- गौरव चौहान

मप्र की दो मोक्षदायिनी नदियां नर्मदा और शिप्रा में लगातार गिर रहे शहरों के सीवेज और नालों के गंदे पानी से प्रदूषित हो रही हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार ने इन दोनों नदियों को निर्मल बनाने के लिए अरबों रुपए खर्च कर दिए हैं और करोड़ों रुपए की योजनाएं क्रियान्वित हैं। दरअसल इन नदियों को निर्मल बनाने की जिम्मेदारी जिन विभागों की है, उन विभाग के अफसर नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही बरत रहे हैं। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी मोक्षदायिनी नर्मदा और शिप्रा का पानी प्रदूषित हो रहा है। वहीं सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में शिप्रा को बारहमासी नदी बनाने के लिए 911.23 करोड़ की नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक योजना भटक गई है। शिप्रा जल और परियोजना से जो जल नदी में डाला जा रहा है, उसका प्रबंधन दोषपूर्ण हैं। योजना के तहत 786.07 करोड़ के जल शुल्क की वसूली नहीं हो पाई। गौरतलब है कि मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल लगातार नदियों के प्रदूषण को लेकर रिपोर्ट देता है। नदी किनारों पर इंदौर, उज्जैन और देवास में 6777 उद्योगों से प्रदूषित कचरा पैदा करने वाले 137 उद्योगों में से 5 में ही एसटीपी बने है। शिप्रा से जुड़ी नदियों के किनारे प्रदूषण फैलाने वाले 6777 उद्योग में 505 बिना अनुमति के चल रहे हैं। उद्योगों के प्रदूषण को रोकने के लिए निरीक्षण होना था। 2020-21 में ही 300 निरीक्षण के टारगेट में से 197 जगह पर अफसर नहीं गए। आदेश के बाद भी उज्जैन-देवास में ईटीपी नहीं बनाए। शिप्रा के लिए 2018 में योजना बनी। प्रदूषण बोर्ड व आईआईटी इंदौर की जांच में नदी के पानी में बीओटी की मात्रा में अंतर रहा।
भूमिगत सीवेज पाइपलाइन परियोजना
436 करोड़ रुपये की यह परियोजना नगर निगम की है, जो कायदे से दो वर्ष की अनुबंध अवधि अनुसार नवंबर- 2019 में ही पूरी हो जाना थी, मगर अब तक अधूरी है। परियोजना को धरातल पर उतारने का काम ठेकेदार फर्म टाटा प्रोजेक्ट्स कंपनी कर रही है। कंपनी का दावा है कि वो जून- 2024 तक प्रोजेक्ट पूरा कर लेगी मगर काम की गति देखकर प्रतीत होता है कि परियोजना इस साल भी पूरी न हो पाएगी।
विभागों की लापरवाही पड़ी भारी
शिप्रा व सहायक नदियों की सफाई नगरीय निकायों को करना था। लेकिन निगमों द्वारा ही गंदा पानी नदियों में छोड़ जा रहा है। शिप्रा में मिल रहे 28 नालों में 11 की ही टैपिंग की गई है। वहीं शिप्रा और उसकी सहायक नदियों के किनारे सांवेर, महिदपुर, आलोट में नालियां नहीं बनीं हैं। निगमों ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाए गए हैं। भविष्य की देखते हुए 1099.26 एमएलडी के एसटीपी के बजाय 552.5 एमएलडी के ही प्लांट लगाए हैं। ये पूरे समय नहीं चलते। नगर निगमों ने 13वें वित्त आयोग का पैसा लेने गंदगी खत्म करने के आंकड़ों में हेर-फेर की। शहरों में सीवरेज लाइन कहीं 61 तो कहीं 80 पूरी लाइन डालकर पूरी बताई। वहीं जल संसाधन, पीएचई और एनवीडीए की लापरवाही के कारण शिप्रा प्रदूषित हो रही है। शिप्रा पर 599.13 मिलियन यूबिक फीट क्षमता के 18 स्टॉप डेम हैं। शिप्रा में पूरे साल पानी नहीं रहता। इस पर टैंक, छोटे बांधों या रोक बांध बनाकर भंडारण क्षमता बढ़ाना था। शिप्रा पुनर्जीवित करने 2014 में एनवीडीए ने नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना बनाई, पर 5 साल में 97.72 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा। नदी पुनर्जीवित नहीं हुई। नदी किनारे मिट्टी कटाव रोकने वन विभाग ने 252.63 हेटेयर में पौधरोपण बताया, पर कुछ नहीं किया। पंचायतीराज संस्थाओं ने इंदौर-उज्जैन, देवास, रतलाम के 41 में पौधरोपण नहीं किया।
