- बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का मामला…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में दर्शन यात्रा निकालने पर कड़ा रुख अपनाया है। यात्रा को लेकर अधिकरण ने पर्यावरण की चिंताओं का जिक्र कर आपत्ति उठाई है। एनजीटी की केंद्रीय क्षेत्रीय पीठ ने हाल ही में इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की। इस मामले में वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए उनके अधिवक्ता हर्षवर्धन तिवारी ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में प्रस्तावित दर्शन यात्रा के खिलाफ याचिका दायर की। यह यात्रा सद्गुरु कबीर धर्मदास साहब वंशावली द्वारा आयोजित की जानी है। याचिका में कहा गया कि यह यात्रा रिजर्व क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी और वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का उल्लंघन करती है। याचिका में उठाए गए बिंदुओं के अनुसार, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भारत के प्रोजेक्ट टाइगर पहल का एक अभिन्न हिस्सा है और इसका कोर क्षेत्र विशेष रूप से बाघों और अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए आरक्षित है। इस कोर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधियों की अनुमति नहीं है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता को बनाए रखा जा सके। याचिका में यह बताया गया कि इस यात्रा के कारण पार्क के पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बड़ी संख्या में लोगों के प्रवेश से वन्यजीवों का प्राकृतिक व्यवहार और प्रजनन चक्र बाधित होगा।
14 हजार लोगों के प्रवेश से प्रदूषण हुआ
एनजीटी ने इस मामले पर गहन विचार करते हुए पाया कि 14 दिसंबर को निकली यात्रा के दौरान 14,000 से अधिक प्रतिभागियों के पार्क में प्रवेश और चारनगंगा नदी के उपयोग से भारी प्रदूषण हुआ था। इसके अलावा, बांस की कटाई और कचरा प्रबंधन की कमी के कारण वनों की कटाई और प्रदूषण बढ़ा। इससे बाघों और अन्य वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में गंभीर व्यवधान उत्पन्न होगा। याचिका में यह भी कहा गया कि फील्ड ऑफिसर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व द्वारा दर्शन यात्रा की अनुमति देते समय उचित प्रावधान और पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय नहीं किए गए। न तो प्रतिभागियों की संख्या सीमित की गई और न ही उनके प्रवेश और निकासी के लिए समय निर्धारित किया गया। इसके अतिरिक्त, सफाई व्यवस्था और कचरा प्रबंधन योजना का भी अभाव था। एनजीटी ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यह मामला पर्यावरणीय कानूनों का गंभीर उल्लंघन है। विशेष रूप से, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, संरक्षित क्षेत्रों में ऐसी गतिविधियों को रोकता है, और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के उपयोग के लिए सख्त अनुमोदन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
सीमित संख्या के साथ केवल इलेक्ट्रिक वाहन की अनुमति
एनजीटी ने यह भी निर्देश दिया कि यात्रा के दौरान प्रतिभागियों की संख्या सीमित होनी चाहिए और केवल इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, सफाई और कचरा प्रबंधन के लिए एक व्यापक योजना लागू की जानी चाहिए।
14 हजार लोगों के प्रवेश से प्रदूषण हुआ
एनजीटी ने इस मामले पर गहन विचार करते हुए पाया कि 14 दिसंबर को निकली यात्रा के दौरान 14,000 से अधिक प्रतिभागियों के पार्क में प्रवेश और चारनगंगा नदी के उपयोग से भारी प्रदूषण हुआ था। इसके अलावा, बांस की कटाई और कचरा प्रबंधन की कमी के कारण वनों की कटाई और प्रदूषण बढ़ा। इससे बाघों और अन्य वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में गंभीर व्यवधान उत्पन्न होगा। याचिका में यह भी कहा गया कि फील्ड ऑफिसर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व द्वारा दर्शन यात्रा की अनुमति देते समय उचित प्रावधान और पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय नहीं किए गए। न तो प्रतिभागियों की संख्या सीमित की गई और न ही उनके प्रवेश और निकासी के लिए समय निर्धारित किया गया। इसके अतिरिक्त, सफाई व्यवस्था और कचरा प्रबंधन योजना का भी अभाव था। एनजीटी ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यह मामला पर्यावरणीय कानूनों का गंभीर उल्लंघन है। विशेष रूप से, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, संरक्षित क्षेत्रों में ऐसी गतिविधियों को रोकता है, और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के उपयोग के लिए सख्त अनुमोदन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
एनजीटी ने दिए निर्देश दिए
एनजीटी ने जारी आदेश में कहा है कि यह मामला पर्यावरणीय कानूनों का गंभीर उल्लंघन है। विशेष रूप से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, संरक्षित क्षेत्रों में ऐसी गतिविधियों को रोकता है और वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के उपयोग के लिए सख्त अनुमोदन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) एक विशेषज्ञ समिति का गठन करें। यह समिति यात्रा को विनियमित करने के लिए नियम बनाएगी और पर्यावरणीय क्षति को रोकने के उपाय सुझाएगी। एनजीटी ने मध्यप्रदेश सरकार के वन विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि वे 18 अक्टूबर 2022 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा भेजे गए पत्र पर विचार करें और एक उचित नीति तैयार करें।