22 सीटों पर मुस्लिम मतदाता कर सकते हैं उलटफेर

ऐसी सीटों पर भाजपा को मिलता रहा है फायदा

 भाजपा

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा और कांग्रेस की द्विदलीय राजनीति में ‘मुस्लिम वोट का कारक’ बिहार-यूपी जैसा महत्व नहीं रखता है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर होने की स्थिति में इस अल्पसंख्यक समुदाय के वोट अहम साबित हो सकते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि प्रदेश में मुस्लिम वोट कभी भी पार्टियों के लिए चुनावी टारगेट नहीं रहा है। जबकि प्रदेश की 49 विधानसभा सीटों पर 10 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम हैं। हालांकि इसकी अपनी वजह भी है। माना जाता है की मप्र में जब मतदाता भाजपा से नाराज होते हैं, तो वे कांग्रेस सरकार को चुनते हैं। इसी प्रकार कांग्रेस से मतदाताओं के नाराज होने पर भाजपा की सरकार बनती है। लेकिन पिछले दो दशक से मप्र में मुस्लिम मतदाताओं वाली लगभग सभी सीटों पर भाजपा फायदे में रही है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, मप्र में मुस्लिम आबादी सात फीसदी है, जो अब संभवत: 9-10 फीसदी होनी चाहिए। मुस्लिम वोट 49 विधानसभा सीटों पर अहम हैं लेकिन 22 क्षेत्रों में वे निर्णायक कारक हैं। इन 49 सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है। इसका मतलब है कि कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीट में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य क्षेत्रों की सीट शामिल हैं।
मप्र में कई सीटों पर प्रभावी भूमिका में होने के बाद भी मुस्लिम मतदाता अभी तक निर्णायक भूमिका में कभी नहीं रहा है। यही कारण है कि भोपाल उत्तर विधानसभा सीट को छोडक़र किसी और क्षेत्र ने लगातार मुस्लिम विधायक नहीं दिया है। जबकि जातिगत गणित का चौंकाने वाला तथ्य यह है कि, प्रदेश की 49 सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रभावी तो हैं, लेकिन 2018 में भाजपा इसमें से 30 और कांग्रेस 18 सीटें जीत पाई थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। मुस्लिम विधायक सिर्फ दो जीत पाए थे, वो भी कांग्रेस से थे। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मप्र में मुस्लिम आबादी 7 फीसदी है जो अब 9 फीसदी हो सकती है। करीब 21 सीटों में वह निर्णायक भूमिका निभाता है।
फायदा भाजपा को ज्यादा
 मप्र की 49 सीटों पर 10 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम होने के बाद भी ज्यादा फायदा भाजपा को होता है। हालांकि कांग्रेस से संबंध रखने वाली मप्र मुस्लिम विकास परिषद के समन्वयक मोहम्मद माहिर ने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का मत प्रतिशत कम से कम तीन से चार प्रतिशत बढ़ा, जिसके कारण वह भाजपा से थोड़ा आगे निकल गई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमलनाथ ने 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो पार्टी सरकार बना सकती है। माहिर ने कहा कि कमलनाथ की अपील पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस को मिले और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी की झोली में 10-12 सीट और जुड़ गईं, जिन्हें पार्टी 2008 और 2013 में जीतने में विफल रही थी। पूर्ववर्ती चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत (41.02 प्रतिशत) कांग्रेस से (40.89 प्रतिशत) से थोड़ा अधिक रहा था, लेकिन कांग्रेस 230 सीट में 114 सीट पर जीत हासिल कर सबसे अधिक सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा को 109 सीट मिली थीं। इसके बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ विधायकों के दल बदल लेने के कारण 15 महीने बाद यह सरकार गिर गई थी।
61 साल पहले जीते थे 7 मुस्लिम
मप्र में आज से 61 साल पहले 7 मुस्लिम प्रत्याशी जीते थे। गौरतलब है कि 1962 में सर्वाधिक 7 मुस्लिम विधायक विधानसभा में पहुंचे। इनमें अमरपाटन से गुलशेर अहमद, बसना से अब्दुल हमीद दानी, सागर से हाजी मोहम्मद शफी शेख सुभारती, सीहोर से मौलाना इनमयतुल्लाह खान तर्जी मशरिकी, उज्जैन उत्तर से अब्दुल गयूर कुरैशी व बुरहानपुर से अब्दुल कादिर सिद्दीकी और भोपाल से शाकिर अली खान शामिल हैं। 2018 में दो विधायक मुस्लिम विधानसभा पहुंचे। दो दशकों के अंतराल के बाद 2018 में मप्र विस में मुस्लिम वर्ग के दो विधायक आरिफ अकील और आरिफ मसूद जीते। 2003 में हमीद काजी बुरहानपुर से विधायक चुने गए थे। भोपाल उत्तर सीट की बात करें तो 1993 को छोडक़र पिछले चार दशकों में कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम विधायकों का चुनाव करती रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता 71 वर्षीय आरिफ अकील 1993 को छोडक़र 1990 से भोपाल उत्तर सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हालांकि इस बार इस सीट से उनके पुत्र मैदान में हैं।
इन 21 सीटों पर है मुस्लिम वोटर का प्रभाव
इंदौर-1 19.4 प्रतिशत
इंदौर-3 30.5 प्रतिशत
उज्जैन उत्तर 17 प्रतिशत
जबलपुर उत्तर 14 प्रतिशत
खंडवा 21 प्रतिशत
रतलाम शहर 28 प्रतिशत
जावरा 19 प्रतिशत
ग्वालियर दक्षिण 18.8 प्रतिशत
शाजापुर 15 प्रतिशत
भोपाल मध्य 46 प्रतिशत
भोपाल उत्तर 36 प्रतिशत
भोपाल नरेला 21 प्रतिशत
देपालपुर 19 प्रतिशत
सिरोंज 19.6 प्रतिशत
मंदसौर 25 प्रतिशत
इंदौर-5 20.8 प्रतिशत
बुरहानपुर 23 प्रतिशत
देवास 19 प्रतिशत
धार 21 प्रतिशत
नरसिंहगढ़ 16.56 प्रतिशत
सांवेर 16.9 प्रतिशत

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