भोपाल/ राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। कोरोना की दूसरी लहर के घातक प्रहार से देश के साथ ही प्रदेश के कार्यालयों में दैनिक गतिविधियां जैसे थम सी गई है। कोरोना के कारण दस कर्मचारी ही कार्यालय आ रहे हैं। यानी मंत्रालय की सांसें रुक गई हैं। ऊपर से लेकर जिलों के ऑफिस तक बंद जैसे हालत में है। यही नहीं प्रदेश में पंचायत से प्रदेश कार्यालयों तक हर दिन औसतन डेढ़ लाख फाइलें प्रचलन में रहती है। वहीं अब कोरोना संक्रमण से राज्य मंत्रालय वल्लभ भवन, सतपुड़ा विंध्याचल जैसे बड़े कार्यालयों में सन्नाटा पसरा है। मंत्रालय हर दिन औसतन चार हजार से अधिक लोग कार्यालय पहुंचते थे लेकिन अब उपस्थित बहुत ही कम हो रही है। ऑफिस का काम लगभग रूक गया है।
बड़े अधिकारियों के चेंबर खाली पड़े हैं। आवाजाही ना के बराबर है। सामान्य दिनों में जिन विभागों में ज्यादा काम होता था उनमें स्वास्थ्य, लोक निर्माण, खनिज, महिला एवं बाल विकास विभाग, गृह, वित्त, जल संसाधन, राजस्व और आदिम जाति कल्याण से संबंधित विभाग शामिल हैं। इन विभागों में हर दिन लिपिक से लेकर प्रमुख सचिव तक सैकड़ों फाइलें इधर से उधर होती है और नोटशीट लिखी जाती है। वहीं अब इन कार्यालयों में फाइलें टेबल के ऊपर बस्ते में बंद या फिर अलमारियों में बंद कर दी गई है। यानी कार्यालयों में काम की गति रुक गई है।
डरे हुए हैं कर्मचारी
उल्लेखनीय है कि मंत्रालय के तीन कर्मचारियों का कोरोना संक्रमण के बाद निधन हो चुका है। वहीं पांच दर्जन से अधिक कर्मचारी पॉजिटिव हो चुके हैं। मंत्रालय कर्मचारी संघ के अनुसार राज्य स्तरीय कार्यालयों को 15 मई तक पूरी तरह बंद करने की मांग राज्य शासन से की गई है।
संक्रमण के भय से रुका फाइलों का मूवमेंट
कोरोना संक्रमण की लहर इतनी तेज है कि कई कर्मचारी अधिकारी ड्यूटी के दौरान ही संक्रमित हो गए और जान गवां बैठे। भोपाल में सामान्य तौर पर पर्यावरण भवन, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, महिला एवं बाल विकास विभाग, निर्माण भवन, राहत कार्यालय, पंचायत राज संचालनालय, विकास आयुक्त, पंजीयन एवं मुद्रांक राज्य मंडी बोर्ड कोष एवं लेखा कार्यालयों में ज्यादा फाइलें घूमती है। इसके अलावा इंदौर और ग्वालियर में स्थित वाणिज्य और आबकारी और परिवहन कार्यालय अलग है। जहां फाइलों का मूवमेंट रोजाना बड़े पैमाने पर होता है। कोरोना संक्रमण का डर कर्मचारियों के मन में बैठ गया है। हालांकि सरकार ने भी कम उपस्थिति के लिए आदेश जारी किए हैं।
सरकार का फोकस दवाओं और ऑक्सीजन पर
प्रदेश में मौजूदा हालात में दवाओं की कमी और ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सरकार ने बड़े महकमों के अफसरों को जरूरी दवाओं की आपूर्ति और आॅक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए जिम्मेदारी दी है। यानी सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने की हर संभव कोशिश कर रही है। हालांकि इसके बावजूद भी प्रदेश के किसी न किसी जिले में रोजाना आॅक्सीजन की कमी से लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं। वहीं राहत देने वाली खबर है कि अगली 22 से 24 दिनों के भीतर प्रदेश में आॅक्सीजन का संकट पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। मई महीने के तीसरे सप्ताह में प्रदेश के 37 जिलों में ऑक्सीजन के प्लांट शुरू हो जाएंगे। तब दूसरे राज्यों से ऑक्सीजन नहीं बुलानी पड़ेगी।
प्रदेश में 58 ऑक्सीजन प्लांट होंगे स्थापित
मध्यप्रदेश में ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए प्लांट लगाने का काम शुरू हो चुका है प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से 58 प्लॉट स्थापित किए जाने हैं। विशेष यह है कि इनके लिए कंपनियों को काम सौंपा जा चुका है। ऑक्सीजन उत्पादन के लिए तारीख भी तय कर दी गई है। गौरतलब है कि इनमें से पांच प्लांट के लिए राशि मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी।
छह प्लांट से ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू हो भी चुका है। मंत्रालय सूत्रों की माने तो ऑक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। दरअसल इन दिनों में दवाई, बेड, अस्पताल एवं अन्य उपचार सामग्री से ज्यादा ऑक्सीजन की मांग रही है। इसके बाद सरकार का पूरा फोकस अब जरूरी इंजेक्शन, दवाई और ऑक्सीजन पर रहा है। ऑक्सीजन के लिए सभी जिलों में प्लांट लगाने का काम चल रहा है। प्रदेश के आठ जिलों में भारत सरकार के सहयोग से पीएसए तकनीक आधारित आठ ऑक्सीजन प्लांट स्वीकृत हुए हैं जिनमें से छह प्लांट में कार्य करना प्रारंभ कर दिया है, जबकि बालाघाट, दमोह, जबलपुर, धार, बड़वानी, शहडोल, सतना और मंदसौर आदि में यह जल्द प्रारम्भ होगा। इनमें तकरीबन पौने छह करोड़ रूपए से अधिक की लागत के पीएसए तकनीक आधारित 570 लीटर प्रति यूनिट मिनट की क्षमता वाले ऑनसाइट ऑक्सीजन गैस जनरेटर प्लांट लगाए जा रहे हैं। जो 16 मई तक उत्पादन शुरू कर देंगे।
01/05/2021
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