- मंत्रियों के ट्विटर पर आम आदमी नहीं भेज पा रहा अपना संदेश
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा सरकार और संगठन ने अपने मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नेताओं को निर्देशित कर रखा है कि वे सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक सक्रिय रहें, ताकी जनता तक वे अपनी बात पहुंचा सकें और जनता की बात उन तक पहुंच सके। मप्र में मंत्री, सांसद और विधायक सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, लेकिन प्रदेश के अधिकांश मंत्री ऐसे है जिनका ट्विटर अकाउंट तो चल रहा है, लेकिन आम आदमी उनको अपना संदेश नहीं भेज पा रहा है। यानी मंत्रियों ने डीएम (डायरेक्ट मैसेज) का विकल्प बंद कर रखा है। दरअसल अधिकांश मंत्री जनता से डिजिटल संवाद करने से कतरा रहे हैं। अपने ट्वीटर डीएम पर ताला लगाने वाले 24 मंत्रियों से 1,581,100 जनता जुड़ी है। अगर जनता को मंत्री से संवाद स्थापित करना हो तो परंपरागत तरीका अपनाना होगा। जैसे क्षेत्र में पहुंचने पर मुलाकात या भोपाल में बंगले के चक्कर लगाना। गौरतलब है की सरकार की मंशा है कि डिजिटल व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए ताकि पारदर्शी और अंतिम छोर पर बैठा व्यक्ति अपनी आवाज सही जगह पर आसानी से पहुंचा सके, लेकिन शिवराज कैबिनेट के 31 में से 24 मंत्रियों ने अपने ट्विटर हैंडल में डिजिटल ताला लगा रखा है। यानी मंत्रियों ने डीएम (डायरेक्ट मैसेज) का विकल्प बंद कर रखा है, ताकि आम लोग उन्हें अपनी पीड़ा बताकर परेशान ना कर सकें। सवाल ये है कि क्या मंत्री सालाना लाखों रुपए अपने सोशल मीडिया पर सिर्फ एकतरफा संवाद और अपनी ब्रांडिंग के लिए खर्च कर रहे हैं। क्या जनता से इनका कोई सरोकार नहीं है। डायरेक्ट मैसेज का उपयोग निजी संदेश भेजने में होता है। ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर संदेश भेज सकते हैं। लेकिन मंत्रियों ने लोगों के लिए अपने एकाउंट को जनता के लिए बंद कर दिया है बिजली, पानी और सडक़ जनता की मूलभूल जरूरतों में से हैं, लेकिन अफसोस ये है कि तीनों विभागों के मंत्रियों ने ट्विटर से आम जनता के संवाद का रास्ता बंद कर रखा है। अगर कोई सामूहिक रूप से भी मदद मांगता है तो मंत्रियों की ओर से कोई जवाब ही नहीं दिया जाता।
अधिकांश मंत्रियों के ब्लूटिक हटाए
उधर ट्विटर ने नॉन पेड अकाउंट्स से ब्लू टिक हटा दिए हैं। ट्विटर के इस एक्शन की जद में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का अकाउंट भी आ गया। शिवराज कैबिनेट की दो मंत्रियों यशोधरा राजे सिंधिया और ऊषा ठाकुर को छोडक़र सभी मंत्रियों के ब्लूटिक ट्विटर ने हटा दिए हैं। ट्विटर के इस कदम को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रहीं हैं। मप्र भाजपा के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट का ब्लूटिक हटा दिया गया। वहीं मप्र कांग्रेस और मप्र युवा कांग्रेस के ट्विटर पर ब्लूटिक बरकरार है। बीजेपी युवा मोर्चा मप्र का भी ब्लूटिक रिमूव कर दिया गया है। ट्विटर की इस कार्रवाई से सीएम शिवराज सिंह चौहान, पीसीसी चीफ कमलनाथ बचे हुए हैं। सीएम शिवराज के अकाउंट और कमलनाथ के ट्विटर में ब्लू टिक बरकरार हैं। कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले के पास भी ब्लू टिक बचा हुआ है। ट्विटर की इस कार्रवाई से कांग्रेस के नेता भी नहीं बच सके। दिग्विजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा, विजयलक्ष्मी साधौ, कमलेश्वर पटेल, तरुण भनोत, पीसी शर्मा सहित कांग्रेस के विधायक और पूर्व मंत्रियों के ट्विटर अकाउंट्स से ब्लू टिक हटा दिए गए हैं।
किया ब्लूटिक का सब्सक्रिप्शन लागू
मस्क ने ट्विटर खरीदते ही कई बड़े बदलाव किए थे, जिसमें ट्विटर ब्लू सब्सक्रिप्शन भी शामिल है। ट्विटर ब्लू के तहत ब्लूटिक के लिए यूजर्स को हर महीने एक तय राशि देनी होती है। भारत में ट्विटर ब्लू सब्सक्रिप्शन की सुविधा कुछ समय पहले ही लॉन्च हुई है।
24 मंत्रियों का डीएम बंद
प्रदेश में एक तरफ रोजाना सैकड़ों लोग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी बातें और समस्याएं शेयर करते हैं वहीं उनकी सरकार में 24 मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने अपने ट्विटर हैंडल में डिजिटल ताला लगा रखा है। इन्हें जनता से डिजिटल संवाद पसंद नहीं है। ये हैं मंत्री गोपाल भार्गव, तुलसी सिलावट, जगदीश देवड़ा, बिसाहूलाल, यशोधर राजे, भूपेंद्र सिंह, मीना सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, बृजेंद्र प्रताप सिंह, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया प्रद्युम्न सिंह, प्रेम सिंह पटेल, ओमप्रकाश सखलेचा, उषा ठाकुर, अरविंद भदौरिया, हरदीप सिंह डंग, राज्यवर्धन सिंह, भरत सिंह कुशवाह इंदर सिंह परमार, राम खेलावन पटे राम किशोर कांवरे, बृजेंद्र सिंह यादव और सुरेश धाकड़। विशेषज्ञों को कहना है मंत्री स्तर पर सोशल मीडिया में ब्रांडिंग के लिए कम से कम एक लाख रुपए प्रतिमाह खर्चा आता है। अब ऐसे में 25 मंत्रियों के सालभर के सोशल मीडिया के खर्चा का आंकलन करें तो यह करीब तीन करोड़ रुपए से ज्यादा बैठता है। इसमें लंबी- चौड़ी युवाओं की टीम काम करती है। सवाल ये है कि जब जनता से सोशल मीडिया अकाउंट का सरोकार ही नहीं है तो ये करोड़ों रुपए आखिर किस लिए खर्च किए जा रहे हैं।