कागजों पर अभियान
अगर यह कहा जाए कि सरकारी लापरवाही से प्रदेश की नदियां दम तोड़ रही हैं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राज्य को अमृत देने वाली मां नर्मदा और शिप्रा को जिम्मेदार ही मैली कर रहे हैं। नर्मदा और शिप्रा के किनारे बसे शहरों के नालों से गंदा पानी नदियों में डाला जा रहा है। इससे मां का आंचल मैला हो रहा है। नर्मदापुरम में जिम्मेदार नाले का गंदा पानी नर्मदा में छोड़ रहे हैं तो 10 साल से शिप्रा को संवारने वाली योजनाएं दम तोड़ रही हैं। अफसर कागजों में पौधरोपण कर रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाला दूषित पानी रोक रहे हैं। नालों के पानी को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर नदियों में छोड़ रहे हैं। उनके कागजी झूठे कारनामों की पोल महालेखाकार (सीएजी) ने खोल दी है। शिप्रा में घटते पानी और गंदे होने की जांच सीएजी ने की। शिप्रा से जुड़े 14 विभागों के 2016-17 से लेकर 2020-21 में किए काम की पड़ताल की तो विभागों की बड़ी लापरवाही सामने आई।
शिप्रा शुद्धि के लिए अभी ये है योजना
क्षिप्रा के नहाने क्षेत्र में कान्ह का पानी मिलने से रोकने के लिए 14 महीने पहले 5 दिसंबर 2022 को जल संसाधन विभाग ने कान्ह का 40 क्यूमेक पानी का रास्ता बदलने के लिए 598 करोड़ 66 लाख रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना स्वीकृत की थी, जिसका टेंडर खुले कई महीने बीत चुके हैं। परियोजना के क्रियान्यन की जिम्मेदारी पाने को हैदराबाद की वेंसर कंस्ट्रक्शन ने सारी अर्हता प्राप्त कर ली है, बावजूद उसे कार्य आदेश जारी नहीं किया जा रहा। रिपोर्ट के अनुसार इस कंपनी ने 15 प्रतिशत बिलो रेट पर काम करने का प्रस्ताव दिया है। अगर कार्य आदेश जारी हुआ तो लगभग चार साल योजना पूरी होने में लगेंगे। निविदा शर्त अनुरूप तय ठेकेदार फर्म को अगले 15 वर्ष योजना का रखरखाव भी करना होगा। योजना में त्रिवेणी घाट के समीप गोठड़ा गांव में कान्ह पर पांच मीटर ऊंचा स्टापडेम बनाने, यहां से कालियादेह महल के आगे तक 16.5 किलोमीटर लंबा एवं 4.5 बाय 4.5 मीटर चौड़ा पाइपलाइन नुमा आरसीसी बाक्स बनाकर जमीन पर बिछाने का प्राविधान है। दावा है कि इस चोकोर बाक्सनुमा पाइपलाइन से कान्ह का 40 क्यूमेक पानी डायवर्ट किया जा सकेगा। अंतिम 100 मीटर लंबाई में ओपन चैनल का निर्माण किया जाएगा। स्वच्छ गंगा मिशन अंतर्गत इंदौर में 34, 40, 120 एमएलडी (मिलियन लीटर्स पर-डे) के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने को 11 महीने पहले सरकार ने 511 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। इसके महीनों बाद योजना को क्रियान्वित कराने को 427 करोड़ रुपये का टेंडर आमंत्रित किया। टेंडर खुले कई सप्ताह गुजर गए हैं पर टेंडर स्वीकृत नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि योजना केंद्र की है, इसलिए कुछ वक्त लगेगा। स्वच्छ गंगा मिशन अंतर्गत नौ महीने पहले केंद्र सरकार ने उज्जैन नगर निगम को 95 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। विधानसभा चुनाव से पहले पीलियाखाल में 22 एमएलडी एवम भैरवगढ़ में 2.4 एमएलडी कंट्रीटमेंट प्लांट लगाने संबंधी निविदा प्रक्रिया की। ये अब तक स्वीकृत न हुई है। हैरानी की बात ये है टेंडर खुलने के बाद नगर निगम परिषद ने अभी कुछ दिन पहले निविदा प्रस्ताव आमंत्रित करने का प्रस्ताव स्वीकृत किया था।