- भाजपा, कांग्रेस, बसपा के दिग्गजों ने मुरैना से साधे सारे समीकरण
- विनोद उपाध्याय
ग्वालियर कभी ग्वालियर-चंबल अंचल की चुनावी राजनीति का मुख्य केंद्र था। लेकिन अब यह ट्रेंड बदल रहा है। लोकसभा के इस चुनाव में मुरैना अंचल राजनीति का केंद्र बन गया है। भाजपा, कांग्रेस और बसपा के दिग्गज नेताओं ने मुरैना से अंचल की चारों सीटों के मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। इस कारण 18वीं लोकसभा चुनाव में मुरैना अंचल की सबसे हॉट सीट बन गई है। ग्वालियर-चंबल अंचल के अंदर लोकसभा की चार सीटें ग्वालियर, भिंड, मुरैना और गुना आती हैं। संभागीय मुख्यालय भी यहां ग्वालियर में स्थापित रहने से प्रशासनिक नियंत्रण भी यहां से चलता रहा है। वहीं सभी दलों की अंचल की राजनीति भी यहीं से चलती रही है। चुनावी घमासान और राजनीति के बदलते ट्रेंड से अब बड़े नेताओं को अंचल के मतदाताओं को साधने कई स्थानों पर सभाएं करना पड़ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अंचल की राजनीति का बड़ा केंद्र मुरैना रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां सभा करने आए थे। वहीं श्योपुर में गृह मंत्री अमित शाह और मुरैना जिले में ही बसपा सुप्रीमो मायावती, आप के प्रमुख अरविंद केजरीवाल तक आए थे। इस बार लोकसभा चुनाव में भी चुनावी राजनीति का यहां घमासान हो रहा है। भाजपा, कांग्रेस व बसपा ने मुरैना में अपने-अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार अपनी-अपनी रणनीति भी बनाई है। अंचल की मुरैना सीट इस चुनाव में हाट सीट में तब्दील हो गई है। गौरतलब है कि मुरैना लोकसभा सीट को लेकर सियासी गलियारे में खूब चर्चा है। प्रत्याशी के तौर पर इस सीट पर कोई नामचीन चेहरा नहीं है, लेकिन यह सबसे हॉट सीट बन गई है। ऐसा इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी मुरैना में प्रचार के लिए आ चुकी है। शायद यह मध्यप्रदेश का पहला ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां पर तीनों प्रमुख दलों के दिग्गज नेता जनता से अपने-अपने दल के प्रत्याशियों को जिताने की गुहार लगा चुके हैं। इस चुनाव में इससे पहले तीनों प्रमुख दलों के नेताओं ने किसी अन्य लोकसभा क्षेत्र में जाकर वोट नहीं मांगा है। मुरैना में मतदान मध्यप्रदेश के तीसरे चरण में सात मई को होगा। सात मई को राज्य के जिन नौ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होना है, उनमें मुरैना का मुकाबला सबसे दिलचस्प हो गया है।
विधानसभा में कांग्रेस मजबूत
प्रदेश में भाजपा की बंपर जीत के बाद भी मुरैना ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की थी। कांग्रेस ने विधानसभा की आठ में से पांच सीटें जीती हैं, जबकि भाजपा को सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी। लोकसभा चुनाव में बसपा भले मुकाबले में बने रहने की कोशिश कर रही हो, लेकिन विधानसभा में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों में श्योपुर, विजयपुर, जौरा, मुरैना और अंबाह हैं। भाजपा ने तीन सीटें सबलगढ़, सुमावली और दिमनी जीती हैं। अब विजयपुर विधायक रामनिवास रावत भाजपा के हो गए हैं। लिहाजा मुकाबला बराबरी का हो गया है। मुरैना सीट पर 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने 1991 में आखिरी बार भाजपा के छबिलाल अर्गल को 16 हजार 745 वोटों के अंतर से हराकर चुनाव जीता था। आमतौर पर तोमर और ब्राह्मण मतदाता अपने-अपने समाज के प्रत्याशियों के लिए एकजाई मतदान करते हैं। अनूप मिश्रा और नरेंद्र तोमर की जीत