सरसों का रकबा घटा तेल की कीमतें बढ़ेंगी

सरसों

डीएपी नहीं मिलने से बुवाई बुरी तरह से हो रही प्रभावित

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में इस बार अच्छी बारिश के बावजूद डीएपी खाद की कमी से समय पर किसानों की बुवाई नहीं हो पा रही है। प्रदेश में रबी फसलों की बोनी 142 लाख हेक्टेयर में होती है। इसमें सरसों 13 लाख हेक्टेयर एवं चने की बुवाई 21 लाख हेक्टेयर में की जाती है जो अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में शुरू होती है इसमें आधार खाद के रूप में डीएपी का प्रयोग किया जाता है। जिससे उसकी मांग तेजी से बढ़ती है। रबी में लगभग 7 लाख टन डीएपी की मांग होती है, परन्तु प्रदेश में डीएपी की सप्लाई मांग के विरुद्ध कम हुई है। इसके चलते किसानों को एक बार फिर खाद की कमी से खासकर सरसों की बुवाई से वंचित होना पड़ा है।
अकेले भिंड जिले में डीएपी नहीं मिलने के कारण सरसों की बोवनी का रकबा पिछली बार से 25 हजार हेक्टेयर घट गई है। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी सरसों की बुवाई कम हुई है। इससे तेल की कीमतों पर भी असर पड़ेगा।  डीडीए भिंड रामसुजान शर्मा का कहना है कि जिले में सरसों का कम होने के कई कारण है। पिछले साल की तुलना में रकबा थोड़ा घटा है, लेकिन बोवनी का लक्ष्य 20 प्रतिशत ही बचा है। डीएपी की जगह एनपीके और एएसपी खाद अच्छे परिणाम देता है, जिसके लिए किसानों को समझाइश दी जा रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश में ग्वालियर-चंबल अंचल में सरसों की सबसे अधिक खेती की जाती है। रबी सीजन की महत्वपूर्ण फसल सरसों का रकबा इस बार भिंड जिले में लक्ष्य से कम हुआ है। पिछले साल 2 लाख 17 हजार हेक्टेयर रकबा मौजूदा समय में घट कर 1 लाख 90 हजार हेक्टेयर रह गया है। सरसों की पैदावार में 27 हजार हेक्टेयर की इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण जिले में डीएपी की आपूर्ति में कमी होना रहा है। हालांकि वर्तमान में अधिकारियों द्वारा जिले में पर्याप्त डीएपी स्टॉक होने की बात कही जा रही है। बता दें कि खाद की कम सप्लाई होने के कारण किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
किसानों का डीएपी पर ज्यादा भरोसा
गौरतलब है कि परंपरागत सरसों का उत्पादन करने वाले किसानों का डीएपी पर ज्यादा भरोसा है, जबकि कृषि विभाग द्वारा किसानों को एनपीके को सरसों फसल के लिए बेहतर बताया जा रहा है। राजमाता विजय राजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक राजपाल सिंह ने बताया कि एनपीके खाद फसल के संपूर्ण विकास में मदद करता है। इसके उपयोग से सरसों पौधे की जड़ें मजबूत होने से जल्दी बढ़ता है। एनपीके 2020 और 0013 ब्रांड में पर्याप्त नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम होता है जो सरसों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके अलावा सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) के उपयोग से अच्छे परिणाम आ रहे हैं। सहकारी सोसायटी के अलावा विपणन संस्थाओं पर किसानों को डिमांड के अनुरूप खाद नहीं मिलने की शिकायतें सामने आ रही हैं। खाद वितरण केंद्र पर पहुंचे किसान को सबसे पहले लंबी लाइन में लग कर टोकन लेना पड़ रहा है। जिसके बाद आधार कार्ड दिखाने पर ही उसे खाद की पर्ची दी जा रही है। लेकिन इसके बाद भी प्रशासन द्वारा नियमों का हवाला देते हुए एक आधार कार्ड पर सिर्फ दस बोरी खाद दी जा रही है। गोहद के किसान रामकुमार शर्मा ने बताया कि उन्हें 20 बीघा में सरसों के लिए 15 बोरी खाद लेनी थी, लेकिन कृषि मंडी में उन्हें टोकन देने के बाद केवल 10 बोरी दी गई।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह के जिले में खाद की किल्लत
केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह के गृह जिले सीहारे में भी खाद विक्रय केंद्रों पर स्थिति इतनी विकट और जटिल हो गई है कि अन्नदाताओं को यहां पर धूप में खड़ा होना पड़ रहा है। स्वयं कतार में खड़े नहीं हो पा रहे हैं, तो आधार कार्ड की फोटो कापी कतार में लगाकर अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं। ये हालात रोजाना देखने को मिल रहे हैं।
किसान अब रबी सीजन की बोवनी की तैयारी में जुड़ गए हैं।इसके लिए उन्हें खाद की आवश्यकता पड़ रही है और जब किसान कृषि उपज मंडी कमेटी में खाद्य विक्रय केंद्र पर पर आ रहे हैं तो केंद्रों पर देखा जा रहा है कि घंटा खरीदी केंद्र पर खाद नहीं मिल रही है। इसके चलते किसान खाद लेने के लिए खुद कतार में खड़े न होकर आधार कार्ड और बही की फोटो कॉपी लाइन में लगा रहे हैं। किसानों का कहना है उनके पास परेशानी उठाने के अलावा कोई चारा नहीं है। किसानों की परेशानी किसी को नहीं दिख रही है। सोयाबीन के खराब होने से खून के आंसू पी रहे किसानों को अभी तक सरकारी मदद का पता नहीं है। वहीं अब अगली फसल के लिए खाद भी नहीं मिल रही है। इस मामले में एसडीएम तन्मय वर्मा ने का कहना है कि खाद लेने के लिए किसानों की लंबी कतार लगने की जानकारी मिल रही है, मामले में आवश्यक कार्रवाई की जा रही है।
मांग से कम खाद मिली
सितंबर और अक्टूबर महीने में विपणन संघ द्वारा भेजी गई डिमांड के मुकाबले रैक प्वाइंट से आपूर्ति कम हुई। इसके साथ ही उपलब्ध डीएपी, यूरिया के वितरण व्यवस्था सही नहीं होने से किसानों को लंबी कतारों में खाद के लिए इंतजार करना पड़ा। इस कारण से जिले में सरसों का रकबा कम हुआ है। मालूम हो कि भिंड जिले में खाद की आपूर्ति मुरैना और डबरा स्थित रैक प्वाइंट से आती है। जिसके लिए जिला विपणन संघ द्वारा कृषि विभाग द्वारा दिए गए फसलोत्पादन रकबा के आधार पर डिमांड भेजी जाती है। रबी सीजन के लिए सितंबर-अक्टूबर में जिले के लिए 15 हजार मैट्रिक टन यूरिया, 15 हजार मैट्रिक टन डीएपी के साथ ही एएसपी और एनपीके की सप्लाई के की डिमांड भेजी गई थी। बीते दिनों मुरैना रैक प्वाइंट से भिंड को केवल 200 मैट्रिक टन खाद ही मिला, जबकि मुरैना जिले को 800 मैट्रिक टन खाद दिया गया। किसानों द्वारा रबी सीजन के लिए सबसे अधिक डिमांड डीएपी की रहीं, लेकिन इसकी तुलना में सप्लाई कम होने से डीएपी का संकट बना रहा।

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