
- सरकार सालों से नहीं ले पा रही है कोई फैसला …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश का किसान पहले से ही मंहगाई और बढ़ती फसल लागत की वजह से परेशान है, ऐसे में फसलों के लिए नीलगाय और सूअर उनके लिए दोहरी मुसीबत बने हुए हैं। इसके बाद भी सरकार इन दोनों ही फसल नष्ट करने वाले जानवरों के मामलों में कोई भी फैसला नही ले पा रही है, जिसकी वजह से यह इन जानवरों की संख्या प्रदेश के तीन दर्जन जिलों में तेजी से इतनी बढ़ चुकी है कि किसानों को लगातार 24 घंटे फसल की रखवाली करनी पड़ रही है , फिर भी होने वाले नुकसान से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। दरअसल यह दोनों ही जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
हालत यह है कि प्रदेश के जिन तीन दर्जन जिलों में यह दोनों ही जानवर किसानों की फसल नुकसान के लिए मुसीबत बने चुके हैं, उनमें रतलाम, मंदसौर, नीमच, देवास, छतरपुर, सागर, रीवा और शहडोल जिले शामिल हैं। इसी तरह से खंडवा, होशंगाबाद, रायसेन, इटारसी, मंडला, उमरिया, डिंडोरी व टाइगर रिजर्व के आसपास के क्षेत्र में जंगली सूअर किसानों के लिए बड़ी समस्या बन चुके हैं। खास बात यह है कि इनके सही आंकड़े भी वन विभाग के पास नहीं हैं, पर विभाग यह मानता है कि इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। खास बात यह है कि इसका मामला कई बार विधानसभा तक में उठ चुका है। इसके बाद भी कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।
सरकार बीते एक साल में नीलगाय और सुअर के शिकार के नियमों को आसान नहीं बना सकी है। इसका प्रस्ताव सरकार स्तर पर लंबित बना हुआ है। सूअर, हिरन की तरह नीलगाय भी खड़ी फसलों को बुरी तरह से बर्बाद करती हैं। इससे परेशान किसान कई साल से सरकार से गुहार लगा रहे हैं। विधानसभा में मामला उठने पर वन मंत्री ने लिखित जबाव में कहा था कि नीलगाय से फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार करती है। किसानों को मुआवजा दिया जाता है। हालांकि सरकार के पास इस समस्या का स्थाई हल अब भी नहीं है। सरकार करीब 10 साल से नीलगाय की संख्या नियंत्रित करने पर काम कर रही है। पहले नसबंदी पर काम किया गया, जो असफल रहा। इसके बाद नीलगाय के शिकार के नियम सरल करने पर मंथन हुआ। वन विभाग ने करीब डेढ़ साल में संशोधन का प्रारूप तैयार किया, जिसमें नीलगाय के शिकार की अनुमति अनुविभागीय राजस्व अधिकारी से छीनकर एसडीओ वन को दिया जाना प्रस्तावित है। प्रारूप जुलाई 2021 में सरकार को भेजा गया है। विधायकों से भी सुझाव मांगे गए हैं, पर निर्णय नहीं हो पा रहा है।
ग्वालियर एयरपोर्ट पर भी नीलगाय की मुसीबत
ग्वालियर एयरपोर्ट स्टेशन इन दिनों नीलगाय से परेशान है। महाराजपुरा स्थित एयरफोर्स स्टेशन के लिए आसपास के जंगल में घूमने वाली 100 से ज्यादा नीलगाय परेशानी का सबब बनी हुई है। दरअसल तार फेसिंग टूटने और बड़ी बाउंड्री वॉल ना होने के चलते एयरफोर्स स्टेशन के पिछले हिस्से से नील गायों के झुंड अंदर घुस आते हैं। कैंपस में घुसने के बाद नीलगाय कई बार रनवे तक पहुंच जाती है, जिससे एयर फोर्स के फायटर प्लेन के हादसे का शिकार होने की आशंकाएं बढ़ रही है। नीलगाय को रोकने के लिए एयरफोर्स ने बाउंड्री स्वीकृति की कोई समय सीमा नहीं थी। बॉल के आसपास संख्या में कर्मचारियों की तैनाती की है। इसके बावजूद नीलगाय की बढ़ती संख्या एयरफोर्स स्टेशन के लिए परेशानी बन गई है।
नए एक्ट में यह प्रावधान
हथियार लाइसेंसी शिकार कर सकेगा। यदि किसी के पास लाइसेंस नहीं है तो वह उस जिले के किसी भी दूसरी लाइसेंसी व्यक्ति से शिकार करा सकेगा। फॉर्म में दोनों के नाम संयुक्त रूप से लिखे रहेंगे। समय सीमा तय रहेगी। आवेदन मिलने के बाद रेंजर पांच दिन के भीतर जाकर देखेगा और उसकी रिपोर्ट के बाद तीन दिन में एसडीओ मंजूरी देगा। निजी जमीन पर जानवर को मारने के बाद यदि वह जंगल में जाकर मरता है, तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा। एक बार में पांच-पांच जंगली सूअर या नीलगाय को मारने की इजाजत रहेगी। फिलहाल जो एक्ट लागू है उसके मुताबिक जंगली सूअर और नीलगाय को मारने की स्वीकृक्ति एसडीएम देते हैं। शिकारी के पास गन का लाइसेंस होने के साथ ही उस व्यक्ति का रजिस्टर्ड शिकारी होना जरूरी है। नीलगाय को मारते समय उसका निजी जमीन पर होना जरूरी है। शिकारी को ही यह लिखकर सुअर व देना होगा कि जिसे उसने मारा है, वही फसल का नुकसान करता था। शिकार के बाद शव निजी जमीन पर ही मिलना चाहिए। सूअर की संख्या 10 तय थी, जबकि नीलगाय की कोई संख्या तय नहीं थी।