खोजी सेहत दुरुस्त करने वाली नई गेहूं की किस्में

नई गेहूं

– किसानों को भी मिलती है इन फसलों की बेहतर कीमत

भोपाल/विनोद उपाध्याय /बिच्छू डॉट कॉम। वैज्ञानिकों ने गेहूं की ऐसी चार किस्मों को खोजा है, जो न केवल किसानों के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि सेहत को भी दुरुस्त रखने में भी बेहद कारगर हैं। दरअसल मप्र ऐसा राज्य है जहां पर फसलों को लेकर लगातार रिसर्च हो रही है। सरकार भी किसानों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं दे रही है। यही वजह है कि मप्र देश में सर्वाधिक गेहूं उत्पादन करने वाले राज्यों में शीर्ष पर बना हुआ है। अब तो मप्र उन राज्यों में भी शामिल हो चुका है, जहां पर किसानों द्वारा नवाचार करते हुए जैविक गेहूं को बोया जाने लगा है। यह कुपोषण के साथ जंग में काम करते हुए सेहत भी दुरुस्त करने का काम करता है। आमतौर पर अभी तक लोगों ने काले गेहूं का नाम सुना है, लेकिन अब नई किस्मों के रूप में बंशी (पीला) व खफली (लाल), सोना मोती किस्म का गेहूं भी आ चुका है।  इन किस्मों को किसानों ने उगाने का काम शुरू कर दिया है। इसके इस्तेमाल से न केवल रोटी स्वादिष्ट बनती है, बल्कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करने काम करती है। इसे कैंसर और डायबिटीज मरीजों के लिए भी कारगर माना जा रहा है। इसकी वजह है  कृषि वैज्ञानिकों का वह शोध, जिसमें इन रोगों के लिए इसे फायदेमंद पाया गया है।
यह है नई किस्मों की विशेषताएं
काला गेहूं में बीस फीसदी तक प्रोटीन होता है, यह मात्रा पोषक आहार में उपयोगी होती है। यह किस्म कैंंसर व डायबिटीज की बीमारी में मरीजों के लिए कारगर है। इसी तरह से बंशी नामक गेंहू हल्के पीले रंग का होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 14 से 15 प्रतिशत है। जबकि, खफली किस्म  के  गेहूं का लाल रंग का दाना होता है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसी तरह से सोना मोती किस्म के  गेहूं का ज्वार के दाने की तरह गोल होता है, जिसमें फोलिक एसिड की मात्रा ज्यादा होती है। यह गेंहू हृदय रोग से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें प्रोटीन और फाइबर की मात्रा भी भरपूर होती है। खास बात यह है कि इस किस्म के गेहूं की बाजार में कीमत भी अच्छी मिलती है। फिलहाल इसका बाजार मूल्य छह हजार रुपए क्विंटल बताया जा रहा है।
इन जिलों में होता है उत्पादन
गेहूं उत्पादन में मध्यप्रदेश का पहला स्थान है। प्रदेश के 35.49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है। मध्य प्रदेश में गेहूं अक्टूबर-नवम्बर में बोया जाता है तथा मार्च-अप्रैल में तैयार हो जाने पर फसल काट ली जाती है। गेहूं की खेती मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में होती है। प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में ताप्ती और नर्मदा, तवा, गंजाल, हिरण आदि नदियों की घाटियों और मालवा के पठार की काली मिट्टी के क्षेत्रों में सिंचाई के द्वारा गेहूं पैदा किया जाता है। प्रदेश के होशंगाबाद, सीहोर, विदिशा, जबलपुर, गुना, सागर, ग्वालियर, निमाड़, उज्जैन, इंदौर, रतलाम, देवास, मंदसौर, झाबुआ, रीवा और सतना जिलों में गेहूं का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
बाजार में मांग ज्यादा
मोहाली की कृषि वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गर्ग ने रिसर्च करते हुए काला गेहूं बीज तैयार किया था। सामान्य गेहूं की तुलना में काला गेहूं पूर्णत: जैविक तकनीक से पैदा होता है। इसमें एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा होता है। इसकी बाजार मांग भी ज्यादा है। सामान्य गेहूं अभी बाजार में 1800 से 23 सौ रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। वहीं काले गेहूं की कीमत 4000 से लेकर 7000 रुपए क्विंटल तक है।
पहले स्थान पर हैं मप्र
गेहूं उत्पादन के मामले में मध्यप्रदेश पहले स्थान पर है। प्रदेश को पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। प्रदेश में गेहूं की उत्पादकता 2850 किलोग्राम से बढ़कर 3115 किलोग्राम हो गई है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूं की फसल होती है। गेहूं मध्य प्रदेश की प्रथम महत्वपूर्ण फसल है। रबी की फसलों का सबसे अधिक क्षेत्र गेहूं के अन्तर्गत है। प्रदेश के 35.49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है। गेहूं की कृषि अधिकांशत: मध्य प्रदेश से उसी क्षेत्र में होती है, जहां वर्षा का औसत 75 में 125 सेंमी.  होता है। जहां वर्षा कम होती है, वहां सिंचाई के माध्यम से भी गेहूं की खेती की जाती है।

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