मप्र के 45 जिलों में बाल कल्याण समिति नहीं

बाल कल्याण समिति
  • प्रदेश में  बच्चों को कैसे मिले न्याय …

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के करीब 45 जिलों में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) का कोरम पूरा न होने के कारण बच्चों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, प्रदेश के 45 जिलों में सीडब्ल्यूसी का कार्यकाल समाप्त हो गया है। प्रदेश में नाबालिग और जरूरतमंद बच्चों के विकास, पुर्नवास, सुरक्षा और संरक्षण के लिए जिला स्तर पर सीडब्ल्यूसी का गठन किया जाता है। ऐसे में समिति के अस्तित्व में न रहने पर प्रदेश के सैकड़ों बच्चे इससे प्रभावित हो रहे हैं। कई मामलों में जल्द निपटारा न होने का कारण भी यही है। इसके अलावा दूसरे जिलों से आए बच्चों को आश्रयगृह और उनके गृह जिले में भेजने में भी देरी होती है।  ज्ञात हो कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक समिति का कार्यकाल समाप्त होने के छह माह पूर्व ही अगली समिति के गठन की प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन यह हो नहीं पाया। किशोर न्याय बोर्ड एवं सीडब्ल्यूसी रिक्त पदों के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा जनवरी मे विज्ञापन जारी कर आवेदन मंगवाए गए थे। लेकिन समिति गठित नहीं हुई है। मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष द्रविंद्र मोरे का कहना है कि आयोग की ओर से डेढ़ महीने पहले महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र भेजा गया था। जिसमें कार्य कर रही सीडब्ल्यूसी एवं शासकीय कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपने की बात कही थी। चूंकि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता प्रभावी है। इसलिए विभाग ने नियुक्ति की अनुमति के लिए चुनाव आयोग को फाइल भेजी थी। संभवत: अब चुनाव बाद ही निर्णय हो पाएगा।
नाबालिग बच्चों के पुनर्वास और कल्याण के काम ठप
45 जिलों में बाल कल्याण समिति एवं किशोर न्याय बोर्ड नहीं  होने से नाबालिग बच्चों के पुनर्वास और कल्याण के काम ठप पड़ गए हैं। सरकार ने पिछले साल सितंबर एवं इस साल जनवरी में नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी भी किये, लेकिन अभी तक नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। यद्यपि इसकी बड़ी वजह यह रही कि, इन नियुक्तियों के लिए राज्य सरकार को पर्याप्त समय नहीं मिला और फिर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई। किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत हर जिले में न्यूनतम एक बाल कल्याण समिति एवं किशोर न्याय बोर्ड अनिवार्य रूप से काम करता है। अधिनियम में नाबालिग बच्चों को दो श्रेणियों में रखा गया है।
अपने घर नहीं जा पा रही बेटियां
 ग्वालियर के एकमात्र बालिका गृह में रहने वाली बेटियां इसलिए अपनों के पास नहीं जा पा रहीं, क्योंकि जिस समिति को निर्णय करना होता है, वही अस्तित्व में नहीं है। समिति नहीं भी है तो दूसरे जिले की समिति से निर्णय कराया जा सकता है लेकिन शासन ने यह निर्णय भी नहीं किया गया। अब इसके फलस्वरूप जेएएच परिसर में स्थित बालिका गृह में रहने वाली बालिकाओं की सुनने वाला कोई नहीं है, किसी को घर जाना है तो किसी को बालिका गृह भेजा जाना है। अपनों से मिलने बेटियां बेचैन हैं। आचार संहिता में तो यह हाल है कि अष्टमी के दिन कोई समाजसेवी या संस्था बालिका गृह नहीं पहुंची। वन स्टाप सेंटर व बालिका गृह एक ही प्रांगण मे हैं, जहां पुलिस का सुरक्षा गार्ड तक नहीं है। बालिका गृह में प्रशिक्षक भी नहीं है। इसे चलाने वाली संस्था दान के भरोसे है और दान अभी आ नहीं रहा। मंगलवार को जिला न्यायाधीश व सचिव विधिक सेवा प्राधिकरण आशीष दवंडे ने विधिक सहायता अधिकारी के साथ जब बालिका गृह का निरीक्षण किया तो यही सामने आया। खुद जज ने बालिकाओं की पीड़ा भी सुनी और कई सुझाव भी दिए। प्रधान जिला न्यायाधीश और अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ग्वालियर पीसी गुप्ता के मार्गदर्शन में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा विभिन्न प्रकार की विधिक जागरूकता गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं।
बालिका गृह में 29 बालिकाएं-स्वजन से भी कराई बात
बालिका गृह में 29 बालिकाएं हैं, कई ऐसी बालिकाएं हैं जिन्हें घर जाना है और स्वजन भी लेने को तैयार हैं। विधिक सहायता अधिकारी ने कुछ बालिकाओं के स्वजन से भी मोबाइल पर बात की और बात करके पता चला कि स्वजन अपनाना चाहते हैं। वहीं बालिकाओं ने खेद भी जताया कि उन्हें जीवन में गलत कदम नहीं उठाने चाहिए थे। इससे यह साफ पता चला कि बालिकाएं अपने घर जाकर परिवार के साथ रहने की इच्छुक हैं। ग्वालियर की बाल कल्याण समिति का कार्यकाल पांच अप्रैल को खत्म हो चुका है। ऐसी स्थिति में दूसरे जिलों की सक्रिय समिति से अटैच कर दिया जाता है लेकिन अभी तक शासन स्तर से कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं, इसलिए मामला अधर में लटक गया है। बाल कल्याण समिति की बेसहारा व अलग अलग परिस्थितियों में मिली बालिकाओं को लेकर निर्णय देती है।

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