-वेबसाइट्स और सोशल मीडिया की सर्वे रिपोर्ट
-2023 में कांग्रेस पर अकेले भारी पड़ेंगे शिवराज
मप्र में आगामी विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान बनाम कमलनाथ होगा। इसको लेकर विगत दिनों कुछ वेबसाइट्स और सोशल मीडिया द्वारा एक सर्वे कराया गया। इस सर्वे रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि मप्र में न तो भाजपा और न ही कांग्रेस के पास शिवराज का कोई विकल्प नहीं है। यही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में शिवराज पूरी कांग्रेस पर अकेले भारी पड़ेंगे।
प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। अगले 18 महीनों में मप्र सहित 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाला है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर भी शामिल है। इन भावी चुनावों को लेकर पिछले कुछ महीनों के दौरान देश की कुछ ख्यात वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर राज्यों और वहां के मुख्यमंत्रियों की स्थिति का सर्वे कराया गया। इस सर्वे रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चर्चा मप्र और यहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रही। इसकी वजह यह रही कि चुनावी राज्यों में मप्र ऐसा राज्य रहा, जहां पिछले कुछ दिनों के दौरान राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां चरम पर रहीं। इन सबके बीच लोगों ने मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की लोकप्रियता पर मुहर लगाई।
यही नहीं पिछले कुछ सालों के दौरान भाजपा ने जिस तरह चुनावी राज्यों में मुख्यमंत्री बदले हैं, उसको लेकर मप्र में ही तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं। लेकिन सर्वे रिपोर्ट में लोगों ने मप्र में ऐसे किसी बदलाव की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है। यह भाजपा और संघ के लिए एक सकारात्मक संदेश है। गौरतलब है कि जिन राज्यों में चुनाव के दौरान भाजपा ने मुख्यमंत्री बदला है, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया है। अधिकांश राज्यों में पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली है। मप्र में भाजपा संगठन और संघ दोनों ही ऐसी किसी संभावना से इनकार करते हैं।
शिवराज ही होंगे मुख्य चेहरा
सत्ता, संगठन और संघ ने पहले ही संकेत दे दिया है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी का मुख्य चेहरा होंगे। सर्वे में भी लोगों ने इस पर मुहर लगाई है। गौरतलब है कि आगामी दिनों में भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश और गुजरात में इस वर्ष नवम्बर-दिसम्बर महीने में चुनाव होने की संभावना है। उम्मीद यही की जा रही है कि इन दोनों राज्यों के साथ जम्मू और कश्मीर में भी चुनाव होगा। फिर अगले वर्ष फरवरी-मार्च महीने में मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होगा। मेघालय और नागालैंड में स्थानीय क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व में भाजपा के सहयोगी दलों की सरकार है, जबकि त्रिपुरा में भाजपा पहली बार 2018 में चुनाव जीत कर सरकार बनाने में सफल रही थी। फिर अगले वर्ष मई में कर्नाटक में चुनाव निर्धारित है। 2018 में हुए चुनाव में कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा चुनी गयी थी, जिसमें भाजपा साधारण बहुमत से 8 सीटों से दूर रह गयी थी। भाजपा को सत्ता से दूर रखने के इरादे से कांग्रेस पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) की मिलीजुली सरकार बनी। दोनों दलों के कई विधायक बाद में बगावत करके भाजपा में शामिल हो गए और 2019 अंतत: भाजपा की सरकार बन ही गयी। और फिर 2023 के नवम्बर-दिसम्बर महीने में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होगा।
इन सभी 12 चुनावी राज्यों में मप्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा सबसे सुरक्षित और संगठित है। अत: संगठन और संघ मप्र को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। जबकि अन्य राज्यों में भाजपा कुछ बदलाव कर सकती है। अभी हाल ही में राजस्थान में संपन्न भाजपा की बड़ी बैठक में राष्ट्रीय नेताओं ने भी संकेत दिया कि मप्र में पार्टी सबसे मजबूत और संगठित स्थिति में है। वहीं राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे की घोषणा की गई। दरअसल, 2018 में सत्ता जाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह जनता के बीच सक्रियता दिखाई, उससे भाजपा के प्रति मतदाताओं का विश्वास प्रगाढ़ हुआ है। वहीं चौथी पारी में मुख्यमंत्री बनने के बाद से शिवराज सिंह चौहान ने बिना आराम किए प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया है, उससे भाजपा आज मजबूत स्थिति में पहुंच गई है।
