आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगरीय निकाय

अधिकारियों की उदासीनता के चलते बिगड़े हालात

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के नगर निगमों और निकायों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। स्थिति यह है कि कर्ज लेकर शहरी विकास के कार्य किए जा रहे हैं। इसकी वजह है टैक्स वसूली में लापरवाही। सरकार बार-बार निर्देशित कर रही है कि नगरीय निकाय टैक्स की लगातार वसूली करते रहें, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के चलते टैक्स की वसूली नहीं हो पा रही है। इस कारण नगरीय निकाय आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। आलम यह है कि कई निकायों में तो वेतन के लाले पड़ गए हैं।
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि टैक्स वसूली बढ़ाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष की अपेक्षा टैक्स वसूली में निकाय आगे रहे हैं। टैक्स वसूली के लिए शिविर लगाए गए और लोगों को टैक्स भरने के लिए जागरूक किया गया है। यह कार्य निरंतर जारी है। लेकिन दावों के विपरीत प्रदेश के कई नगर निगम, नगर पालिका और परिषदों की माली हालत इतनी बिगड़ गई है कि वे अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में भी नहीं हैं।
वसूली में पिछड़े नगर निगम
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के बार-बार के निर्देश के बाद भी नगर निगमों सहित सभी निकाय टैक्स वसूली में पिछड़ रहे हैं। नगर निगम भोपाल की बात की जाए तो यहां भी राजस्व वसूली लक्ष्य के अनुसार नहीं हो पाई। 460 करोड़ राजस्व वसूली का लक्ष्य रखा गया है लेकिन 371 करोड़ रुपये की वसूली ही हो पाई है। दरअसल, भोपाल के कई क्षेत्र ऐसे है, जहां से निगम संपत्ति कर और जलकर की वसूली नहीं कर पाता है। इंदौर नगर निगम की आर्थिक स्थिति भी किसी से छुपी नहीं है। फर्जी बिलों के जरिये भले ही करोड़ों का भुगतान हो गया, लेकिन असली ठेकेदार अब भी भुगतान के लिए भटक रहे हैं। नगर निगम ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में 600 करोड़ रुपये संपत्ति कर के रूप में वसूली का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसमें से अब तक सिर्फ 25 करोड़ की वसूली ही हो सकी है। दरअसल ई-पोर्टल की गड़बड़ी का खामियाजा इंदौर निगम को उठाना पड़ रहा है। पोर्टल ने काम करना तो शुरू कर दिया लेकिन अब भी यह दो वर्ष से ज्यादा पुराना डेटा नहीं दिखा रहा है। यही वजह है कि निगम दो वर्ष से ज्यादा पुरानी वसूली नहीं कर पा रहा है। ग्वालियर नगर निगम के राजस्व वसूली अभियान की बात की जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में राजस्व वसूली में कमी आई है। निगम 94 करोड़ संपत्ति कर और 24 करोड़ जलकर ही वसूल पाया, जो पिछले वर्ष की तुलना में ही सवा चार करोड़ कम है। इस बार 242 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य रखा गया था, जबकि केंद्र सरकार के 15वें वित्त आयोग से अनुदान प्राप्त करने के लिए 112 करोड़ रुपये की वसूली की जानी थी। ग्वालियर को लगातार संपत्ति कर वसूली बढ़ाने के चलते 50 करोड़ रुपये का अनुदान दिया जा रहा है, लेकिन इस बार निगम का अमला इस लक्ष्य से लगभग 18 करोड़ रुपये पीछे है। जबलपुर नगर निगम के हालात और भी बिगड़ रहे हैं। कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े हैं। राजस्व वसूली में पिछडऩे के कारण निगम को 84 करोड़ रुपये का अनुदान कम मिला। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि आयुक्त ने सरकार को पत्र लिखकर चेताया है कि ठेकेदारों को भुगतान न कर पाने के कारण वे काम बंद कर सकते हैं। आउटसोर्स कर्मचारी भी हड़ताल पर जा सकते हैं। यही हाल अन्य निकायों का भी है।
कर्ज लेकर चला रहे काम
मुख्यमंत्री शहरी अधोसंरचना विकास योजना के क्रियान्वयन के लिए नगर निगमों ने करोड़ों रुपये का कर्ज लिया हुआ है। प्रदेश के नगर निगमों पर 320 करोड़ 18 लाख रुपये का कर्ज है। मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के कार्यों को पूरा करने के लिए एमपीयूडीसी (मप्र अर्बन डेवलपमेंट कंपनी) के माध्यम से इंडियन बैंक और केनरा बैंक से 15 वर्ष के लिए कर्ज लिया गया है। कर्ज का मूलधन और ब्याज की राशि का 75 प्रतिशत भुगतान मध्य प्रदेश शासन और 25 प्रतिशत राशि का भुगतान नगर निगमों द्वारा किया जाएगा। अधिकारियों की उदासीनता के चलते बिगड़ रहा बजट प्रदेश में 16 नगर निगम सहित 413 नगरीय निकाय हैं। निकायों का वित्तीय बजट टैक्स कलेक्शन पर निर्भर है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के चलते निकायों में पर्याप्त टैक्स कलेक्शन नहीं हो पाता है। सालाना टैक्स कलेक्शन 40 प्रतिशत से ऊपर नहीं पहुंच पाता है। इससे निकायों के विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं। टैक्स कलेक्शन में कमी का एक बड़ा कारण अवैध निर्माण कार्य भी हैं।
राजस्व वसूली का प्लान तैयार करने का निर्देश
निकायों द्वारा राजस्व की वसूली न कर पाना और आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों के वेतन पर खर्च ने निकायों को संकट में ला दिया है। कम राजस्व वसूली के कारण सरकार ने भी निकायों को दिए जाने वाले चुंगी कर में कटौती कर दी है। जिसके चलते हालात और भी बिगड़ गए हैं। इन हालातों का देखकर राज्य सरकार ने सभी निकायों को निर्देश दिया है कि 2024-25 के लिए राजस्व वसूली का प्लान तैयार करें और संबंधित कलेक्टरों से कहा गया है कि वे इसकी नियमित निगरानी करें। हर माह इसकी समीक्षा की जाए। निकायों में सबसे बड़ी समस्या अनियमित नियुक्ति की है। निकाय के चुने हुए जनप्रतिनिधि सबसे पहले अपने चहेतों की निकायों में अनियोजित नियुक्तियां करते हैं। इससे आर्थिक बोझ बढ़ता है और निकायों की माली हालत प्रभावित होती है। एक बार नियुक्ति मिलने के बाद इन कर्मियों को हटाना मुश्किल हो जाता है। प्रत्येक वर्ष बढ़ती नियुक्तियों का बोझ निकायों के लिए एक बड़ी मुसीबत है। इससे निपटने के लिए फिलहाल सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है।

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