का बड़ा आधार इसे माना गया था, लेकिन इस बार हालात बदले हैं। ब्राह्मण मतदाता अब तक तय नहीं कर पाए कि उन्हें कहां जाना है। तोमर मतदाताओं का भाजपा के साथ जाना लगभग तय है। सिकरवार सहित अन्य क्षत्रिय और पिछड़े वर्ग के मतदाता कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे हैं। वैश्य और दलित बसपा के साथ हो सकते हैं। इस कारण चुनाव जातीय और सामाजिक समीकरणों में उलझ गया है। कहा जा रहा है कि ब्राह्मण समाज के मतदाता बैठक कर सामूहिक निर्णय लेंगे कि उन्हें किस दल को मतदान करना है। ब्राह्मणों का बड़ा वर्ग कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है। यह कांग्रेस के लिए राहत की खबर है, लेकिन वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत का भाजपा में जाना पार्टी के लिए नुकसान भी है।
परिसीमन के बाद भाजपा ने तीनों चुनाव जीता
मुरैना लोकसभा सीट पहले आरक्षित थी। साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गई है। उसके बाद से तीनों चुनाव भाजपा जीती है। साल 2009 में नरेंद्र सिंह तोमर, 2014 में अनूप मिश्रा और 2019 में फिर तोमर जीते थे। इस बार भाजपा ने अपने पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर और कांग्रेस ने भाजपा के पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीटू) को मैदान में उतारा है। बसपा ने रमेश गर्ग को टिकट दिया है। भाजपा राम और मोदी लहर पर सवार है। शिवमंगल सिंह तोमर के लिए इलाके के दिग्गज नेता व मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर दिन-रात एक किए हुए हैं। सियासी तौर पर यह माना जा रहा है कि चुनाव शिवमंगल सिंह तोमर नहीं, बल्कि नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं। इस चुनाव में शिवमंगल की नहीं, नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। कांग्रेस प्रत्याशी नीटू का ताल्लुक बड़े राजनीतिक घराने से है। उनका राजनीतिक घराना भी बेजोड़ रहा है। नीटू क्षेत्र के दिग्गज भाजपा नेता गजराज सिंह सिकरवार के बेटे हैं। सिकरवार युवा चेहरा भी हैं और उनकी छबि भी साफ-सुथरी है। नीटू के भाई सतीश सिंह सिकरवार ग्वालियर से विधायक हैं और उनकी पत्नी शोभा सिंह सिकरवार ग्वालियर की महापौर हैं। बसपा प्रत्याशी रमेश गर्ग क्षेत्र के बड़े कारोबारी हैं। बसपा का प्रत्याशी घोषित होने से पहले यह माना जा रहा था कि मुकाबला दो राजपूतों के बीच होगा। बहरहाल बसपा के मैदान में उतरने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। पहले उम्मीद थी कि शिवमंगल सिंह तोमर को पसंद नहीं करने वाले ब्राह्मण, वैश्य और दलित समाज के मतदाता कांग्रेस के नीटू के साथ जाएंगे। बसपा के रमेश गर्ग ने मैदान में आकर समीकरण बिगाड़ दिए हैं। रमेश कारोबारी हैं, इस कारण व्यवसायियों का साथ उन्हें मिलने के आसार हैं। ब्राह्मणों का एक तबका भी उनके साथ जा सकता है। बसपा की वजह से दलित वर्ग का एक हिस्सा भी उनके साथ जुड़ेगा। इससे हालात त्रिकोणीय मुकाबले के बन गए हैं। इसीलिए तीनों दलों के बड़े नेताओं ने मुरैना की ओर रुख किया है। ग्वालियर-चंबल की अन्य सीटों की तरह मुरैना में भी जातीय और सामाजिक समीकरण के आधार पर मतों का ध्रुवीकरण होता है। क्षेत्र में प्रमुख मतदाता दलित, तोमर, ब्राह्मण और वैश्य हैं। इस बार के चुनाव में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक हैं। दलित मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने के कारण यह सीट पहले अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी।