- सांसद और विधायकों ने 10 ग्राम पंचायतों को नगर परिषद बनाने का भेजा प्रस्ताव
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के 20 हजार और उससे अधिक आबादी वाली ग्राम पंचायतों को नगर परिषद बनाने का प्रावधान है। इसके तहत 10 ग्राम पंचायतों को नगर परिषद का दर्जा दिए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। सरकार के पास इस संबंध के प्रस्ताव सांसद और विधायकों द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं। इन प्रस्तावों पर शासन स्तर पर विचार किया जा रहा है। जिन निकायों का नया गठन होता है, सरकार चार- पांच वर्षों तक उन्हें चुंगी क्षतिपूर्ति तथा अन्य तरह के अनुदान और वित्तीय सहायता देती है, लेकिन बाद में इन्हें अपने आय का जरिया खुद बढ़ाना पड़ता है। मालूम हो कि विधानसभा चुनाव से पहले 9 नई नगर परिषद बनीं थीं। नगर परिषद बनाने से पहले बड़े ग्राम पंचायतों का सीमांकन होगा। इसमें परीक्षण किया जाएगा कि संबंधित ग्राम पंचायत में आय के संसाधन क्या हैं? इसके अलावा इनके पास भूमि, भवन सहित अन्य अधोसंरचना क्या है। पंचायत भवन में कम से कम 50 लोगों को बैठने की जगह होनी चाहिए। इसके अलावा प्रति माह एक लाख रुपए इसकी आय होना जरूरी माना जाता है। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले दस बड़ी ग्राम पंचायतों को नगरीय निकाय बनाने की योजना है।
राजनीतिक समीकरण साधने की कवायद
नगर परिषद बनाने के पीछे राजनीतिक मकसद होता है। नगर परिषद में चुनाव दलगत होते हैं, जबकि पंचायतों में चुनाव बिना दल के होता है। दलगत होने से नेताओं का दबदबा छोटे-छोटे कस्बों तक बढ़ जाता है। इसके अलावा वे अपने समर्थकों को इसी बहाने उपकृत कर पार्टी से पार्षद का चुनाव लड़ा देते हैं। नगर परिषद बनाने के लिए ग्राम पंचायत में कम से कम 20 हजार की आबादी होना चाहिए। जिससे पांच हजार से आस पास हाउस होल्डरों से टैक्स वसूली, हाट-बाजार साप्ताहिक और डेली टैक्स वसूला जा सके। इसके अलावा पंचायत के पास पांच से दस एकड़ जमीन होना चाहिए, जिससे कि उसमें ऑफिस के निर्माण के साथ उसके माध्यम से कमाई की जा सके। वहीं नगर पालिका के लिए 50 हजार से तीन लाख तक और नगर निगम के लिए तीन लाख से अधिक आबादी होना जरूरी है। विस चुनाव से पहले चितरंगी, दिनारा, उपरियापान, बमोरी, बड़ोदिया, बटियागढ़, दलौदा, जौरा को निकाय बनाया गया था। अब जो प्रस्ताव विचाराधीन है उनमें सिंहपुर, बोलिया, अवंतीपुर, नाहरगढ़, गुलाना, सेमरिया, म्यार, बसई, बढ़ोदिया नानगिर, बटियागढ़, वहीं भिंड को नगरपालिका बनाने का प्रस्ताव है। पांच वर्ष के अंदर डेढ़ दर्जन से अधिक निकायों का गठन किया गया है लेकिन, इनकी वित्तीय स्थितियां ठीक नहीं है। इनका काम केन्द्र और राज्य के तमाम तरह की योजनाओं और अनुदान से चल रहा है। इन निकायों ने अपने आय का जरिया भी बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा पाया है। जिन निकायों में पर्यटन स्थल हैं, या जहां बड़े बाजार हाट लगते हैं, वहां की वित्तीय स्थिति बेहतर है।