प्रदेश में चार सौ से अधिक बनेंगे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट

नदियों का पानी निर्मल करने की कवायद

भोपाल/गौरव चौहान/ बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार अब शहरी इलाकों में निकलने वाले गंदे पानी यानि की सीवरेज के लिए सूबे के चार सौ से अधिक नगरीय निकायों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट  लगाने की तैयारी कर रही है। सरकार की कोशिश उन नदियों को बचाने की भी है, जो नर्मदा सहित अन्य नदियों की सहायक और जल स्रोत हैं। सभी 413 निकायों में 1800 एमएलडी क्षमता वाले सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं।
सरकार ने 2023-24 में 150 एमएलडी क्षमता के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का लक्ष्य तय किया है।  अभी नदियों का अधिकांश पानी स्थानीय नदियों में जाकर मिलता है।  इसकी वजह से उनका पानी लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। यह पूरी कवायद सूबे की नदियों के पानी को साफ स्वच्छ और निर्मल करने के लिए की जा रही है। यही वजह है की सरकार ने अब प्राथमिकता के आधार पर  निकायों के मल-जल को शुद्ध करने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए निकायों को दिसंबर-2023 तक का लक्ष्य दिया गया है। समय सीमा में काम हो इसके लिए निकायों में देरी होने पर कार्रवाई के साथ जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया गया है। इस मामले में उन निकायों को प्राथमिकता दी जा रही है , जो नदियों के किनारे स्थित हैं। इन प्लांटों के अभाव में अभी प्रदेश में दर्जनों शहरों का मल-जल व सीवरेज का गंदा पानी नदियों में मिल रहा है। इनमें कई बड़े शहर भी शामिल हैं। सरकार का दावा है की भोपाल-इंदौर सहित प्रदेश में करीब 1200 एमएलडी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट तैयार हो चुके हैं। इनमें से लगभग 95 फीसदी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू हैं। इनसे शुद्ध हुए 724 एमएलडी पानी का निकाय खुद उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह से नर्मदा किनारे बसे नगरीय निकायों में 80 फीसदी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट जल्द शुरू करने कवायद की जा रही है। यह बात अलग है की नर्मदापुरम में नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रस्तावित 171 करोड़ रुपए के सीवरेज प्लांट का काम आधा-अधूरा पड़ा हुआ है। हालात यह हैं की इसके लिए खोदे गए गड्ढों में बारिश का पानी भर गया है। उधर, बुरहानपुर में गंदे पानी से प्रदूषित हो रही ताप्ती को बचाने के लिए शहर में तीन बड़े प्रोजेक्ट पर काम किया गया, लेकिन इनमें दो की टेस्टिंग कर बाद में शुरू ही नहीं किए जा रहे हैं , जबकि एकमात्र शुरू किया गया प्लांट भी फेल हो चुका है। हद तो यह है की सागर की झील में मिलने वाले नालों पर दो ट्रीटमेंट प्लांट स्मार्ट सिटी के तहत प्रस्तावित हैं, लेकिन उनका काम अब तक शुरू ही नहीं किया गया।
अगर भोपाल की बात की जाए तो जो कलियासोत नदी शहर के बीच से बहती है उस पर सीवेज के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है। इसका गंदा पानी बहकर बेतवा नदी में मिलता  है, लेकिन इसके बाद भी  नगर निगम की तरफ से कोई एसटीपी तक प्रस्तावित तक नही किया गया है। इसके किनारे कई रेस्टोरेंट और होटल के अलावा बड़ी संख्या में कई कालोनियां बनी हुई हैं।
प्रदेश की 22 नदियों पायी गई प्रदूषित
सभ्यता को सींचने वाली नदियां इन दिनों मौत की कगार पर हैं। कहीं अवैध खनन नदी की सांसें छीन रही हैं, तो कहीं शहरी गंदगी। ऐसे में देशभर सहित मध्यप्रदेश में भी बढ़ते शहर एवं उद्योगों के कारण नदियां तेजी के साथ प्रदूषित हो रही हैं। वहीं इनके संरक्षण के लिए बनाई गईं कार्ययोजनाएं भी अब तक कागजी ही साबित हो रही हैं। दो साल पहले जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मध्यप्रदेश की नदियों की रिपोर्ट तलब की थी, तो इसमें 22 नदियों में व्यापक प्रदूषण पाया गया था। इन्हीं नदियों में नर्मदा, बेतवा , ताप्ती ,बिछिया और टमस भी शामिल थीं। इसके अलावा सतना के चित्रकूट में मंदाकिनी में हो रहे प्रदूषण पर भी चिंता व्यक्त की गई थी। ऐसे में एनजीटी ने मध्यप्रदेश सरकार को इन सभी नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए व्यापक कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया था। जिसके बाद सरकार ने भी तत्परता दिखाते हुए चिह्नित नदियों को निर्मल बनाने की कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए थे।
जनता पर आएगा भार
इन प्लांटो के लिए नगरीय निकाय सीवरेज सरचार्ज लगाने की तैयारी कर रहे हैं। सीवरेज नेटवर्क के जरिए ट्रीटमेंट प्लांट तक मल-जल पहुंचाने और उसके शुद्धिकरण पर आने वाले खर्च की वसूली रहवासियों से की

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