शिवराज की छवि 24&7 सीएम की है
देश में शिवराज सिंह चौहान एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह 24&7 काम करते हैं। यही कारण है कि आज प्रदेश सहित देशभर में शिवराज की छवि 24&7 वाले सीएम की बन गई है। शिवराज की इस छवि का फायदा भाजपा को हुआ है। 2018 के चुनाव में मिली हार के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अपनी छवि को और लोकप्रिय बनाया है। 2018 का चुनाव इस लिए भी याद रखा जाता है कि लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने पहले छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी और भारत की राजनीति में कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई। यह अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में अपने विधायकों को काबू करने में विफल रही। ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी का एक धड़ा बगावत करके भाजपा में शामिल हो गया और 2020 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गयी। तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति की एक बार फिर से सरकार बनी और मिजोरम में भाजपा के सहयोगी दल मिजो नेशनल फ्रंट को जीत हासिल हुई।
2018 में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा की हार के बाद शिवराज सिंह चौहान ही एकमात्र ऐसे नेता रहे, जो सत्ता में वापसी तक लगातार जनता के बीच सक्रिय रहे। वहीं वसुंधरा राजे 2019 चुनाव के बाद जनता के बीच और खबरों से दूर रहीं। वही उनकी समस्या है। वह सिंधिया ग्वालियर राजपरिवार की बेटी और धौलपुर की महारानी हैं, वह राज करने में विश्वास रखती हैं। जनता के बीच पसीना बहाना उन्हें रास नहीं आता। 2003 से 2008 तक और फिर 2013 से 2018 तक दो दफा वह मुख्यमंत्री रहीं, पर लोग उन्हें उनके किसी कार्य के लिए नहीं बल्कि उनकी छवि ‘8पीएम’ सीएम के रूप में ही याद करती है। उनपर आरोप था कि शाम के 8 बजे के बाद उनसे किसी को मिलने या बात करने की इजाजत नहीं थी, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। वहीं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसके बाद वे भी निष्क्रिय हो गए। जबकि शिवराज सिंह चौहान ने हार के बाद भी हार नहीं मानी और जनता के बीच लगातार सक्रिय रहे। इसका असर भी हुआ और जनमानस को देखते हुए कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने पलायन कर भाजपा का दामन थाम लिया, जिससे 15 माह के दौरान ही मप्र में भाजपा की सत्ता में वापसी हुई।
2023 में भी चलेगा शिवराज का जादू
मध्य प्रदेश में कांग्रेस वापसी करेगी या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जादू इस बार भी चलेगा और वह लोगों के दिलों पर फिर से राज करेंगे। बहरहाल इस सवाल का जवाब आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजों से ही साफ हो पाएगा, जो इस साल के अंत तक होने हैं। मगर अब तक हुए विधानसभा उपचुनावों के परिणाम मध्य प्रदेश में इस बात का अहसास जरूर करा रहे हैं कि आगामी चुनावों का रुख क्या होगा। भाजपा ने अब तक के उपचुनावों में कांग्रेस को मात दी है। शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी ताकत उनके प्रति लोगों का विश्वास और समर्थन है। यह विश्वास और समर्थन उन्हें ऐसे ही नहीं मिला है, बल्कि इसके लिए उन्होंने जनता के प्रति अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रखा है। यानी उनका शासन और जीवन जनता के प्रति पूरी तरह समर्पित है। वे महिलाओं के भाई हैं तो बच्चे-बच्चों के लिए मामा के तौर पर ख्यात है। भाजपा सरकार के महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय होने की मुख्य वजह मुख्यमंत्री की सरल-सहज छवि है। खासतौर से सीएम ने महिलाओं से भाई यानी उनके बच्चों के मामा का जो रिश्ता बनाया है, उसने ग्रामीण महिलाओं में सीएम की छवि की अमिट छाप बनाई है। महिलाएं सीएम को आम जनता के बीच का आदमी मानती हैं। मुख्यमंत्री की छवि बनाने में राज्य सरकार की महिलाओं के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं का भी अहम रोल है। महिलाओं के बीच कन्यादान, लाड़ली लक्ष्मी, जननी योजना, महिला मजदूरों को प्रसव पर आर्थिक सहायता, छात्राओं को मुफ्त साइकिल और स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति, मेधावी छात्र योजना, तीर्थदर्शन बेहद लोकप्रिय हैं। इस कारण सीएम की छवि को महिलाओं ने मामा के रूप में पहचान दी।
