नर्मदापुरम: जनता की कसौटी पर… प्रत्याशियों की परीक्षा

  • कहीं दो में भिड़ंत तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला
  • विनोद उपाध्याय
प्रत्याशियों की परीक्षा

प्रदेश में सभी 230 सीटों पर प्रचार जोरों पर है। पार्टियों के साथ ही प्रत्याशी भी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। लेकिन कई सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों में प्रत्यक्ष भिड़ंत है या फिर त्रिकोणीय मुकाबला है। लेकिन यह तस्वीर साफ नहीं है कि कौन जीत का प्रबल दावेदार है। प्रदेश में सभी सीटों पर चुनावी हलचल तो नजर आ रही है, लेकिन मतदाताओं के मौन के कारण तस्वीर साफ नहीं दिख रही है। भाजपा के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित मानी जाने वाली होशंगाबाद सीट पर नाम मात्र की हलचल है। जनता वर्षों से जिस परिवार को सरताज बनाती आ रही थी, वह भी मौन है। इस बार एक ही परिवार से दो भाइयों को अलग-अलग दल से टिकट मिलने के कारण हर कोई असमंजस में है। दबी जुबान में लोग यही कह रहे हैं कि मुकाबला त्रिकोणीय है। दोनों भाइयों के एक साथ मैदान में आ जाने से निर्दलीय उम्मीदवार का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। जिले के बाकी तीनों विधानसभा क्षेत्र सोहागपुर, पिपरिया और सिवनी मालवा में जनता विकास को मुद्दा बना रही है। दलों के साथ प्रत्याशियों को भी अपनी कसौटी पर परख रही है। संभाग के हरदा जिले की बात करें तो इस विस क्षेत्र में कांटे की टक्कर है। टिमरनी में निर्दलीय उम्मीदवार के चलते चाचा-भतीजे का गणित बिगड़ता नजर आ रहा है।
बैतूल जिले की सीटों पर रोचक मुकाबला
बैतूल में भाजपा के पूर्व प्रदेश कोषाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल को पार्टी ने तीसरी बार मौका दिया है। वह पिछला चुनाव कांग्रेस के निलय डागा से हार गए थे। चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद लगातार पांच वर्ष तक उन्होंने अपनी गलतियां सुधारी। जनता से लगातार संपर्क में रहने के कारण पार्टी ने उन्हें एक बार फिर मौका दिया है। कांग्रेस की टिकट पर पहली बार 2018 में चुनाव लडक़र  जीत दर्ज करने वाले निलय डागा भी इस बार जीत को बरकरार रखने के लिए पूरी तैयारी से प्रचार अभियान में जुटे हैं। आमला विस पर पेशे से डाक्टर योगेश पंडाग्रे को भाजपा ने पहली बार टिकट देकर मैदान में उतारा था। उन्होंने कांग्रेस के मनोज मालवे को 19197 वोट से पराजित कर जीत हासिल की थी। पांच वर्ष तक क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने के कारण भाजपा से उन्हें फिर मौका दिया है। कांग्रेस ने एक बार फिर से पिछला चुनाव हारने वाले मनोज मालवे पर भरोसा जताया है। बता दें कि अंतिम समय तक पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे के कारण आमला सीट से प्रत्याशी तय नहीं किया जा सका था।
मुलताई विस सीट पर कांग्रेस सरकार में पीएचई मंत्री रहे सुखदेव पांसे एक बार फिर से मुलताई सीट से मैदान में हैं। उनका सीधा मुकाबला भाजपा के चंद्रशेखर देशमुख से है। पिछले चुनाव में विधायक रहते हुए भाजपा ने चंद्रशेखर देखमुख का टिकट काट दिया था, लेकिन जीत नहीं मिल सकी थी। इस बार भाजपा ने फिर पुराने चेहरे को ही टिकट देकर जीत की रणनीति बनाई है। वहीं आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित भैंसदेही सीट पर भाजपा ने एक बार फिर पिछला चुनाव कांग्रेस के धरमू सिंह सिरसाम से 30880 वोट से हारने वाले महेंद्र सिंह चौहान को टिकट दिया है। इस सीट से भाजपा के कुछ बागियों ने भी उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इधर, कांग्रेस प्रत्याशी धरमू सिंह सिरसाम के सामने भी जयस के मैदान में उतर जाने से चुनौती बढ़ गई है। इस क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाले जयस के जिला अध्यक्ष संदीप धुर्वे मैदान में उतर गए हैं। कुल मिलाकर भाजपा की जीत की राह में बागियों तो कांग्रेस की राह में जयस बड़ा अवरोध बन सकते हैं। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित घोड़ाडोंगरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने वर्तमान विधायक ब्रह्मा भलावी का टिकट काटकर नए चेहरे के रूप में राहुल चौहान को टिकट दिया है। भाजपा ने भी पूर्व विधायक रहे स्व. सज्जन सिंह उइके की पत्नी गंगा उइके को मैदान में उतारा है। दोनों ही प्रमुख प्रतिद्वंदी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में संगठन की भूमिका यहां पर सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यहां भाजपा के सामने सभी को साधकर चलना सबसे बड़ी चुनौती है तो कांग्रेस को भी काफी संभलकर चलना होगा।
