मोहन यादव के पास थकने के लिए भी समय नहीं

मोहन यादव
  • अवधेश बजाज कहिन

जिस समय साल 2023 अपने अंतिम कदम उठा रहा था, उस समय मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए बढ़े यादव के कदम तो साफ देखे जा सकते थे, लेकिन उनकी परछाई का दिखना बेहद मुश्किल नजर आ रहा था। शायद इसीलिए कहते हैं कि कठिन समय में साया भी साथ छोड़ देता है। यादव के लिए वह समय यकीनन बहुत चुनौती वाला था। जिसे सारांश में डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की कविता की पंक्ति ‘कर शपथ….. अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ’ से समझ सकते हैं। लेकिन अब इस सब पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है, क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में एक साल का कार्यकाल पूरा करते हुए डॉ. मोहन यादव खुद की परछाई से भी बहुत आगे निकल आए हैं। अग्निपथ पर चलते हुए। अग्नि परीक्षा  से सफलता के साथ गुजरते हुए। नवाचारों की दम पर। साहसिक निर्णयों के बूते पर।
मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. यादव  की सबसे बड़ी चुनौती यह  थी कि उन्हें इस पद को करीब अठारह साल में अविजित वाले कद के साथ आगे ले जाने वाले शिवराज सिंह चौहान के आभामंडल से अलग अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना थी। वो खरामा-खरामा इस दिशा में आगे बढ़े और आज भाजपा सहित प्रदेश की अपेक्षाओं पर भी वो खरे उतरते हुए नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद यादव का एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें वह किसी आयोजन में दोनों हाथों में तलवार लेकर उसे चलाते हुए नजर आते हैं। एक साल की इस अवधि को देखें तो साफ लगता है कि वो तलवारें अब भी चल रही हैं। उनकी धार शासन और प्रशासन की उस कुंद अवस्था को खत्म करती दिख रही है, जो व्यवस्था को खराब करने का सबसे घातक कारण बनती हैं। यादव ने कार्यकाल के शुरू में ही एक वरिष्ठ अफसर को जनता से दुर्व्यवहार करने के चलते जिस तरह ‘से उधर’ किया था,  उससे स्पष्ट था कि वह सिस्टम की गड़बड़ी को लेकर ‘अगर-मगर’ वाले व्यवहार को सहन नहीं करेंगे। इसके बाद से अब तक महत्वपूर्ण पदों पर जिस तरह ईमानदार अफसरों को बिठाया गया है,  वह डॉ. यादव की सुशासन वाली सोच का पुख्ता प्रतिबिंब है।
डॉ. यादव के लिए मुख्यमंत्री का पद शुरुआत में  कांटों वाले ताज जैसा भी दिखा। क्योंकि जब अखबारों ने लिखा, ‘मोदी के मनमोहन’ तब यह डॉ. यादव की उपलब्धि से अधिक उस चुनौती का प्रतीक था कि वह किस तरह मोदी की उम्मीदों का भी मन मोह सकेंगे? लोकसभा चुनाव सिर पर था और यादव के नेतृत्व में कुछ ऐसा माहौल बना कि राज्य की सभी 29 सीटों पर भाजपा का कमल सिर तानकर खड़ा हो गया। अब देश के हृदय प्रदेश में भाजपा के सदस्यता अभियान को जो हार्दिक सफलता मिली है, उसमें डॉ. यादव के परिश्रम और लोकप्रियता वाले फैक्टर को भी देखा जा सकता है। आम चुनाव में भाजपा को मध्यप्रदेश ने जो खास लाड़ दिया, उसके पीछे यादव के जुझारूपन का बड़ा योगदान रहा। क्योंकि इस चुनाव के पहले-पहले यह जमकर प्रचारित किया गया था कि शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी लाड़ली बहना योजना को डॉ. यादव बंद करने  जा रहे हैं। लेकिन यादव ने ऐसा होने नहीं दिया। बल्कि उन्होंने रक्षा बंधन पर लाड़ली बहनों को बोनस और महज 450 रुपए में गैस सिलेंडर की घोषणा से वह माहौल बनाया कि इनसे मिलती-जुलती योजनाओं की दम पर भाजपा ने महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भी जोरदार  सफलता हासिल कर ली। जब चुनाव की बात चल ही रही है तो यह भी याद दिला दें कि हरियाणा  और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में यादव ने जिन सीटों पर प्रचार किया, उनमें से ज्यादातर पर भाजपा ने फतेह हासिल की है।
