- सरकार ने कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए लिया लोन
- गौरव चौहान
मध्यप्रदेश सरकार भले ही समय -समय पर कर्ज ले रही है, और सरकार पर करीब चार लाख करोड़ का कर्ज भले ही हो गया हो , लेकिन यह कर्ज रोज के खर्च की जगह प्रदेश के अधोसंरचना विकास के लिए ही लिया जा रहा है। इसकी वजह से मप्र उन आधा दर्जन राज्यों में शुमार हो गया है, जिनके द्वारा बीते एक दशक में रोज के खर्च के लिए कोई कर्ज नहीं लिया गया है। कर्ज के आंकड़ों और उनके कारणों को देखने से पता चलता है कि देश के कई राज्य ऐसे हैं , जिनकी आर्थिक हालत बेहद गंभीर बनी हुई है। इसकी वजह से ऐसे राज्यों को अपने रोजाना के खर्च के लिए तक कर्ज लेना पड़ा है। इधर, प्रदेश के वित्त महकमे ने नई सरकार के घोषणा पत्रों के हिसाब से रणनीति बनाना शुरु कर दी है। यदि भाजपा की सरकार आती है तो किन योजनाओं पर किस तरह कार्य करना है और यदि कांग्रेस की सरकार आती है तो, किन योजनाओं पर कैसे कदम उठाए जाने हैं। दरअसल हर साल राज्य सरकारें अपने साल भर के खर्च के लिए बजट तैयार कर उसे स्वीकृति प्रदान करती हैं। इसके बाद यदि राज्य सरकारों द्वारा बीच में नई-नई योजनाओं की घोषणा की जाती है तो, उसके लिए बजट में अलग से प्रावधान करना होता है और अनुपूरक बजट में इसके लिए राशि का प्रबंध करना पड़ता है। हर राज्य में चुनावी साल में सत्तारूढ़ दलों द्वारा घोषणाओं का अंबार सा लगा दिया जाता है और उसे घोषणा पत्र में भी शामिल कर लिया जाता है। इस मामले में विपक्षी दल भी पीछे नहीं रहते हैं। इस दौरान यह भी नहीं ध्यान दिया जाता है कि घोषणाओं को पूरा करने के लिए पैसे की व्यवस्था कहां से और कैसे की जाएगी। यही वजह है कि जब भी प्रदेश में नई सरकार का गठन होता है, तो उसे शुरुआती कुछ माह तक भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा ने अपने -अपने घोषणा पत्रों में बहुत अधिक लोकलुभावन योजनाओं का उल्लेख किया है। अगर इन्हें पूरी तरह से लागू किया जाता है तो, पहले से ही खाली खजाने से परेशान सरकार के सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है। यही वजह है कि सरकार बनने से पहले ही वित्त विभाग के अफसरों ने भाजपा व कांग्रेस के घोषणा पत्रों के आधार पर काम करना शुरू कर दिया है। विभाग इस बात का आंकलन कर रहा है कि किस पार्टी के घोषणा पत्र के क्रियान्वयन पर कितना खर्च आएगा। यह बात अलग है कि घोषणा पत्र में उल्लेखित योजनाओं में से किसे कब से लागू करना है, इसका फैसला नए मुख्यमंत्री द्वारा ही किया जाएगा। जिन घोषणाओं को तत्काल यानी नए साल से ही लागू किया जाना है , उन पर आने वाले खर्च के लिए राशि जुटाने के लिए किन योजनाओं को रोकना है और किनको जारी रखना है, इस पर भी विभाग द्वारा मंथन किया जा रहा है। सरकारी आंकड़ों को देखें तो मप्र के अलावा जिन राज्यों ने कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कर्ज लिया है, उसमें गुजरात, गोवा, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य शामिल है।
नए वित्त वर्ष के लिए करनी होगी कवायद
नए वित्तीय वर्ष में नई सरकार के घोषणा पत्र के अनुसार बजट का प्रविधान भी किया जाना है। इस प्रविधान के लिए पैसे का इंतजाम कैसे होगा इसका भी उल्लेख किया जाता है, जिसके लिए ही अभी से माथापच्ची शुरु कर दी गई है। अहम बात यह है कि नए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में जो भी दल प्रदेश की सत्ता पर काबिज होगा, उसे अपनी घोषणाओं पर जल्द से जल्द अमल करना होगा, जिससे की उसकी विश्वसनीयता बढ़ सके। ऐसे में वित्त विभाग के सामने राशि जुटाने की बड़ी चुनौती सामने रहने वाली है। इसकी वजह है प्रदेश सरकार की कर्ज लेने की एक सीमा है। तय सीमा से अधिक कर्ज नहीं लिया जा सकता है।
विभागों को लौटानी होगी ब्याज की राशि
प्रदेश के विभाग अब खर्च न कर पाने वाली राशि पर मिलने वाले ब्याज की राशि को अपने पास नहीं रख सकेंगे , बल्कि उसे सरकार के खजाने को लौटानी होगी। इसके लिए सरकार ने सभी विभागों को निर्देश जारी कर दिए हैं। इन निर्देशों में कहा गया है कि सरकार द्वारा आवंटित किए गए बजट को अगर समय पर चार्ज नहीं किया गया है और वह विभागों खातों में रखा गया है। ऐसे में उस पर मिलने वाले बरूाज को सरकार के खाते में अनिवार्य रुप से जमा कराया जाए। अभी तक यह राशि सभी निर्माण विभाग किसी न किसी खर्च में दिखाकर उसका आहरण करा लेते थे, इससे बजट में कई तरह की विसंगति पैदा हो जाती थीं। अब खर्च नहीं हुई राशि का ब्याज शासन के खजाने में जमा नहीं कराने वाले विभागों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए वित्त विभाग द्वारा अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों और सचिवों को पत्र जारी कर कहा है कि राज्य सरकार के संस्थानों के बैंक खातों एवं राज्य सरकार की ओर से निर्माण कार्यों में संलग्न क्रियान्वयन एजेंसी के पास जमा राशि पर अर्जित ब्याज को राज्य के संचित निधि में जमा करें। वित्त विभाग ने कहा कि प्राप्त अर्जित राशि को प्रति तिमाही के उपरांत आगामी माह की 5 तारीख को या इससे पूर्व राज्य की संचित निधि में सायबर कोषालय के माध्यम से जमा कराना सुनिश्चित किया जाए। जमा राशि के संबंध में माह की 15 तारीख तक प्रशासकीय विभाग के जरिए निर्धारित प्रपत्र में वित्त विभाग को उपलब्ध कराया जाए। वित्त विभाग ने राशि जमा कराने के लिए राज्य संचित निधि का शीर्ष (कोड) भी दिया है। विभाग ने कहा कि राज्य में संचालित केंद्र प्रवर्तित योजनाओं, केंद्र क्षेत्रीय योजनाओं के लिए खोले गए एसएनए, सीएनए बैंक खातों में अर्जित ब्याज को केंद्र एवं राज्य की संचित निधि में समानुपातिक रूप से जमा कराए जाने के लिए समय-समय पर भारत सरकार से जारी निर्देशों का पालन भी किया जाए।