नया प्रयोग: अब गोबर से भी बनेगीं ईंटें

गोबर की ईंटें
  • सस्ती, मजबूत होने के साथ ही देंगी मौसमी राहत…

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। वो दिन दूर नहीं हैं, जब सीमेंट और मिट्टी से बनने वाली ईटों की जगह गोबर से बनने वाली ईटों से मकान और आलीशान मकान बनेंगे। इससे पर्यावरण में भी सुधार होगा और पशुपालन से जुड़े लोगों की आय में भी वृद्धि होगी। इसकी वजह है आईटी इंजीनियर डॉ.चयन लोहा का वो इनोवेशन जिसकी वजह से गोबर से ईंट बनाने का प्रयोग सफल रहा है। लोहा वैसे तो आईटी इंजिनियर हैंं, लेकिन उन्हें गांव की मिट्टी खींच लाई। यही वजह रही कि वे आठ लाख रुपए के पैकेज की नौकरी छोडक़र गांव लौट आए और उनके द्वारा यहां पर एक गौशाला खोल ली गई। इसके बाद उनके द्वारा किए गए इनोवेशन की वजह से गाय के गोबर से ईंटें बनाईं गई। इसका उपयोग उनके द्वारा मकान बनाने में किया गया। गोबर की ईंट से ऐसा मकान बनाया गया, जिस पर मौसम का  असर नहीं होता है और मकान भी पूरी तरह से बैक्टीरिया मुक्त रहता है। इस तरह का यह प्रदेश में दूसरा प्रयोग है। इससे पहले भी इसी तरह का एक मकान ग्वालियर में बनाया जा चुका है। यह प्रयोग डॉ.लोहा ने दमोह जिले के बडगुंवा गांव में किया। यहां उन्होंने गोबर से 10 हजार ईंटें तैयार की हैं। बीटेक आईटी व आयुर्वेद से पंचगव्य की पढ़ाई कर चुके डॉ. लोहा का कहना है कि उन्होंने गाय के गोबर से ईंट व वैदिक प्लास्टर बनाने का हुनर अपने गुरु डॉ.एसडी मलिक से सीखा, जो वैज्ञानिक हैं। खास बात यह है कि  में ग्वालियर के बाद अब दमोह में वैदिक हाउस, लैब टेस्टिंग में साबित हुआ कि सामान्य ईंट के मुकाबले सस्ती और मजबूत हैं गोबर की ईंटें।
    इसलिए बैक्टीरिया मुक्त है वैदिक हाउस
    आधुनिक विज्ञान के जीवाणु सिद्धांत के अनुसार बैक्टीरिया को पनपने का मौका तब मिलता है, जब उनके अनुकूल वातावरण हो। शीत ऋतु में शीत के वायरस व ग्रीष्म में गर्म वातावरण के वायरस जन्म लेते हैं। वैदिक प्लास्टर युक्त भवन एडोबटेक्निक (काब और एडोब सिद्धांत) पर आधारित होने के कारण गर्मी में ठंडे व ठंड में गर्म होते हैं। जिससे प्रतिकूल वातावरण में वायरस नहीं पनपते, जबकि सामान्य ईंट वाले घर में बैक्टीरिया के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है, जिससे वह कई गुना पनपते हैं।
    इसलिए ठंड-गर्मी मुक्त है वैदिक हाउस
    गोबर की ईंट में मिट्टी, भूसा व प्राकृतिक पदार्थ का उपयोग होता है। ये चीजें ऊष्मा को अवशोषित करके अपने अंदर रखती हैं और बहुत धीमे छोड़ती हैं। इस तरह से यह तापमान को बहुत अधिक समय तक नियंत्रित करके रखती है।
    इस तरह के  मिश्रण का किया जाता है  ईंट बनाने में  उपयोग
    गोबर की ईंट तैयार करने के लिए जो  मिश्रण तैयार किया जाता है, उसमें सर्वाधिक  90 फीसदी गोबर और 10 फीसदी  मिट्टी, चूना, नींबू का रस, बेल का फल मिलाया जाता है। इसे सांचों में ढालकर वैदिक ईंट बनाई जाती है। 1 हजार ईंट बनाने में 1600 किलो गोबर का उपयोग होता है।
    ऐसे समझें खर्च का अंतर
    100 वर्गफिट का कमरा बनाने में 35 हजार रुपए की 5 हजार सामान्य ईंटें, 40 हजार की रेत, 40 हजार की सीमेंट, 10 हजार का लोहा व 25 हजार रुपए की बालू लगती है। यानी 1.50 लाख का खर्च आएगा। वैदिक हाउस में 30 हजार की गोबर की ईंटें, गोबर का गारा 30 हजार, वैदिक प्लास्टर 50 हजार रुपए का यानी 1.10 लाख रुपए का खर्च आएगा।
    वैदिक प्लास्टर-गोबर में जिप्सम, भूसा मिलाकर तैयार किया
    वैदिक प्लास्टर बनाने के लिए गोबर, जिप्सम, मिट्टी, भूसा, रेत और कुछ प्राकृतिक पदार्थ का यौगिक तैयार किया, जो क्रिया करके सशक्त प्राकृतिक पाउडर बनाता है। इसे पानी के साथ मिलाकर ईंट की दीवार पर प्लास्टर कर दिया जाता है। ये दीवारें ब्रीदिंग वाल्स का काम करती हैं। ऐसे स्ट्रक्चर्स में ऑक्सीजन की मात्रा भरपूर होती है। वैदिक प्लास्टर में भी गोबर की मात्रा 90 प्रतिशत होती है।
    110 डिग्री पर नहीं जली ईंटें
    पंचगव्य सिद्धांत के अनुसार गाय के गव्य के गुणों की जिस दिशा में वृद्धि की जाए उस गुण को गव्य कई गुना बढ़ा देते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर गोबर में कैल्शियम को थोड़ा-सा बढ़ाया तो यह मजबूत बन गई। इसी कारण से ये ईंट 110 डिग्री तापमान पर न जली और न ही पानी में गली।

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