजी सेक्टर से है। सूबे में अधिकतम मांग 12 हजार मेगावाट है। इस तरह औसत 10 हजार मेगावाट बिजली सरप्लस है। इसमें निजी सेक्टर की खरीदी के कारण हर साल कंपनियों को करोड़ों रुपए देने पड़ रहे हैं। इसलिए उपभोक्ताओं के लिए बिजली के दाम बढ़ दिए जाते हैं।