अब नजर डालते हैं, मध्य प्रदेश में भाजपा के इकलौते प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की तैयारी पर। मध्य प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय से अपने दो अति-वरिष्ठ नेताओं दिग्विजय सिंह और कमल नाथ के कंधों पर सवार है, यद्यपि इन दोनों नेताओं की चाल-ढाल में अपेक्षित तालमेल न होने के कारण अकसर पार्टी लडख़ड़ाती दिखती है। पार्टी की इस समस्या पर खुद दिग्विजय सिंह पिछले दिनों कार्यकर्ताओं को चेतावनी दे चुके हैं कि कांग्रेस अब हारी तो फिर कभी नहीं जीतेगी। जाहिर है कि कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव को खुद के लिए महत्वपूर्ण तो मानती है, इसके बावजूद पार्टी इस मुकाबले के लिए मैदान में नजर नहीं आ रही। मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस की मौजूदा कमजोरी पर भाजपा बेशक खुश होगी, इसके बावजूद इसे लोकतंत्र की मजबूती के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता। ऐसा भी नहीं है कि मध्य प्रदेश में विपक्ष को ताकत देने के लिए मुद्दों का अभाव है। कांग्रेस के नेता अपने भाषण में मुद्दों का जिक्र भी करते हैं, पर किसी भी मुद्दे को लेकर कांग्रेस सडक़ पर उतरने की हिम्मत नहीं जुटाती। विधानसभा चुनाव में अब भी डेढ़ साल बाकी हैं। कांग्रेस के पास अवसर है कि वह निष्क्रियता त्यागकर खुद को चैतन्य करे और सरकार को कठघरे में खड़ा करने की रणनीति बनाकर मैदान में उतरे। यदि पार्टी तुरंत ऐसा नहीं कर पाएगी तो उसके वरिष्ठतम नेता दिग्विजय सिंह खुद भविष्यवाणी कर चुके हैं कि इस बार नहीं तो फिर कभी नहीं।
शिवराज एक्शन में और कांग्रेस नींद में
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बेहद रोमांचक शो के बाद यद्यपि अगला मुकाबला इस साल के अंत में गुजरात विधानसभा चुनाव में होना है, पर राजनीतिक पंडितों से लेकर आम आदमी तक की अपेक्षाकृत अधिक दिलचस्पी अगले साल के अंत में प्रस्तावित मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दिखने लगी है। इस चुनाव में अभी डेढ़ साल से अधिक समय शेष है, पर चुनावी सियासत में रुचि रखने वाले लोग अभी से कयासबाजी करने लगे हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रति दिलचस्पी की एक बड़ी वजह यह भी है कि इस चुनाव के केवल कुछ महीने बाद वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। जाहिर है, लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस को अंतिम नेट प्रैक्टिस करके देश के जनमानस की थाह लेने का मौका मिलेगा। मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटें धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से खासी विविधतापूर्ण हैं, लिहाजा दोनों राष्ट्रीय दलों को यहां के नतीजों के आधार पर अपनी रणनीतिक तैयारी में सुधार-संशोधन करने में सुविधा होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस भूमिका में अपनी चौथी पारी खेल रहे हैं। यह भूमिका निभाते हुए एक सप्ताह पहले उन्होंने एक रिकार्ड भी बनाया। अब वह किसी भी दूसरे भाजपाई मुख्यमंत्री से अधिक लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उनका कार्यकाल 15 साल 15 दिन से अधिक हो चुका है। पिछला विधानसभा चुनाव 2018 में हुआ था जिसमें बेहद कड़े मुकाबले में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली थी, यद्यपि कमल नाथ के नेतृत्व में केवल 15 महीने बाद यह सरकार कांग्रेस के आंतरिक बिखराव से गिर गई और शिवराज सिंह के ही नेतृत्व में भाजपा फिर सत्तासीन हो गई।
अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज सिंह ने परिश्रम का भी रिकार्ड बनाया है। शायद 2018 के प्रतिकूल अनुभव की वजह से वह अतिरिक्त श्रम कर रहे हैं। इसके अलावा सत्ता संचालन में वह कोई भी ऐसा नुस्खा आजमाने में संकोच नहीं कर रहे जिसके जरिये सामाजिक समूहों को आकर्षित किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश चुनाव के बुलडोजर बाबा के तर्ज पर बुलडोजर मामा वाली छवि सबसे ताजा टोटका है, यद्यपि इससे पहले शिवराज सिंह कई अन्य चर्चित कदम उठा चुके हैं। उनकी कन्या-कल्याण योजनाएं अपने प्रभाव के कारण कई अन्य राज्यों द्वारा अपनाई जा चुकी हैं। इसके अलावा प्रत्येक शासकीय समारोह की शुरुआत कन्या पूजन से करने और खुद मुख्यमंत्री द्वारा प्रतिदिन एक पौधा रोपने जैसे नवाचार खासे लोकप्रिय हैं। इसी के साथ शासकीय कार्यो में व्यस्तता के बावजूद अधिकतर लोक-समारोहों में शामिल होकर समरस भाव से आनंदमग्न होने का उनका व्यवहार उनकी लोकप्रियता के आधार को अधिक मजबूत कर रहा है। लोक कल्याण और अपराध नियंत्रण के मोर्चो पर भी शिवराज सिंह सरकार की उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं।
कांग्रेस इस बार और बेदम
2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस जितनी संगठित थी इस बार वह उतनी ही बेदम है। प्रदेश में अंगद की तरह पैर जमाकर बैठे शिवराज सिंह चौहान को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के अनेक असंतुष्ट भी कोशिश करते रहे, मगर उन्हें अभी तक तो कामयाबी नहीं मिली। नर्मदा की तलहटी में बचपन से तैरने वाले शिवराज राजनीति के अनेक सैलाब को पार करते चले गए। दिग्विजय सिंह की सरकार को सत्ता से हटाने के साथ प्रदेश में भाजपा सरकार के करीब 19 साल और शिवराज के करीब 17 साल के शासन के विरोध में कांग्रेस ने उन्हें उखाड़ फेंकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन शिवराज उतने ही मजबूत होते चले गए। यह तो तय है कि मध्यप्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा के चुनाव लगातार चौथी बार सत्ता संभाल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही भाजपा लड़ेगी! इसके पीछे कई कारण हैं। पहला यह कि आज भाजपा के पास शिवराज का विकल्प नहीं है और शिवराज अपनी अनेक लोकलुभावन योजनाओं के कारण चर्चित हैं। पार्टी में अमित शाह, नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा के साथ- साथ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से भी उनके संबंध मधुर हैं। जो उन्हें स्थायित्व प्रदान किए हैं।
वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव से मिशन-2018 तक प्रयोग में उलझी कांग्रेस प्रदेश के दिग्गजों की खेमेबाजी में ऐसी उलझी है कि सत्ता में आने के बाद भी 15 माह के अंदर ही सत्ता गंवानी पड़ी। इन सालों में कांग्रेस ने हर कोशिश की कि ये गुटबंदी खत्म हो जाए, पर ज्यों-ज्यों दवा की त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता ही गया कि तर्ज पर मसला ऐसा उलझता गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इसे नहीं सुलझा पाए। अब जबकि देश के सबसे बड़े हिंदी राज्य उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बन जाने के बाद मध्यप्रदेश ही कांग्रेस को दिखाई दे रहा है कि यहां अगर भाजपा को नहीं रोका गया तो कांग्रेसमुक्त भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को रोकने की कोई राह उसके पास बचेगी! इसलिए कांग्रेस एक बार फिर से समन्वय की कवायद में जुटी हुई है।
मप्र में सत्ता, संगठन और संघ का समन्वय
मप्र में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि पूरी भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को पूरे मन से स्वीकार रही है। इसलिए उसके सामने भाजपा को हराने के लिए कोई माध्यम नहीं मिल पा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा जुनून, जज्बे और लक्ष्य के साथ मैदान में उतरती है। तभी वह हर काम में सफलता अर्जित कर लेती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी में सत्ता, संगठन और संघ का समन्वय हर बार की अपेक्षा अधिक देखा जा रहा है। इसलिए कांग्रेस के लिए 2023 बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। वहीं जिद, जज्बे और जुनून से ऊंची से ऊंची और कठीन मंजिल भी फतह की जा सकती है। इसको सिद्ध किया है मप्र के पांव-पांव वाले भैया यानी शिवराज सिंह चौहान ने। कभी प्रदेश की पगड़डियों पर पैदल घुमने वाले शिवराज वर्तमान में मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी चौथी पारी खेल रहे हैं। इस चौथी पारी में वे जिस जज्बे और जुनून के साथ काम कर रहे हैं उससे तो यह साफ है कि अगला दशक भी शिव ‘राज’ का होगा।
