कोरोना काल में नहीं लगा तीन दर्जन गांवों में किसी को भी वैक्सीन

कोरोना

-कई अस्पतालों में उचित इलाज नहीं मिलने पर  मप्र मानव अधिकार आयोग ने लिया संज्ञान, मांगा जवाब

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
सरकार भले ही कितने दावे करे लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अब भी लोग स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर मोहताज बने हुए हैं। खास बात तो यह है कि कोरोना जैसी महामारी के बाद भी उज्जैन जिले के करीब तीन दर्जन गांव ऐसे हैं जहां बीते एक माह में किसी भी ग्रामीण को वैक्सीन तक नहीं लगाया गया है।
यह हाल तब है जब प्रदेश भर में वैक्सीनेशन के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है। इस मामले की जानकारी सामने आने के बाद अब मप्र मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। इसी तरह के करीब आधा दर्जन मामलों में अब तक आयोग संज्ञान में ले चुका है। इन सबमें सर्वाधिक गंभीर मामला उज्जैन जिले के ग्रामीण इलाके का है। वहां पर जिला मुख्यालय के दूर दराज इलाके वाले मड़ावदा में कहने को तो एक अस्पताल है , लेकिन उसमें सुविधाओं के नाम पर है कुछ नहीं। उज्जैन से करीब 75 किमी दूर स्थित इस अस्पताल में पलंग और बिस्तरों के नाम पर टेंट हाऊस की कुछ गादियां जमीन पर जरुर बिछा दी गई हैं। यह हालात तब हैं जबकि इस गांव में ही एक पखवाड़े के अंदर 15 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों के बाद भी अब तक यहां पर कोई भी मौत कोरोना रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। इसकी वजह है किसी की भी कोरोना की जांच नहीं होना। स्थानीय लोगों को कहना है कि  गांव के सरपंच ने बताया कि यहां पर बीते एक माह से कोरोना के टीके ही नहीं लगाए गए हैं। लगभग यही हाल यहां से 28 किमी दूर बनबना गांव के भी हैं। यहां बने कोविड सेंटर में डॉक्टर व नर्स तैनात नहीं होने से कोई भी उसमें भर्ती नहीं होना चाहता है। इसके पास के ही तीसरे गांव कुंदला में करीब तीन सैकड़ा लोगों के सर्दी-खांसी से पीड़ित होने के बाद भी किसी की जांच नहीं हुई। यहां बगैर किसी जांच के एक झोला छाप बंगाली डॉक्टर से इलाज कराया जा रहा था।
इस बीच बीमार पांच लोगों की मौत हो जाने पर वह भी भाग गया। आयोग को जब इसकी जानकारी मिली तो उसके द्वारा इस मामले में भी संज्ञान लेकर अपर मुख्य सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी उज्जैन से दो सप्ताह के अंदर प्रतिवेदन मांगा गया है। इसके साथ ही आयोग ने गांवों में कोरोना के टीके लगाने के लिए इंतजामों की जानकारी भी मांगी है।
एंबुलेंस की दरों को लेकर भी दिए निर्देश
आयोग द्वारा इसी तरह से हमीदिया व अन्य सरकारी अस्पतालों में एंबुलेंस और शव वाहन संचालकों द्वारा की जाने वाली मनमानी वसूली को लेकर भी संज्ञान लिया जा चुका है।  जानकारी के अनुसार राधेश्याम अहिरवार के पिता की हमीदिया अस्पताल में मौत होने के बाद मिसरोद तक शव ले जाने के लिए शव वाहन चालक ने 9 हजार रुपए मांगे थे। इतनी राशि नहीं देने की वजह से सभी वाहन चालकों ने शव ले जाने से इंकार कर दिया था , मजबूरी में राधेश्याम को लोडिंग ऑटो में शव ले जाना पड़ा था। इसके बाद आयोग ने भोपाल  कमिश्नर एवं अधीक्षक हमीदिया अस्पताल से जांच कराकर ट्रांसपोर्ट एंबुलेंस की दरें तय करने को लेकर भी प्रतिवेदन दस दिवस में मांगा।
झोलाछाप डॉक्टरों पर मांगा प्रतिवेदन
अनूपपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा बेखौफ होकर संक्रामक बीमारियों का इलाज किया जा रहा है। वे जिन मरीजों का इलाज करते हैं उनमें से कई तो अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं। इस मामले में आयोग ने कलेक्टर तथा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अनूपपुर से कार्यवाही कर 15 दिवस में प्रतिवेदन मांगा है। इसी तरह से आयोग ने इस जिले में मैदान में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सर्वे के दौरान जिला प्रशासन द्वारा उन्हें सेनेटाइजर, मास्क व ग्लव्स के अलावा अन्य सुरक्षा उपकरण नहीं  दिए जाने की वजह से कई को संक्रमण का शिकार होना पड़ा। इस मामले में भी आयोग ने कलेक्टर अनूपपुर से सात दिन में प्रतिवेदन देने को कहा है।
इस मामले में भी मांगा प्रतिवेदन
मुरैना में एक बीमार युवक को जिला अस्पताल में इलाज के दौरान रात में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी , लेकिन उसे डॉक्टर ऑक्सीजन नहीं दे सके जिससे उसकी मौत हो गई। इस मामले में आयोग ने कलेक्टर तथा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मुरैना से ऑक्सीजन व्यवस्था को लेकर जांच कराकर प्रतिवेदन मांगा है।

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