भ्रष्टों के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं

भ्रष्टों

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति लागू है। प्रदेश में सरकारी एजेंसियां भ्रष्टों के खिलाफ लगातार छापामार कार्रवाई कर रही हैं, लेकिन विसंगति यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में लोकायुक्त को शासन में जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों का ही सहयोग नहीं मिल रहा। ऐसे में भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगेगी। गौरतलब है कि प्रदेश में लोकायुक्त लगातार रिश्वतखोरों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। लेकिन स्थिति ये है कि रिश्वत मांगने वाले आरोपियों को सजा दिलाने के लिए लोकायुक्त जिस प्रक्रिया को अपनाते हुए कार्रवाई करते हैं, यह अधिकारी उस प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े करने में लगे रहते हैं। इसका लाभ आरोपियों को मिल रहा है। इससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि लोकायुक्त ऐसे राजपत्रित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कलेक्टर को पत्र लिख चुके है। इसके बाद भी उन पर कार्रवाई नहीं हो पा रही।
इनको मिला लाभ
शिक्षा विभाग में पदस्थ प्रबुद्ध गर्ग पर चेक जारी करने के एवज में रिश्वत मांगने का आरोप था। इसमें लोकायुक्त ने पद्मा विद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य अशोक श्रीवास्तव को पंच साक्षी बनाया था। 6 अप्रैल 2022 को वे न्यायालय में गवाही  लिए पहुंचे और ट्रैप की कार्रवाई के संबंध इस तरह जवाब दिए कि उन्हें पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया।
आरोपी को इसका लाभ मिला और वह बरी हो गया। उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। कुछ समय पहले लोकायुक्त ने मीटर बदलने के एवज में ग्वालियर में पदस्थ एक लाइनमैन को रिश्वत लेते धरा था। इस मामले में लोकायुक्त ने शासकीय विद्यालय में व्याख्याता के पद पर कार्यरत कमलेश चंद्र गोयल को पंच साक्षी बनाया। हालांकि, उन्होंने भी ऐसे बयान दिया कि न्यायालय को उन्हें पक्षद्रोही घोषित करना पड़ा। यहां बता दें कि इस मामले में फैसला आना बाकी है। अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए लोकायुक्त ने कलेक्टर को पत्र भी लिखा है। एसपी लोकायुक्त रामेश्वर यादव का कहना है कि शासन में जिम्मेदार पदों पर कार्यरत राजपत्रित अधिकारी पंच साक्षी बनाए जाते हैं। ताकि वे न्यायालय में कार्रवाई के दौरान अपनाई गई प्रक्रिया को बेहतर तरीके से बता सके। लेकिन कुछ मामलों में ये देखा गया कि पंच साक्षी बयान से मुकर गए, जिसके कारण न्यायालय ने उन्हें पक्षद्रोही घोषित कर दिया। इससे लोकायुक्त का केस कमजोर होता है और आरोपी को इसका लाभ मिलता है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति ना हो, इसके लिए ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने कलेक्टर को पत्र लिखा गया है।

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