साल 2021 के साथ नए दशक 2021-30 की भी शुरुआत हुई है। सियासी परिदृश्य में इस अवधि को लेकर कई संभावनाएं हैं। दलों की स्थिति, राजनेताओं के कद, नए समीकरण और गठबंधन की तस्वीरें। ये सब कुछ बदल चुके होंगे और खास नजर रहेगी भाजपा के विजयी रथ पर। मोदी-शाह की जोड़ी भाजपा को नए युुग में ले जा रही है, जो नए दशक में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे में भाजपा का ग्राफ बढऩे की प्रबल संभावना है। खासकर कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी के सिमटने की प्रवृत्ति के चलते भाजपा की राह आसान होंगी। यानी ये दशक भाजपा के नाम होने वाला है, जिसकी कई वजहें भी हैं।
विकास मोड में सरकार
प्रदेश सरकार इस समय मिशन मोड में है। इसकी वजह है आगामी विधानसभा चुनाव। भाजपा सरकार आगामी विधानसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरेगी। इसके लिए विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को धड़ाधड़ मंजूरी दी जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आत्मनिर्भर मप्र अभियान को प्रदेश के गांव संबल दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि प्रदेश सरकार के नवाचारों से गांवों की तस्वीर बदली है। प्रदेश सरकार का शहर की ही तरह गांवों के विकास पर भी फोकस है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार की अभ्युदय योजना को माध्यम बनाया गया है। वहीं 8,500 करोड़ की सडक़ें और पुल बनेंगे का काम शुरू होने वाला है। इसके लिए आगामी दो माह में टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। प्रदेश मेें विकास कार्यों को गति देने के मद्देनजर सरकार ने पीडब्ल्यूडी की 200 सडक़ों, 70 से ज्यादा पुल और भवनों को मंजूरी दे दी है। इसमें केंद्रीय सडक़ निधि (सीआरएफ) और नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) के तहत बनने वाली 8 प्रमुख सडक़ें शामिल हैं। बजट में 5000 करोड़ की सडक़ों और पुल का काम शामिल है। एनएचएआई की 1500 करोड़ की आठ सडक़ें बनेंगी। इनमें सीआरएफ के 2000 करोड़ के आठ और प्रोजेक्ट शामिल हैं। वहीं पीडब्ल्यूडी को हर माह खर्च के लिए वित्त विभाग अभी तक 500 करोड़ रुपए की लिमिट देता था, इसे 200 करोड़ रुपए बढ़ाकर 700 करोड़ रुपए कर दिया गया है। जल संसाधन और नर्मदा घाटी विकास विभाग का 500-500 करोड़ है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग का मासिक खर्च लिमिट 507 करोड़ रुपए ही रखा है। वहीं भोपाल, इंदौर, जबलपुर सहित प्रदेश के अन्य नगरीय क्षेत्रों में यातायात का सुगम बनाने के लिए सरकार 18 ओवर ब्रिज बनाएगी। ये भी ब्रिज केंद्रीय सडक़ निधि के अंतर्गत सेतु बंधन योजना के तहत बनाए जाएंगे। इसमें मध्य प्रदेश के लिए 105 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है।
लगभग डेढ़ दो दशक पहले तक बीमारू और पिछड़े राज्य की श्रेणी में आना वाला मध्यप्रदेश अब विकास की बहार वाला राज्य है। पिछले 17 सालों में विकास की पगडंडियों से होते हुए अब आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के रोडमैप पर प्रदेश चल रहा है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूती देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने हर क्षेत्र के विस्तार और विकास के अनुकूल वातावरण निर्मित किया है। प्रदेश में एक तरफ जहां उद्योगों का जाल बिछाकर विकास के नये आयाम स्थापित किये जा रहे हैं तो वहीं कृषि और किसानों को समृद्ध और समर्थ बनाना प्रदेश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। केन्द्र के सहयोग और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली डबल इंजन सरकार की कृषि कल्याण की विभिन्न योजनाओं के परिणाम स्वरूप ही मध्यप्रदेश को लगातार 7 बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ है। प्रदेश के लिए कृषि वास्तविक अर्थों में जीवन रेखा है, और अन्नदाता प्रदेश के मजबूत आधार स्तंभ हैं। इसलिए सरकार का पूरा फोकस सिंचाई योजनाओं के विस्तार पर है।