- लोकसभा चुनाव पर रहेगा फोकस
- विनोद उपाध्याय
जल्द ही मंत्रियों के बीच जिलों के प्रभार का बंटवारा कर दिया जाएगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए मंत्रियों को जिलों का प्रभार दिया जाएगा। विधानसभा चुनाव में जिन लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा है, वहां के जिलों का प्रभार दिग्गज नेताओं को दिया जाएगा। इसके लिए सत्ता और संगठन मिलकर रणनीति बना रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सीएम डॉ. मोहन यादव ने मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा कर दिया है। ऐसे में अब मंत्रियों को जिलों के प्रभार के बंटवारे का भी इंतजार है। हालांकि विभाग वितरण के बाद मंत्रियों को जिलों को प्रभार देना भी बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि दोनों डिप्टी सीएम सहित 30 मंत्रियों के बीच प्रदेश के सभी 55 जिलों के प्रभारी तय होने हैं, जिसमें समीकरणों को बनाकर भी चलना है। प्रभारी मंत्री को जिले में चल रही योजनाओं की सीधी मॉनीटरिंग और नई योजनाओं की मंजूरी का अधिकार रहता है। जिला स्तर पर होने वाले प्रत्येक कर्मचारी के तबादले के लिए प्रभारी मंत्री अनुशंसा करते हैं। प्रभारी मंत्री द्वारा समय-समय पर जिला योजना समिति की बैठक की जाती है। इसमें जिले से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के बाद निर्णय लिया जाता है।
आदिवासी बाहुल्य जिलों में फंसा पेंच
दरअसल, बताया जा रहा है कि मंत्रियों को जिले के प्रभार दिए जाने पर आदिवासी बाहुल्य जिलों की जिम्मेदारी भाजपा सीनियर मंत्रियों को सौंप सकती है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में शामिल आदिवासी क्षेत्रों के नेताओं को अनुसूचित जनजाति इलाके के प्रभार सौंपने की तैयारी की जा रही है, जिसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके अलावा विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को जिन जिलों में हार का सामना करना पड़ा है, उन जिलों पर इस बार विशेष फोकस रहेगा, यहां सीनियर नेताओं की तैनाती की जाएगी। प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को 47 आदिवासी सीटों में से 25 सीटों पर सफलता मिली है। 2018 के मुकाबले 9 सीटों का इस बार भाजपा को फायदा हुआ है। ऐसे में भाजपा इस लीड को बरकरार रखने की कोशिश करेगी। ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव में भी विजयी अभियान आगे ले जाने की रणनीति पर काम कर रही है।
हाईकमान की हरी झंडी का इंतजार
प्रदेश में डॉ. मोहन यादव मंत्रिमंडल का गठन हो गया है। विभागों के आवंटन के बाद मंत्रियों ने कामकाज शुरू कर दिया है। अब सिर्फ मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंपा जाना बाकी है। इसके बाद सरकार के गठन संबंधी प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी। मंत्री भी बेसब्री से उन्हें जिलों का प्रभार दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा अपने स्तर पर जिलों का प्रभार सौंपने को लेकर मंत्रियों के नाम फाइनल कर लिए हैं। पार्टी हाईकमान की हरी झंडी मिलने के बाद संभवत: अगले सप्ताह तक मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंप दिया जाएगा। चूंकि प्रदेश में जिलों की संख्या 55 है और मंत्री 30 हैं, इसलिए कुछ मंत्रियों को एक साथ दो-दो जिलों का प्रभार सौंपा जाएगा। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यह पूर्णत: मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मामला है कि किस मंत्री को किस जिले का प्रभार सौंपा जाएगा। अमूमन जिलों का प्रभार सौंपने से पहले मुख्यमंत्री मंत्रियों से उनकी पसंद भी पूछते हैं। कई मंत्री अपने गृह जिले के नजदीक के जिले का प्रभार उन्हें सौपे जाने का अनुरोध करते हैं, ताकि आने-जाने में आसानी रहे। कुछ मंत्री मुख्यमंत्री को अपनी पसंद बता चुके हैं। आमतौर पर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर जैसे बड़े जिलों का प्रभार कद्दावर मंत्रियों को दिया जाता है। पिछली भाजपा सरकार में भोपाल जिले का प्रभार तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के करीबी भूपेंद्र सिंह के पास था। ऐसे ही ग्वालियर जिले का प्रभार ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट को सौंपा गया था।