नर्मदापुरम में दो भाईयों के बीच लड़ाई
होशंगाबाद विधानसभा सीट पर दो भाईयों के बीच मुकाबला है। भाजपा ने डॉ. सीतासरन शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस ने उनके बड़े भाई गिरिजा शंकर को प्रत्याशी घोषित किया है। अब दोनों भाई मैदान में आमने-सामने हैं। इसी बीच भाजपा से बगावती तेवर दिखाकर मैदान में निर्दलीय उतरे भगवती चौरे ने मुकाबले को और रोचक कर दिया है। 2003 से अब तक जिस परिवार का होशंगाबाद विधानसभा पर होल्ड था वह भी राजनीति का शिकार होता दिख रहा है, क्योंकि भगवती चौरे भी भाजपा में पकड़ रखते थे। वे भाजपा की टिकट पर होशंगाबाद जनपद के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। यही कारण है कि भाजपा के कई असंतुष्ट भी उनसे जुड़ गए हैं। सोहागपुर विस सीट पर भाजपा के विजयपाल सिंह और कांग्रेस के पुष्पराज सिंह में कांटे की टक्कर है। भाजपा यहां से चार बार चुनाव जीत चुकी है। विजयपाल सिंह खुद तीन बार विधायक रह चुके हैं। हालांकि पिछली बार कांग्रेस से सतपाल पलिया ने कड़ी टक्कर दी थी। तब भाजपा-कांग्रेस दोनों प्रत्याशियों पर बाहरी का तमगा लगा था। इस बार कांग्रेस ने स्थानीय उम्मीदवार खड़ा कर उस कमी को भी दूर करने का प्रयास किया है। हालांकि इधर जनता में रोष है। पान, परवल और सुराही के लिए मशहूर इस इलाके में युवाओं की बेरोजगारी अब लोगों का खटक रही है। पिपरिया विस क्षेत्र में भाजपा से ठाकुरदास नागवंशी व कांग्रेस से वीरेंद्र बेलवंशी के बीच मुख्य मुकाबला है। हालांकि भाजपा से ही बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतरे नरेंद्र पठारिया से मुकाबले रोचक बनाने का प्रयास जरूर कर रहे हैं। नरेंद्र के आने से यहां जातिगत समीकरण भी बदला है। अब यहां के तीनों प्रत्याशी एक ही वर्ग से हो गए हैं। बता दें कि लगातार तीन बार से भाजपा यहां से जीतती आ रही है। सिवनी मालवा विस सीट से भाजपा के प्रेमशंकर वर्मा और कांग्रेस के अजय बलराम पटेल यहां मैदान में हैं। क्षेत्र को भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जा रहा है। पिछले चार चुनावों में भाजपा प्रत्याशी लगातार जीतते आ रहे हैं। सिवनी मालवा विस क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया। कांग्रेस ने युवा चेहरा अजय बलराम पटेल को उतारा है।
हरदा में कमल बनाम दोगने
भाजपा से कमल पटेल व कांग्रेस से रामकिशोर दोगने मैदान में हैं। इस सीट पर इस बार कुल 11 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस में ही है। दोनों दलों ने इस चुनाव में भी पुराने ही चेहरों को मौका दिया है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव की ही तरह हरदा सीट पर भाजपा से प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल और कांग्रेस के रामकिशोर दोगने में सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। टिमरनी विस सीट फिलहाल भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों के लिए आसान नजर नहीं आ रही है। टिमरनी विधानसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस ने पुराने चेहरों को ही मैदान में उतारा है। तीसरी बार संजय शाह भाजपा की टिकट पर मैदान में हैं। वहीं दूसरी बार कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे अभिजीत शाह चाचा संजय शाह से मुकाबला करेंगे। इधर, जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन जयस से समर्थित रमेश मर्सकोले ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दोनों दलों का चुनावी समीकरण बिगाड़ दिया है। वे संजय शाह और अभिजीत शाह दोनों के सामने चुनौती बने हुए हैं।

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