डॉ. मोहन यादव सधे हुए कदमों के साथ आगे बढ़ते दिखते हैं। राजस्व महा अभियान के दो चरणों में 80 लाख से अधिक राजस्व  प्रकरणों का निराकरण इसकी पुख्ता मिसाल है। फिर भाजपा की एक समस्या का निराकरण भी उन्होंने पुरजोर अंदाज में कर दिखाया। राज्य में पार्टी के लंबे शासनकाल के दौरान  सरकार के कई  वजीर पार्टी की रीति-नीति से  उलट गलत नजीर पेश करने लगे थे। यादव ने मंत्रिमंडल के गठन में कठोर रुख दिखाते हुए ऐसी गठानों को बाहर का रास्ता दिखाने  का बड़ा काम भी किया है। ऐसा लिखने से आशय यह नहीं कि हरेक पूर्व मंत्री पर आक्षेप लगाया जाए, लेकिन कई ऐसे चेहरे इस सरकार से  दूर हुए हैं, जो अपने पद के मद में काफी हद तक बहक चुके  थे और उन पर लगाम लगाना बहुत जरूरी जान पड़ रहा था।
बहुत जरूरी यह भी कि मध्यप्रदेश की आर्थिक सेहत और सुधारी जाए। यादव वाकई किसी डॉक्टर की तरह इस दिशा में आगे बढ़े। उन्होंने बीमार की बजाय बीमारी के  इलाज पर ध्यान दिया। एक छोर से दूसरे छोर तक निवेश के लिए विशेष माहौल तैयार किया। छोर भी कैसे? बुंदेलखंड के सागर और महाकौशल के जबलपुर की रीजनल इन्वेस्टर्स मीट से लेकर ब्रिटेन और जर्मनी जाकर राज्य के लिए निवेश की संभावनाओं को पक्का करने वाले दो छोर को एक  सूत्र में बांधना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। विदेश यात्राओं में मध्यप्रदेश के लिए मिले 78 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव बताते हैं कि डॉ. यादव द्वारा अगले  साल की जनवरी में भोपाल में आयोजित की जाने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर समिट प्रदेश को आर्थिक रूप से संपन्न करने का बड़ा माध्यम बन सकती है।
सच तो यह भी है कि डॉ. यादव के इस एक साल ने मध्यप्रदेश में विश्वास के नए सूर्योदय का काम भी किया है। कानून-व्यवस्था की मजबूती सहित किसानों की समस्याओं के निदान, बेरोजगारी के उन्मूलन, स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के साथ ही अन्य क्षेत्रों में हुए अनगिनत नवाचारों को आप आसानी से देख सकते हैं।
डॉ. यादव की सबसे बड़ी खूबी यह कि अपनी ऐसी तमाम सफलताओं के हर सफल प्रसंग के बाद वह जस की तस धर दीनी चदरिया वाले निर्लिप्त भाव में रमे हुए दिखते हैं। ऐसी कामयाबियों के उल्लेख में डॉ. यादव जिस  तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपने मंत्रियों को  सम्मान देते हैं, वह उन्हें श्रेय लेने की प्रतियोगिता के हुल्लड़बाजों से बहुत अलग स्थान प्रदान करता है। निश्चित ही यादव के लिए चुनौतियों का अभी लंबा  सिलसिला चलना  है।  आने वाले चार साल में उन्हें प्रदेश की और भी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। डॉ. यादव आगे की अग्निपरीक्षाओं में सफल साबित होंगे, इसका विश्वास है। क्योंकि महज एक वर्ष में ही सुशासन के लिए अपने संघर्ष से उन्होंने दिखा दिया है कि उनके पास विश्राम करना तो दूर, थकने के लिए भी  समय नहीं है।

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