मनरेगा: न मजदूरी मिल रही, न काम

मनरेगा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना के तहत मजदूरों को 100 दिन की मजदूरी की गारंटी है। ताकि ग्रामीणों को मजदूरी के लिए गांव से बाहर नहीं जाना पड़े, लेकिन मजदूरों को पहले तो काम ही नहीं मिलता। यदि काम मिल भी जाए तो उनको समय से मजदूरी नहीं मिल पाती। जिससे मजदूर परेशान रहते हैं। ऐसे में मजदूर गांव में रोजगार नहीं मिलने के कारण शहरों में मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। अनूपपुर जिले के ग्राम पंचायत छोहरी के जीवन दास चौधरी अद्र्ध कुशल मजदूर हैं। इन्होंने राज मिस्त्री के तौर पर मनरेगा के अंतर्गत काम किया। वे बताते हैं कि एक साल से उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ। जानकारों का कहना है कि रोजगार सहायकों द्वारा प्रदेशव्यापी की गई हड़ताल से भी मनरेगा के काम प्रभावित हुए हैं।
एक जीआरएस ने बताया कि लाड़ली बहना योजना में बहनों के फार्म भरने के काम में लगे होने से भी कार्यों की मॉनीटरिंग नहीं हो रही है। जानकारी के अनुसार 13,94,953 कार्य पिछले तीन सालों से प्रगतिरत हैं। वर्ष 2022-23 में 8,81,801 नए कार्य लिए गए। इस तरह कुल 22,76,754 कार्य हुए हुए। इनमें अभी तक 10,34,818 (45.45 प्रतिशत) पूरे हुए हैं और 12,41,936 कार्य प्रगतिरत हैं। प्रदेश के सभी 52 जिलों में 12,540 अमृत सरोवर चिह्नित किए गए हैं। इनमें अभी तक 921 कार्य प्रारंभ ही नहीं हुए। जबकि 5,739 कार्य प्रगतिरत हैं। महज 1,415 कार्य ही 10 अप्रैल 2023 तक पूरे होना बताया गया है।
640 करोड़ मजदूरी और सामग्री के अटके
मनरेगा में अब काम भी नहीं मिल रहा है, जिससे गांव के बाहर मजदूरी करने की मजबूरी हो गई है। प्रदेश के सभी 52 जिलों के 75 लाख से अधिक मनरेगा मजदूरों को अभी मजदूरी मिलने का इंतजार है। सरकारी आंकड़े बता रहे कि पिछले साल का करीब 640 करोड़ रुपए मजदूरी और सामग्री का भुगतान अटका है। इस राशि के लिए राज्य सरकार केंद्र का मुंह देख रही है। मजदूरी नहीं मिलने से विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। गत वर्ष 45 लाख 29 हजार 519 परिवारों के 75 लाख 73 हजार 576 व्यक्तियों को ही मनरेगा में काम मिला। इनमें 100 दिन का काम सिर्फ 94,971 परिवारों को मिला। जबकि 22 करोड़ 66 लाख 27 हजार से अधिक मानव दिवस सृजित किए गए। वर्ष 2022-23 में प्रति परिवार औसतन 50 दिन का काम मिला।
ग्रामीण क्षेत्रों में डीबीटी की गंभीर समस्या
मनरेगा में विकास कार्य प्रभावित होने और मजदूरी का समय पर भुगतान प्रभावी नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण डीबीटी को लेकर सामने आया है। अनूपपुर जिले के एक रोजगार सहायक ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि केंद्र सरकार मजदूरी का भुगतान डीबीटी यानि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सिस्टम से कर रही है। डीबीटी के हर मजदूर का बैंक में आधार लिंक होना आवश्यक है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (प्रत्यक्ष लाभ भुगतान) सरकार द्वारा अनेक योजनाओं में लाभार्थियों के लिए किया जाता है। यह तत्काल भुगतान व्यवस्था है और इसमें बिचौलियों द्वारा भ्रष्टाचार की संभावना भी कम हो जाती है। इसका उद्देश्य सीधे लोगों के बैंक खाते में सब्सिडी ट्रांसफर करना है। इससे सीधा फायदा लाभार्थी को मिलता है। अनूपपुर जिले के नवागत सीईओ मनरेगा, एस. कृष्ण चैतन्य से मनरेगा में कार्यों की स्थिति, मजदूरों और सामग्री के अटके भुगतान तथा केंद्र से राशि उपलब्ध कराने के लिए किए जा रहे प्रयासों को लेकर कई बार संपर्क किया गया। उन्हें सूचना भी दी गई लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला।

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