विंध्य में न विकास, न रोजगार, जाति से तय होती जीत-हार

विंध्य
  • पार्टियां भी जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर उतारती हैं प्रत्याशी

भोपाल/चिन्यम दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। आजादी के 75 साल बाद भी विंध्य क्षेत्र विकास और रोजगार जैसी कई समस्याओं से जूझ रहा है। लेकिन जब मतदान की बात आती है तो सबसे महत्वपूर्ण कारक इनमें से कोई भी मुद्दा नहीं, बल्कि जाति बन जाती है। इसलिए यहां राजनीति पार्टियां भी जाति की बहुलता के हिसाब से प्रत्याशी तय करती हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टियों ने जाति के हिसाब से जमावट शुरू कर दी है। प्रदेश की राजनीति में विंध्य इलाके का अलग ही मिजाज रहा है। विंध्य क्षेत्र की कई विधानसभा सीटों को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है। बीते चार चुनाव के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। यहां की 30 सीटों में से 24 पर भाजपा का कब्जा है। यहां जातिगत राजनीति प्रभावी रहती है। इस इलाके में ब्राह्मण, जनजाति वर्ग का का खासा वर्चस्व है। कई क्षेत्रों में ओबीसी वर्ग भी सियासत की बाजी पलटने का माद्दा रखता है। परिवर्तन के दौर में हालांकि इस बार भाजपा के सामने गढ़ बचाने की चुनौतियां हैं। जबकि कांग्रेस के भीतर अपना पुराना जनाधार वापस पाने की छटपटाहट भी साफ नजर आ रही है। बहुजन समाज पार्टी के उद्भव व पराभव का गवाह विंध्य क्षेत्र राजनीति में नई सियासी करवटों के लिए भी जाना जाता है।
विंध्य क्षेत्र मप्र की राजनीति की प्रयोग भूमि भी है। यहां नई पार्टियां आते ही अपना प्रभाव जमा लेती हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है। भाजपा के लिए विंध्य क्षेत्र की जीत कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने विंध्य की विधानसभा सीटों के चुनावी मैदान में प्रदेश के तीन मंत्रियों राजेंद्र शुक्ल, मीना सिंह व बिसाहूलाल सिंह को टिकट देकर जहां चुनावी जंग में उतारा है, वहीं दो सांसद सतना से गणेश सिंह एवं सीधी से रीति पाठक को उम्मीदवार बना कर विधायकी जीतने की बिसात बिछा दी है। पार्टी ने इस कदम से यह मिथक भी तोड़ने की कोशिश की है कि चाहे वह मंत्री हो या सांसद, पार्टी की नजर में कार्यकर्ता ही है और उसे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्देशों का पालन करना ही होगा। विंध्य क्षेत्र में भाजपा की इस नीति के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
ब्राह्मण, ओबीसी और गौंड समुदाय का दबदबा
विंध्य क्षेत्र की विधानसभा सीटों में जातिगत समीकरण की अहम भूमिका है। राजनीतिक दल भले ही इस तथ्य से इंकार करें, पर सच्चाई यह है कि प्रत्याशी चयन में इस तथ्य तथा समीकरण को पूरी गंभीरता से महत्व दिया जाता है। विंध्य में ब्राह्मण, ओबीसी और गौंड समुदाय का दबदबा है। विंध्य में सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, अनुपपूर, सिंगरौली, उमरिया जिले आते हैं। बीते चार चुनावों की बात करें तो भाजपा ने इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। विंध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटें आती हैं। 2003 के चुनाव में 28 में से 18 सीटें भाजपा के खाते में थीं। 2008 में भाजपा ने 24 सीटों पर कब्जा जमाया था, 2013 के चुनावों में थोड़े कमजोर प्रदर्शन के साथ 17 सीटें हासिल की थी जबकि 2018 के चुनावों में से भाजपा ने फिर 24 सीटें जीती लीं। 2018 में कांग्रेस ने भले सरकार बना ली हो पर, इस इलाके में उसे यहां से मात्र 6 सीटें मिली थी, जबकि 2013 में उसके पास 11 सीटें थीं। इस क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी का भी अच्छा खासा दबदबा है। कई सियासी मिजाज बार बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ने का काम किया है। भाजपा ने मऊगंज एवं मैहर को जिला बनाने की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा कर इन क्षेत्रों के रहवासियों की गेंद भी अपने पाले में कर ली है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विंध्य क्षेत्र को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए कई महत्वपूर्ण सौगातें दीं हैं।
गढ़ कब्जाने कांग्रेस सक्रिय
विंध्य इलाका भले ही अब भाजपा का गढ़ हो पर किसी जमाने में कांग्रेस का यहां दबदबा था। 2018 के बाद से ही यहां कांग्रेस ने फोकस बढ़ा दिया है। विंध्य इलाके को कांग्रेस ने चुनौती के तौर पर लिया और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह ने घर वापसी अभियान चलाकर पुराने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया। करीब एक साल से अजय सिंह राहुल जमीनी स्तर पर रणनीति बनाने में जुटे हैं। पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को सेंट्रल वर्किंग कमेटी सहित चुनाव संबंधी सभी महत्वपूर्ण समितियों में शामिल करके सियासी संदेश देने की कोशिश की गई है। विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस ने दो जन आक्रोश यात्रा निकालकर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की हर संभव कोशिश की है । कांग्रेस ने ब्योहारी में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की जनसभा करा कर सियासी समीकरण साधने की कोशिश की है। इस सभा के जरिये सीधी के पेशाब कांड के बाद जनजाति वर्ग और ब्राह्मणों की नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश हो रही है। राहुल गांधी की जनजाति इलाके ब्यौहारी में सभा इसलिए कराई गई, जिससे पार्टी की आवाज जनजाति वर्ग तक पहुंचे और उनके वोट कांग्रेस के खाते में पहुंच सकें।

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