प्रदेश में 22 जिलों के जंगलों में होती है सर्वाधिक आगजनी

सर्वाधिक आगजनी
  • केन्द्र से मांगी 80 करोड़ रुपए की सहायता राशि…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य है ,जहां पर जंगलों में सर्वाधिक घटनाओं वाले जिलों की संख्या 22 है। इसके बाद ही अन्य राज्यों का नंबर आता है। यह बात अलग है कि कई बार इस मामले में उड़ीसा जरुर मप्र को पीछे छोड़ देता है। बीते समय में केन्द्र सरकार ने जंगल में आग की घटनाओं का अध्ययन कराया था, जिसे आपदा की श्रेणी में शामिल किया है।
इसके बाद इसमें देश के अलग -अलग राज्यों के डेढ़ सौ जिलों की सूची तैयार की गई है, जहां पर इस तरह की सर्वाधिक घटनाएं होती हैं। प्रदेश में बढ़ती आगजनी की घटनाओं के रोकथाम के लिए अब प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार से 80 करोड़ रुपये की सहायता की मांग की है। अध्ययन में पाया गया है कि इसकी वजह है, प्राकृतिक और मानवजनित दोनों । डेढ़ सौ जिलों में प्रदेश के 22 जिलों सहित पूरे देश के वन क्षेत्रों में आग की संवेदनशीलता के आधार पर जो शीर्ष 150 जिले चिह्नित किए हैं, उनमें महाराष्ट्र के 12, छत्तीसगढ़ के 12, उत्तराखंड के छह, उत्तर प्रदेश के दो जिले सोनभद्र और पीलीभीत, गुजरात के तीन, झारखंड के पांच, जम्मू कश्मीर के दो, पंजाब और बिहार के एक-एक, उड़ीसा के 17, असम के चार, नगालैंड के 11, हिमाचल प्रदेश के तीन, अरुणाचल प्रदेश के चार, मिजोरम के सात जिलों सहित मणिपुर, मेघालय, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश के जिले भी शामिल है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में 94,689 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। इसमें 61,886 वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन, 31,098 वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन और 1705 वर्ग किलोमीटर अन्य वन क्षेत्र है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जंगलों में आग लगने की घटनाओं के मामले में ओडिशा के बाद मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर है। हर साल आगजनी की घटनाओं के कारण जंगल में चारे का संकट खड़ा हो जाता है। इससे पेड़-पौधों के साथ जीव-जंतुओं को भी नुकसान होता है। वन्य प्राणियों को भोजन की तलाश में दूर तक प्रवास करना पड़ता है।
आस्था के नाम पर आगजनी
राष्ट्रीय आपदा मिशन के अनुसार 95 प्रतिशत घटनाएं मानवजनित होती है। ट्राइबल बेल्ट में अब भी आस्था के नाम पर मन्नत पूरी होने पर जंगलों में आग लगा दी जाती है। इससे भी हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाता है। विदिशा, दमोह, डिंडोरी और देवास में सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के मुताबिक एक नवंबर 2023 से एक जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1,006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी है। पिछले साल इसी अवधि में आग की लगभग 556 घटनाएं हुईं थीं। एफएसआई के अनुसार पिछले दो महीनों में हिमाचल प्रदेश के जंगलों में आग लगने की सबसे अधिक 1,199 घटनाएं हुई। इसके बाद उत्तराखंड में 1,006, मध्य प्रदेश में 577, कर्नाटक में 434 और महाराष्ट्र 445 आग की घटनाएं हुईं।
इन वजहों से भी लगाई जाती है आग
अध्ययन में यह बात सामने आई कि आदिवासी समुदाय बीज, शहद, और अन्य गैर- लकड़ी वन उत्पाद संग्रह के लिए जंगल के फर्श को साफ करने, पत्तियों के नए प्रवाह को बढ़ावा देने या मधुमक्खियों को भगाने के लिए व्यापक रूप से जंगल में आग लगाते हैं। इसके अलावा खेती के लिए भी सपाट मैदान बनाने जंगल में आग लगाई जाती है।
इस तरह से पाया जाएगा काबू
सामुदायिक सहभागिता, साझा जिम्मेदारी और जवाबदेही, उन्नत वन अग्नि विज्ञान और प्रौद्योगिकियों का समावेश, क्षमता विकास और निगरानी के माध्यम से आग पर नियंत्रण पाया जाएगा। वनों के समीप निवासरत वनवासी और अन्य ग्रामीणों को जागरूक करने का कार्य किया जाएगा। ग्रामीणों द्वारा खेतों में आग लगाई जाती है, तो वन अमला इसकी निगरानी करेगा। आग लगने वाले संभावित वन क्षेत्रों में वन अमला तैनात किया जाएगा।

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