- कांग्रेस व भाजपा के बड़े नेताओं के होंगे दौरे
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही प्रदेश में दलित राजनीति का जोर नही रहा हो, लेकिन बीते डेढ़ दशक में देश की सबसे बड़ी दलित राजनीति का केन्द्र बनकर महू उभरा है। यह वो स्थान है, जहां पर संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का जन्म हुआ। इसकी वजह है, भाजपा की शिवराज सरकार द्वारा इस स्थान को उभारने के लिए किए गए प्रयास। कांग्रेस 27 जनवरी को ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ अभियान के तहत यहां पर एक बड़ी रैली करने जा रही है। जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे महू में एक बड़ी रैली करेंगे। इससे पहले भाजपा के 7 बड़े नेता प्रदेश के 7 संभागों में संविधान गौरव दिवस के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने आ रहे हैं। इनमें भाजपा के दिग्गज नेता अमित शाह का नाम भी शामिल है। इस दौरान अमित शाह भोपाल में, जेपी नड्डा जबलपुर में, नितिन गडक़री इंदौर में और विनोद तावड़े रीवा में सभा करेंगे। मुख्यमंत्री मोहन यादव ग्वालियर में रहेंगे। दो अन्य केंद्रीय नेता सागर और उज्जैन संभाग में भी सभाएं करेंगे। यह सब बाबा साहेब आंबेडकर की जन्मस्थली महू में होने वाली कांग्रेस की रैली का मुकाबला करने के लिए हो रहा है, जिसे केंद्र सरकार ने पंचतीर्थ में शामिल किया है। दरअसल, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संविधान की रक्षा के नाम पर जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा संविधान को कमजोर कर रही है। वहीं भाजपा का दावा है कि वो ही संविधान की असली रक्षक है। इसी खींचतान के बीच मध्य प्रदेश दलित राजनीति का रणभूमि बन गया है। दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता राज्य में डेरा डालेंगे और जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इसके पीछे दोनों दलों की मंशा संविधान की रक्षा के नाम पर जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की हैं। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा संविधान को कमजोर कर रही है। वहीं भाजपा का दावा है कि वो ही संविधान की असली रक्षक है। इसी खींचतान के बीच मध्य प्रदेश चुनावी रणभूमि बन गया है। दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता राज्य में डेरा डालेंगे और जनसभाओं को संबोधित करेंगे। अगर लोकसभा चुनाव परिणामों को देखें तो दलित वोट और सीटों के आंकड़ों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों की सक्रियता बढ़ाई है। महू को आंबेडकर की जन्मस्थली होने के कारण विशेष महत्व दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इसे बाबा साहेब से जुड़े पंचतीर्थों में शामिल किया है। यह जगह दलित समुदाय के लिए पवित्र स्थल मानी जाती है। इसलिए दोनों ही दल इस मौके का फायदा उठाकर दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा के लिए चुनौती
2009 से लेकर 2024 तक के लोकसभा चुनाव परिणामों में एससी आरक्षित सीटों का आंकड़ा देखें, तो भाजपा की बढ़ती मुश्किलें स्पष्ट हो जाती हैं। 2009 में भाजपा को 12, जबकि 2014 में 40 सीटें मिली थीं, वहीं 2019 के मोदी लहर में 46 तक पहुंचने के बाद 2024 में यह घटकर 30 रह गईं। कांग्रेस का ग्राफ भले ही छोटा रहा, लेकिन 2024 के नतीजे ने उसकी संभावनाओं को बल दिया है। एससी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को 2009 में 30 तो 2014 में 7 सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में छह का आंकड़ा 2024 में छलांग लगाकर 20 पर पहुंच गया है।
कांग्रेस की रणनीति
माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में दलित राजनीति को लेकर मुखर होने के लिए जीतू पटवारी को फ्री हैंड दिया है। इधर, दलित वर्ग को साधने की होड़ में कांग्रेस ने तैयारी तेज कर दी है। महू की रैली में कांग्रेस के दिग्गज नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कथित बयान को दलित विरोधी बताकर सहानुभूति लेने और उन्हें पूरी तरह से घेरने का प्रयास करेंगे, तो भाजपा आक्रामक तरीके से जवाब देगी। भाजपा बताएगी कि किस तरह कांग्रेस ने दलित वर्ग को केवल वोट बैंक माना और उसके लिए कुछ नहीं किया। खुद मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक के आंबेडकर विरोधी होने का तथ्य सामने रख रहे हैं।
प्रदेश में दलित वोटर 20 फीसदी
राज्य में दलितों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी की करीब 20 फीसदी है। जानकारी के अनुसार, दलित के करीब 80 लाख वोटर्स हैं। इसके अलावा प्रदेश की सीमाई विधानसभा सीटों पर बसपा का भी प्रभाव दिखाई देता है। इनमें ग्वालियर चंबल और विंध्य अंचल में चुनाव के दौरान बसपा प्रत्याशियों को अच्छे खासे मत मिलते रहे हैं। फिर चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा का। इन दोनों अंचलों में बसपा प्रत्याशी भले न जीतें, लेकिन वे हार जीत के समीकरण जरूर प्रभावित करने में पीछे नहीं रहते हैं। इसकी वजह से पूर्व में कई दिग्गज नेताओं तक को हराना पड़ चुका है।